Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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त्रयी
प्राचीन चरित्रकोश
त्रसदस्यु
त्रयी--सवितृ तथा पृश्नि की कन्या (भा. ६.१८)। पुरुकुत्स के समय ही समाप्त हो गया था। त्रसदस्यु का
त्रय्यारुण--(सू. इ.) विष्णु, मत्स्य तथा पद्म | इस युद्ध से कुछ भी संबंध नहीं था। मत में निधन्वन् का पुत्र। इसका पुत्र त्रिशंकु (पन. कालान्तर में कुरु तथा पूरु दोनों लोग एक हो गये। सृ.८)।
इसका प्रमाण त्रसदस्युपुत्र कुरुश्रवण के नाम से २. एक व्यास (व्यास देखिये)। भागवत में इसे ज़ाहिर होता है। कुरुश्रवण तथा तृक्षि (ऋ. ८. २२. .. अरुण कहा है।
७), दोनों को भी 'त्रासदस्यव' (त्रसद्रस्यु का पुत्र) ३. (सो. पूरु.) उरुक्षय का पुत्र (त्रय्यारुणि ३. देखिये)। कहा गया है । द्रुह्य तथा पूरु लोगों के साथ, साथ एक त्रय्यारुणि--एक व्यास (व्यास देखिये)। स्थान पर (ऋ. ६.४६. ८), तृक्षि का भी उल्लेख प्राप्त है। २. भागवत मतानुसार व्यास की पुराण शिष्यपरंपरा
जब तक कुछ विरोधी साक्षी नहीं मिलती, तब तक यह के रोमहर्षण का शिष्य।
मानने में कुछ हर्ज नहीं है कि, कुरुश्रवण एवं तृक्षि दोनों
भाई भाई थे। कुरु लोगों का निवासस्थान मध्यदेश ___३. (सो. पूरु.) भागवत तथा वायु के मतानुसार
में था। पूरु लोग सरस्वती के किनारे रहते थे। यह दुरितक्षय का पुत्र। इसने तपोबल से ब्राहाणत्व प्राप्त
सरस्वती भी मध्यदेश की ही है। यह भी कुरु-पूरुओं किया। इसने रोमहर्षण से पुराणों का अध्ययन किया
का साधयं एवं एकरूपता दर्शाता है। (भा. १२.७)। विष्णु मत में इसे त्रय्यारुण कहा है।
- इसने अपनी पचास कन्याएँ सौभरि काण्व को, पत्नी त्रसद--त्रसदस्यु का नामांतर ।
के रूप में दी थीं (ऋ. ८. १९. ३६)। त्रसदश्व--पृषदश्व २. देखिये।
ऋग्वेद में, त्रिवृषन् , त्रसदस्यु, व्यरुण ब्यवृष्ण तथा, त्रसदस्यु पौरुकुत्स्य-(सो. पूरु.) एक सूक्तद्रष्टा | अश्वमेध (ऋ. ५. २७. ४-६) ये सारे समानार्थक, (ऋ. ४. ४२, ५.२७; ९. ११०)। यह 'पूरुओं का | एवं एक ही व्यक्ति के नामांतर माने गये है। किंतु राजा' था (ऋ. ५.३३.८; ७.१९.३, ८. १९. | त्रिवृषन् अथवा व्यरुण के साथ, सदस्यु का वास्तव में ३६)। इसका 'पौरुकुत्सि' (ऋ. ७. १९. ३), तथा | क्या संबंध था, यह वैदिक ग्रंथो से नही समझता।. 'पौरकुत्स्य' (ऋ. ५.३३.८), नामों से उल्लेख आया प्राचीन काल में, प्रसिद्ध यज्ञ करने वाले के रूप में, है। इसका पैतृक नाम गैरिक्षित था।
| त्रसदस्यु पर आटणार, बीतहव्य श्रायस तथा कक्षीवत् यह पुरुकुत्स का पुत्र था (ऋ. ४. ४२. ८; ७. | औशिज के साथ त्रसदस्यु का उल्लेख आया है (तै. सं. ५. १९. ३)। एक अत्यंत महान् विपत्ति के समय, पुरुकत्स | ६.५.३; क. सं. २२.३, पं. बा. १३.३)। इन सब को की पत्नी पुरुकुत्सानी के गर्भ से यह उत्पन्न हुआ। पुरातन थोर राजा ('पूर्व महाराजाः') कहा गया है (ऋ. ४. ३८.१)। सायण के मत में, इसके जन्म के (जै. उ. बा. २.६.११)। समय पुरुकुत्स कारागार में बन्दी या उसकी मृत्यु | एक बार व्यरुण राजा अपना पुरोहित वृश जान को हो गयी थी।
साथ ले कर रथ में जा रहा था। पुरोहित के द्वारा रथ दूत यह गिरिक्षित् का वंशज था (ऋ. ५. ३३. ८), गति से चलाया जाने से, एक ब्राह्मण-पुत्र की रथ के नीचे एवं इसका पिता पुरुकुत्स दुर्गह का वंशज था। अतः | मृत्यु हो गई । तब राजा ने पुरोहित से कहा, 'तुम रथ इसका वंशक्रम इस प्रकार प्रतीत होता है:- दुर्गह, | जब हाँक रहे थे, तब लड़का मृत हुआ। इसलिये गिरिशित् , पुस्कुस, एवं त्रसदस्यु । त्रसदस्यु को हिरणिन् | इस हत्या के लिये जिम्मेवार, तुम हो।'। परंतु नामक एक पुत्र था (ऋ. ५. ३३.७), एवं तृक्षि का | पुरोहित ने कहा, 'रथ तुम्हारा होने के कारण, इस यह पूर्वज था (ऋ. ८. २२. ७)। त्रसदस्यु का पिता | हत्या के जिम्मेवार तुम ही हो'। इस प्रकार लड़ते पुरुकुत्स सुदास का समकालीन था। किंतु वह सुदास का | झगड़ते दोनों इक्ष्वाकु राजा के पास गये । इक्ष्वाकु राजा मित्र था, या शत्रु (लुडविग. ३. १७४), यह निश्चित ने कहा कि रथ पुरोहित के द्वारा हाँका जा रहा था, रूप से नहीं कह सकते । सुदास का पूर्वज दिवोदास के | इसलिये हत्या करनेवाला वृश जान ही है। साथ पूरु लोगों का एवं तृत्सुओ का शत्रुत्व था, यह | तदनंतर वार्श साम नामक स्तोत्र कह कर, वृश दाशराज्ञयुद्ध से ज़ाहिर होता है। तथापि यह युद्ध | जान ने उस बालक को पुनः जीवित किया। फिर