Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भीमशर
प्राचीन चरित्रकोश
भीमसेन
• भीमशर-धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक। नारीतेज का प्रतीक माने जा सकती हैं। ये तीनो अपने
भीमसेन-एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं मुनि का | अपने क्षेत्र में सर्वोपरि थे, किंतु पांडवपरिवार के बीच पुत्र था। यह अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित था। हुए कौटुंबिक संघर्ष में, इन तीनो को उस युधिष्ठिर के
२. (सो. ऋक्ष.) एक राजा, जो विष्णु एवं वायु के सामने हार खानी पडती थी, जो स्वयं आत्मिक शक्ति अनुसार, ऋक्ष राजा का पुत्र था। मत्स्य के अनुसार, यह | का प्रतीक था। संभव है, इन चार ज्वलंत चरित्रचित्रणों दक्ष राजा का पुत्र था।
के द्वारा श्रीव्यास को यही सूचित करना हो कि, दुनिया ३. (सो. क्षत्र.) एक राजा, जिसका निर्देश पुराणों | की सारी शक्तियों में से आत्मिक शक्ति सर्वश्रेष्ठ है। में 'भीमरथ' नाम से प्राप्त है (भीमरथ २. देखिये)।। स्वरुपवर्णन--भीम का स्वरूपवर्णन भागवत में
इसके पुत्र दिवोदास को गालव ऋषि ने अपनी कन्या प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है कि, यह अत्यंत भव्य माधवी विवाह में दी थी। इसका पुत्र होने के कारण, | शरीरवाला स्वर्ण कान्तियुक्त था। इसके ध्वज पर सिंह दिवोदास को 'भैमसेनि' पैतृकाम प्राप्त था (म. उ. | का राजचिन्ह था, एवं इसके अश्व रीछ के समान कृष्णवणे ११७.१; क. सं. ७,२)।
थे। इसके धनुष का नाम 'वायव्य', एवं शंख का भीमसेन 'पांडव'-(सो. कुरु.) पाण्डु राजा के | नाम 'पौंडू' था। इसका मुख्य अस्त्र गदा था। पाँच 'क्षेत्रज ''पुत्रों में से एक, जो वायु के द्वारा कुन्ती
कौरवों का. विशेष कर दुर्योधन तथा धृतराष्ट्र का, के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। इसके जन्मकाल में आकाशवाणी हुयी थी, 'यह बालक दुनिया के समस्त बलवानों
यह आजन्म विरोधी रहा। दुर्योधन इससे अत्यधिक में श्रेष्ठ बनेंगा (म. आ. ११४.१०)।
विद्वेष रखता था, एवं धृतराष्ट्र इससे काफी डरता था।
भागवत के अनुसार, इसने दुर्योधन एवं दुशाःसन के पाण्डवों में भीम का स्थान सर्वोपरि न कहें, तो भी
| सहित, सभी धृतराष्ट्रपुत्रों का वध किया था (भा. वह किसी से भी कुछ कम नं था । बाल्यकाल से ही यह |
१.१५. १५)। सबका अगुआ था। भीम के बारे में कहा जा सकता है कि, यह वज्र से भी कठोर, एवं कुसुम से भी कोमल | बाल्यकाल--जन्म से ही यह अत्यन्त बलवान् था। था। एक ओर, यह अत्यंत शक्तिशाली, महान् क्रोधी- जन्म के दसवें दिन, यह माता की गोद से एक तथा रणभूमि में शत्रुओं का संहार करनेवाला विजेता शिलाखण्ड पर गिर पड़ा । किंतु इसके शरीर पर जरा सी था। दूसरी ओर, यह परमप्रेमी, अत्यधिक कोमल भी चोट न लगी, एवं चट्टान अवश्य चूर चूर हो गयी स्वभाववाला दयालु धर्मात्मा भी था। न जाने कितनी (म. आ. ११४.११-१३)। इसके जन्म लेने के बार, किन किन व्यक्तियों के लिए अपने प्राणों पर खेल | उपरांत इसका नामकरण संस्कार शतश्रृंग ऋषियों के द्वारा कर, इसने उनकी रक्षा कर, अपने धर्म का निर्वाह किया गया। बाद को वसुदेव के पुरोहित काश्यप के किया । इस प्रकार इसका चरित्र दो दिशाओं की ओर द्वारा इसका उपनयन संस्कार भी हुआ। विकसित हुआ है, तथा दोनों में कुछ शक्तियों पृष्ठभूमि के भीम बाल्यकाल से ही अत्यंत उदंड था। कौरवपांडव रूप में इसे प्रभावित करती रहीं। वे हैं, इसका अविवेकी, बाल्यावस्था में जब एकसाथ खेला करते, तब किसी में इतनी उद्दण्ड एवं भावुक स्वभाव ।
ताकत न थी कि, इसके द्वारा की गयी शरारत का जवाब भीम निश्चल प्रकृति का, भोलाभाला, सीधा साफ दे। दुर्योधन अपने को सब बालकों में श्रेष्ठ, एवं सर्वगुणआदमी था; यह राजनीति के उल्टे सीधे दाँव-पेंच न संपन्न राजकुमार समझता था । किन्तु इसकी ताकत एवं जानता था। सबके साथ इसका सम्बन्ध एवं बर्ताव स्पष्ट शैतानी के आगे उसको हमेशा मुँह की खानी पड़ती थी था, चाहे वह मित्र हो, या शत्रु । यह स्पष्टवक्ता एवं (म.आ.१२७.५-७)। भीम भी सदैव दुर्योधन की झूटी निर्भीक प्राणी था।
शान को चूर करने में चूकता न था। इस प्रकार शुरू से परम शारीरिक शक्ति का प्रतीक मान कर, श्री ही पाण्डवों का अगुआ बन कर, यह दुर्योधादि के नाके व्यास के द्वारा, भीमसेन का चरित्रचित्रण किया गया चने चबवाये रहता। इस प्रकार, इसके कारण आरम्भ से है। पांडवों में से अर्जुन शस्त्रास्त्रविद्या का, भीम ही, पाण्डवों तथा कौरवों के बीच एक बडी खाई का निर्माण शारीरिक शक्ति का, एवं पांडवपत्नी द्रौपदी भारतीय | हो चुका था। प्रा. च.७१]
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