Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भगीरथ
प्राचीन चरित्रकोश
भङ्ग
गंगा के कथनानुसार इसने शंकर की आराधना आरम्भ | इसकी दानशीलता की सराहना की है (म. शां. २९.६३कर दी। पश्चात् शंकर इसकी तपस्या से प्रसन्न हो, गंगा ७०)। महाभारत में दिये गये गोदानमहात्म्य में भी के वेग प्रवाह को जटाओं के द्वारा रोकने के लिए तैयार इसका निर्देश प्राप्त है (म. अनु. ७६.२५)। हो गये।
वैदिक वाङमय में निर्दिष्ट 'भगीरथ ऐक्ष्वाक' एवं यह ___ गंगावतरण-बाद में शंकर ने अपनी जटा के एक सम्भवतः एक ही व्यक्ति रहे होंगे। भगीरथ के नाभाग बाल को तोड़ कर गंगा को पृथ्वी पर उतारा। गंगा का जो (नम), तथा श्रुत नामक दो पुत्र थे। इसके उपरांत श्रुत क्षीण प्रवाह सर्वप्रथम पृथ्वी पर आया, उसे ही 'अलक- | गद्दी पर बैठा। नंदा' कहते हैं । बाद को, गंगा ने वेगरूप धारण कर महाभारत में सोलह श्रेष्ठ राजाओं का जो आख्यान भगीरथ के कथनानुसार, उसी मार्ग का अनुसरण किया, नारद ने संजय राजा को सुनाया था, उसमें भगीरथ की जिस जिस मार्ग से होता हुआ यह गया । अंत में यह | कथा सम्मिलित है (म. शां. ५३-६३)। कपिलआश्रम के उस स्थान पर गंगा को ले गया, जहाँ भगीरथकथा का अन्वयार्थ-आधुनिक विद्वानों के इसके पितर शाप से दग्ध हुए थे। वहाँ गंगा के स्पर्श
अनुसार, भगीरथ की यह कथा रूपात्मक है। गंगा पहले मात्र से सभी पितर शाप से मुक्ति पाकर हमेशा के लिए
तिब्बत में पूर्व से उत्तर की ओर बहती थी, जिससे कि, उद्धरित हो गये (म. व. १०७; वा. रा. बा. १.४२
उत्तरी भारत अक्सर आकालग्रस्त हो जाता था। इसके ४४; भा. ९.९. २-१० वायु. ४७.३७; ८८.१६८; लिये भगीरथ के सभी पूर्वजों ने प्रयत्न किया कि, किसी ब्रह्म. ७८; विष्णु. ४.४.१७)।
प्रकार गंगा के प्रवाह को घुमाकर दक्षिणीवाहिनी बनाया गंगा को पृथ्वी पर उतारने का श्रेय इसे ही है । इसी जाये। किन्तु वह न सफल हो सके। लेकिन भगीरथ अपने लिये गंगा को इसकी कन्या कहा गया है, तथा इसके नाम प्रयत्नों में सफल रहा, तथा उसने गंगा की धार मोड़ कर पर ही उसे 'भागीरथी.' नाम दिया गया है (ह. | उत्तर भारत को हराभरा प्रदेश बना दिया। सगर के वं. १.१५-१६; नारद. १.१५; ब्रह्मवै. १.१०)। साठ हजार पुत्र सम्भवतः उसकी प्रजा थी, जिसे यह पुत्र . पद्म के अनुसार, गंगा आकाश से उतर कर शंकर की | के समान ही समझाता था। जटाओं में ही उलझ कर रह गयी। तब सगर ने शंकर से । २. द्रौपदी के स्वयंवर में उपस्थित एक राजा (म. प्रार्थना कर, उसे पृथ्वी पर छोड़ने के लिए निवेदन किया | आ. १७७.१९)। (पश्न. उ. २१)। भगीरथ से सम्बन्धित गंगावतरण की भगीवसु-वसिष्ठकुलोत्पन्न एक प्रवर । इसके नाम के कथा में; सगर का नाम जो पद्म पुराण में सम्मिलित किया | लिए 'भार्गिवसु' पाठभेद प्राप्त है। गया है, वह उचित नहीं प्रतीत होता है।
| भगरथ ऐक्ष्वाक-इक्ष्वाकुवंशीय एक राजा (जै. गंगा को पृथ्वी पर लाने के उपरांत यह पूर्ववत् फिर | उ. ब्रा. ४.६.१.२)। एकबार इसने यज्ञसमारोह का राज्य करने लगा। यह धर्मप्रवृत्तिवाला दानशील राजा आयोजन किया, एवं उपस्थित ऋषिमुनियों से पृच्छा की, था। इसने दान में अपनी हंसी नामक कन्या कौत्स | 'वह ज्ञान कौनसा है, जो जान लेने पर संसार की सारी ब्राह्मण को दी थी (म. अनु. १२६.२६-२७) इसने | जानकारी प्राप्त होती है । इसके इस प्रश्न का उत्तर देते भागीरथी के तट पर अनेकानेक घाट बनवाये थे । न जाने हुए कुरुपांचालों में से बक दाल्भ्य नामक ऋषि ने कहा, कितने यज्ञ कर ब्राह्मणों को हजारों सालंकृत कन्याएँ, एवं 'गायत्रीमंत्र यह एक ही मंत्र ऐसा है, जिसमें सृष्टि की अपार धनराशि दक्षिणा के रूप में देकर उन्हें सन्तुष्ट | सारी जानकारी छिपी हुयी है। किया था। इसके यज्ञ की महानता इसी में प्रकट है कि, इस निर्देश से प्रतीत होता है कि, इक्ष्वाकुगण के लोग उसमें देवगण भी उपस्थित होते थे (म. द्रो. परि. १. कुरुपांचालों से संबंधित थे। बौद्ध ग्रंथों में उन्हे पूर्वी भारत क्र.८)। ब्राह्मणों को अनेकानेक गायों का दान देकर में रहनेवाले बताया गया है, वह असंभवनीय दिखाई इसने अपनी दानशीलता का परिचय दिया था। अकेले | देता है। कोहल नामक ब्राह्मण को ही इसने एक लाख गायें दान भङ्ग--तक्षक कुल का एक नाग, जो जनमेजय के सर्प में दी थी, जिसके कारण इसे उत्तमलोक की प्राप्ति हुयी | सत्र में मारा गया (म. आ.५२.८)। पाठभेद (भांडार - (म. अनु. १३७.२६-२७; २००.२७)। श्रीकृष्ण ने भी | कर संहिता)---'डङ्ग'।
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