Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
बुध
का आदि पुरुष माना जाता है ( पद्म. सृ. ८; १२; दे. भा. १.१२ ) । 'भविष्य' में इसे चन्द्र एवं रोहिणी का पुत्र कहा गया है।
जन्म - बृहस्पति की दो पत्नियाँ थीं, जिनमें से दूसरी का नाम तारा था । सोम ने तारा का हरण किया था, एवं उससे ही उसे बुध नामक पुत्र हुआ (ऋ. १०.१०९) । पुराणों में भी यह कथा अनेक बार आयी है ( वायु. ९०.२८ - ४३९ ब्रह्मा ९१९३२ मत्स्य २३.१२.२३-५८ ) । उक्त ग्रन्थों में निर्दिए बुध के जन्म की कथा स्वात्मक प्रतीत होती है, एवं आकाश में स्थित गुरु ( बृहस्पति), चन्द्र, बुध आदि ग्रहनक्षत्रों को व्यक्ति मान कर इस कथा की रचना की गयी है।
विष्णुधर्म में इसके जन्म की कथा कुछ दूसरी भाँति दी गयी है। कश्यप की च नामक स्त्री थी, जिससे उसे रज नामक उत्पन्न हुआ पुत्र था। रज का विवाह वरण की कन्या वारुणी से हुआ एक बार समुद्र में स्नान करते समय, वारुणी उसी में डूब गयी। उसे हुआ हुआ देख कर उसे ढूँढने के लिए चन्द्रमा ने जल में प्रवेश किया। उसके प्रवेश करते ही समुद्र में हिलोरें उठने लगी, और उससे एक बालक बाहर निकला । वही बालक बुध था। बृहस्पतिपत्नी तारा ने इस बालक बुध के संरक्षण का भार लिया, किन्तु बाद को असुविधा के कारण इसे चन्द्रपत्नी दाक्षायणी को दे दिया (विष्णुधर्म. १. १०६ ) ।
बृहस्पति ने इसका जातिकर्मादि संस्कार किये थे । यह परम विद्वान् हो कर 'हस्तिशास्त्र' में विशेष पारंगत था (पद्म. सृ. १२. ) । भास्कर संहिता के अन्तर्गत ' सर्वसारतंत्र का यह रचयिता माना जाता है ( . २. १६) ।
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बुध
है; किन्तु जब सूर्य का उल्लंघन कर जाता है, तत्र अनावृष्टि द्वारों संसार को अस्त करता है (मा. ५. २२) |
२. एक वानप्रस्थ ऋषि, जिसने वानप्रस्थधर्म का पान एवं प्रसार कर स्वर्गलोक प्राप्त किया था ( म. शां. २३९. १७ ) ।
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३. (सू. दिष्ट. ) एक राजा, जो विष्णु एवं वायु अनुसार वेगवत् राजा का पुत्र था। इसे 'बंधु' नामांतर भी प्राप्त है।
४. एक स्मृतिकार एवं धर्मशास्त्रज्ञ, जिसका निर्देश अपरार्क, कल्पतरु, जीमूतवाहनकृत 'कालविवेक' आदि ग्रन्थों में प्राप्त है। इसके द्वारा रचित धर्मशास्त्र का ग्रन्थ काफी छोटा है, जिसमें निम्नलिखित विषयों का विवेचन करते हुए, इसने उन पर अपने विचार प्रकट किये हैं:गर्भाधान से लेकर उपनयन तक के समस्त संस्कार, विवाह तथा आके प्रकार, पंचमहायज्ञ श्राद्ध, पाकवंश हविर्यश सोमयाग एवं ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं संन्यासियों के कर्तव्य आदि ।
बुध के द्वारा रचित उक्त ग्रन्थ प्राचीन नहीं प्रतीत होता. उसके अनुशीलन से यह पता चलता है कि, इसने पूर्ववर्ती धर्मशास्त्रवेत्ताओं द्वारा कथित सामग्री को संग्रहीत मात्र किया है। इस ग्रन्थ के सिवाय ' कल्पयुक्ति' नामक इसका एक अन्य ग्रन्थ भी प्राप्त है ( C. C. )
५. मगध देश का एक राजा, जो हेमसदन राजा का पुत्र था। इसकी माता का नाम अंजनी था ( स्कंद. १. २.४० ) ।
६. एक राक्षस, जो पुलह एवं श्वेता के पुत्रों में से एक था। ७. सुतप देवों में से एक।
८. गौड देश में रहनेवाला एक ब्राह्मण, जो दुर्व एवं शाकिनी का पुत्र था। यह अत्यंत दुराचारी, दुव्यसनी एवं पाशविक वृत्तियों का था। एक बार शरात्र पी कर वेश्यागमन के हेतु यह एक वेश्या के यहाँ आ कर रातभर वहीं पढ़ा रहा। इसके घर वापस न लौटने पर इसका पिता ढूंढ़ता हुआ इसके पास पहुँचा, एवं इसकी निर्भत्सना की उसके इस प्रकार कहने पर इसने तत्काल अपने । पिता को खात से मार कर उसका वध किया।
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बाद को अब यह पर आया, तब इसको माता ने अपनी बुरी आदतों को छोड़ने केलिये इसे समझाया । इसने उस बेचारी का भी वध किया। कालांतर में इस हत्यारे ने अपनी पत्नी को भी न छोड़ा, तथा उसे भी मार कर खतम कर दिया ।
अदिति को शाप एक बार इसने व्रत किया एवं उसकी समाप्ति होने पर यह कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पास भिक्षा के लिए गया और भिक्षा की याचना की । भिक्षा न मिलने पर इसने अदिति को शाप दिया, जिस कारण उसे एक मृत अण्ड पैदा हुआ। उस अण्ड से कालोन्त श्राद्धदेव की उत्पत्ति हुयी। मृत अण्ड से पैदा होने के कारण, उसे 'मार्तंड' नामांतर प्राप्त हुआ (म. शां. ३२९.४४ ) ।
भागवत में इसका विवरण एक ग्रह के रूप में दिया गया है। बुध ग्रह सौरमण्डल में शुभग्रह से दो लाख योजन की दूरी पर स्थित माना जाता है । यह शुभग्रह अवश्य ५१२