Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भीष्म
प्राचीन चरित्रकोश
भीष्म
(४) रथ-अर्जुन, उत्तमौजस् उत्तर वैराटि, काश्य का चिह्न था (म. वि. १४८.५)। इन दस दिनों में (अष्टरथ), भीम (अष्टरथ), वार्धक्षेमि। । अत्यधिक वीरता के साथ लड़कर, एवं सैन्यसंचालन कर, (५) स्थमुख्य-शिखंडिन् ।
इसने पांडवों की सेना को ध्वस्त कर जर्जर ही नहीं बनाया; (६) रथयूथपयूथप-अभिमन्यु, घटोत्कच, माधव, बल्कि उनकी जीत की आशा को भी मिट्टी में मिला सात्यकि।
दिया। इसकी युद्धवीरता का प्रमाण इससे अधिक क्या . (७) रथसत्तम-क्रोधहन्त, चित्रायुध, सेनाबिन्दु । हो सकता है कि, युद्धभूमि में कभी अस्त्रग्रहण न करने (८) रथिन्-नकुल, सहदेव।
की प्रतिज्ञा करनेवाले भगवान कृष्ण को भी अस्त्रग्रहण (९) रथोत्तम–क्षत्रदेव, पांड्यराज ।
करना पड़ा । भारतीय युद्ध के तीसरे एवं नवें दिन (१०) रथोदार----काशिक, केकयबन्धु (पंचक), चंद्रसेन, अर्जुन की रक्षा के लिए कृष्ण को हाथ में सुदर्शन चक्र ले नील, मदिराश्व, युधामन्यु, युधिष्ठिर, व्याघ्रदत्त, शंख, कर युद्धभूमि में उतरना पड़ा (म. भी. ५५; १०२ )। सुकुमार, सूर्यदत्त।
भारतीययुद्ध के तीसरे दिन इसका तथा अर्जुन का कर्ण-भीष्म विरोध-भीष्म के द्वारा किये गये
घनघोर युद्ध हुआ, जिसमें अर्जुन आहत हो कर मूच्छित उपर्युक्त रथि महारथियों के वर्णन में कर्ण को रथी
हो गया। यह देख कर कृष्ण अत्यधिक क्रुद्ध हुआ, एवं . अथवा महारथी न कहकर केवल अधेरथों में उसकी | अर्जन की रक्षा के लिए हाथ में सुदर्शन चक्र ले कर . गणना की। द्रोणाचार्य ने भी उसे अपनी संमति दी।
स्वयं युद्धभूमि में प्रविष्ट हुआ। कृष्ण का यह रौद्ररूप .. यह अपना अपमान समझकर कर्ण क्रोध से उछल पडा। देख कर भीष्म ने अपने अस्त्र-शस्त्र नीचे रख दिये, एवं उसने दुर्योधन से कहा, 'बुढ़ापे के कारण, भीष्म मतिभ्रष्ठ | श्रद्धावनत हो कर कृष्ण से कहा, 'स्वयं कृष्ण भगवान से । हो चुका है। ऐसे मतिभ्रष्ट लोगों की सलाह लेना | मेरी हत्या हो रही है, यह मेरा सौभाग्य है। ऐसा कह . मुझे सरासर मूर्खता प्रतीत होती है। दुष्टबुद्धि भीष्म | कर इसने कृष्ण का स्तवन किया । इतने में अर्जन ने होश कौरवों में फूट पाडना चाहता है। मेरी राय यही है | में आकर कृष्ण से प्रार्थना की, 'युद्धभमि में आप न कि, इस मतिभ्रष्ट एवं दुष्टबुद्धि बूढे का पल्ला तुम छोड | उत्तरे, अभी मै यद्ध के लिए काफी हूँ। दो। जबतक यह भीष्म कौरवसेना का सेनापति है तबतक मैं युद्ध में भाग नही लूंगा' (म. उ. १६५.१०
दुर्योधनआक्षेप---भारतीययुद्ध के दसवें दिन, २७)।
दुर्योधन ने भीष्म पर आक्षेप लगाते हुए कहा,
'आप का मन तो पाण्डवों के पक्ष की ओर है । अतएव इस पर भीष्म ने भी अत्यंत ऋद्ध हो कर दुर्योधन से कहा, 'कवचकुंडल आदि के त्याग से निर्बल, एवं परशुराम
युद्ध में हमारी जीत संभव कहाँ ?' भीष्म ने चिन्तित हो
कर गंभीरतापूर्वक कहा, 'मैं बूढ़ा हूँ, फिर भी जो होता तथा ब्राह्मणों के शाप से इंद्रियदुर्बल हुए पापी कर्ण के लिए, अर्धरथ यह नीच श्रेणि ही योग्य है'। आगे चल
है करता हूँ, तथा किसी प्रकार- कर्तव्य से च्युत नहीं। कर इसने कर्ण से कहा, 'मुझे बूढ़ा कहने की हिंमत तू
पाण्डव बल पौरुष में श्रेष्ठ तथा रणभूमि में अजेय हैं। फिर
यदि तुम मेरे रणकौशल को ही देखना चाहते हो तो ने की है। किन्तु मै चूनौति देता हूँ कि, युद्ध में तुम्हारा
कल देख सकते हो । देखना, या तो कल पाण्डवों की हार पराजय करने की ताकद आज भी मेरे जर्जर बाहुओं में है। परशुराम जामदग्न्य आदि यों को मैने रणभूमि में
होगी, या मेरी मृत्यु' (म. भी. १०५.२६)। पराजित किया है। फिर तेरे जैसे पापी मनुष्य का पराजय | पाण्डवविहीन पृथ्वी को बनाने की भीष्मप्रतिज्ञा को सुन करना मेरे बाये हाथ का खेल है।
कर सभी पाण्डव भयभीत हो उठे। क्यों कि, वे समस्त अपने गुरु भीष्म एवं परममित्र कर्ण के दरम्यान हुए कौरवसेना में भीष्म की ही शक्ति का सिक्का मानते थे। इस वाक्युद्ध के कारण, दुर्योधन अत्यधिक कष्टी हुआ, | कृष्ण ने पाण्डवों के बचाने के लिए अर्जुनादि के सामने एवं उसने इन दोनों को शान्त होने के लिए प्रार्थना की अपने विचार प्रकट करते हुए कहा, 'तुम लोग यदि (म. उ. १६६.१-१०)।
अपना जीवन चाहते हो, तो भीष्म की मृत्य का उपाय सेनापत्य--भारतीय युद्ध में प्रथम दस दिन यह कौरव । करो, अन्यथा तुम को पराजित हो कर, अपने प्राणों की सेना का सेनापति रहा । इसके रथ की पताका पर ताइवृक्ष | आहुति देनी पड़ेगी।
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