Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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ब्रह्मन्
प्राचीन चरित्रकोश
ब्रह्मन्
अपने शरीर के द्वारा देवता, ऋषि, नाग एवं असुर | शतरूपा अथवा सावित्री इसके द्वारा ही पैदा की गयी थी। निर्माण करने के पश्चात् , इसने उन चारों प्राणिगणों को अतएव उसका एवं ब्रह्मा का सम्बन्ध पिता एवं पुत्री का एकाक्षर 'ॐ' का उपदेश किया था (म. आश्व. २६. | हुआ। किन्तु इसने उसे अपनी धर्मपत्नी मानकर उसके ८; देव देखिये)।
साथ भोग किया । पुराणों में प्राप्त यह कथा, वैदिक ब्रह्मा के शरीर के विभिन्न भागों से किन किन प्राणियों | ग्रन्थों में निर्दिष्ट प्रजापति के द्वारा अपनी कन्या उषा से की उत्पत्ति हुयी है, इसकी जानकारी विभिन्न पुराणों में | किये 'दुहितृगमन' से मिलती जुलती है (प्रजापति तरह तरह से दी गयी है। पद्म के अनुसार, ब्रह्मा के हृदय | देखिये)। मत्स्य के अनुसार, ब्रह्मा स्वयं वेदों का उद्गाता से बंकरी, उदर से गाय, भैस आदि ग्राम्य पशु, पैरों से | एवं 'वेदराशि' होने के कारण, यह दुहितृगमन के पाप अश्व, गधे, उँट आदि वन्य पशु उत्पन्न हुए। मत्स्य के | से परे है (मत्स्य. ३)। अनुसार, इसके दाहिने अंगूठे से दक्ष, हृदय से मदन, अपने द्वारा किये गये दुहितृगमन से लज्जित होकर, अधरों से लोभ, अहंभाव से मद, आँखो से मृत्यु, स्तनाग्र एवं कामदेव को इसका जिम्मेदार मानकर, इसने मदन को से धर्म, भ्रमध्य से क्रोध, बुद्धि से मोह, कंठ से प्रमोद, शाप दिया कि, वह रुद्र के द्वारा जलकर भस्म होगा। इसके हथेली से भरत, एवं शरीर से शतरूपा नामक पत्नी उत्पन्न | शाप को सुनकर मदन ने जवाब दिया, 'मैने तो अपना हुयीं। उक्त वस्तुओं एवं व्यक्तियों की कोई माता नहीं थी, कर्तव्य निर्वाह किया है। उसमें मेरी त्रुटि क्या है ? ' यह कारण ये सभी ब्रह्मा के शरीर से ही पैदा हुए थे । मत्स्य सुनकर ब्रह्मा ने उसे उःशाप दिया, 'रुद्र के द्वारा दग्ध होने एवं महाभारत के अनुसार, इसके शरीर से मृत्यु नामक के बाद भी तुम निम्नलिखित बारह स्थान पर निवास स्त्री की उत्पत्ति हो गयी थी (म. द्रो. परि. १.८. करोंगेः-स्त्रियों के नेत्रकटाक्ष, जंघा, स्तन, स्कंध, अधरोष्ठ
| आदि शरीर के भाग, तथा वसंतऋतु, कोकिलकंठ, चंद्रिका, वेदों का निर्माण-पुराणों के अनुसार, ब्रह्म के चार | वषां ऋतु, चैत्रमास और वैशाखमास आदि ' (मत्स्य. . मुखों से समस्त वैदिक साहित्य एवं ग्रथों का निर्माण हुआ | ४. ३-२० स्कंद ५.२.१२)। . है। विभिन्न प्रकार के वेद निर्माण करने के पूर्व, इसने ___ प्रभासक्षेत्र में यज्ञ--रकंद में, ब्रह्मा की पत्नी सावित्री
पुराणों का स्मरण किया था। पश्चात् , अपने विभिन्न मुखों एवं गायत्री को एक न मान कर अलग अलग माना गया . से इसने निम्नलिखित वैदिक साहित्य का निर्माण कियाः- | है, एवं सावित्री के द्वारा इसे तथा अन्य देवताओं को जो (1) पूर्वमुख से-गायत्री छंद, ऋग्वेद, त्रिवृत, रथंतर शाप दिया गया था उसकी कथा निम्न प्रकार से दी गयी एवं अग्निष्टोमः (२) दक्षिणमुख से-यजुर्वेद, पंचदश है :- एक बार ब्रह्मा ने प्रभासक्षेत्र में एक यज्ञ किया. ऋक्रसमूह, बहत्साम एवं उक्थयज्ञ; (३) पश्चिममुख से- जिसमें यज्ञ की मुख्य व्यवस्था विष्णु को, ब्राह्मणसेवा इन्द्र सामवेद, सप्तदश ऋक्समूह, वैरुपसाम एवं अतिरात्रयज्ञः | को, एवं दक्षिणादान कुबेर को सौंपी गयी थी। (५) उत्तरमुख से-अथर्ववेद, एकविंश ऋक्समूह, ब्रह्मा के इस यज्ञ में निम्रलिखित ऋषि ब्रह्मन् , उद्गातृ, आप्तोर्याम, अनुष्टुप छंद एवं वैराजसाम।
होतृ एवं अध्वर्यु बने थेः___ वेदादि को निर्माण करने के पश्चात् , इसने ब्रह्मा नाम से | (1) ब्रह्मन्गण-नारद (ब्रह्मा ), गौतम अथवा गर्ग ही सुविख्यात हुए अपने निम्नलिखित मानसपुत्रों का निर्माण (ब्राह्मणाच्छंसी), देवगर्भ व्यास (होता), देवल भरद्वाज कियाः--मरीचि, अत्रि, अंगिरस् , पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, | (आग्नीध्र)। दक्ष, भृगु एवं वसिष्ठ (ब्रह्मांड, २. ९) महाभारत में | (२) उद्गातृगण-अंगिरस् मरीचि गोभिल (उद्गाता), इसके धाता एवं विधाता नामक दो मानसपुत्र और दिये पुलह कौथुम (उद्गाता अथवा प्रस्तोता), नारायण गये हैं (म. आ. ६०.४९)।
शांडिल्य (प्रतिहर्ता), अत्रि अंगिरस् (सुब्रह्मण्य )। ___ मदन को शाप-ब्रह्मा की पत्नी शतरूपा के लिए मत्स्य (३) होतृगण-भृगु (होता), वसिष्ठ मैत्रावरुण में सावित्री, सरस्वती, गायत्री, ब्रह्माणी आदि नामांतर |
| (मैत्रावरुण ऋत्विज्), ऋतु मरीचि (अच्छावाच्), च्यवन दिये गये है। अपने द्वारा उत्पन्न पुत्रों को प्रजोत्पत्ति करने | गालव (ग्रावा अथवा ग्रावस्तुद्)।।
की आज्ञा देकर, यह स्वयं अपनी पत्नी सावित्री के साथ | (४) अध्वर्युगण–पुलस्त्य (अध्वर्यु), शिबि अत्रि रत हुआ, जिससे स्वायंभुव मनु की उत्पत्ति हुयी । । (प्रतिष्ठाता अथवा प्रस्थाता), बृहस्पति रैभ्य (नेष्टा),
प्रा. च.६७]