Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
भरत
चौथी शताब्दी का प्रतीत होता है। महाकवि भास के काल में भरत का नाट्यशास्त्र सुविख्यात् ग्रन्थ था। कालि दास को भी भरत एवं उसके नाट्यशास्त्र से काफी परिचय था । 'विक्रमोर्शीयम्' में भरत नाट्यनिर्देशक के नाते इंद्र के राजप्रासाद में प्रवेश करता हुआ दिखाया गया है, एवं उक्त नाट्यकृति में भरत के ' अष्टरस ' संबधी सिद्धांत का विवरण प्राप्त है।
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६. मगधाधिपति इंद्रयुम्न राजा के दरबार एक धर्मेश ऋषि । इंद्रयुरंग राजा के पत्नी ने इंद्र नामक ब्राह्मण से व्यमिचार किया। पश्चात् राजा के द्वारा प्रार्थना करने पर इसने इंद्र ब्राह्मण को शाप दे कर उसका नाश किया ( यो. वा. ३.९० ) 1.
७. एक अग्नि, जो शंभु नामक अग्नि का द्वितीय पुत्र था। इसे कर्ज नामांतर भी प्राप्त था। पौर्णमास याग के समय इसे सर्व प्रथमं हविष्य एवं घी अर्पण किया जाता है ( म.व. २०९.५ ) ।
८. एक अग्नि, जो अद्भुत नामक अग्नि का पुत्र था । यह मरे हुए प्राणियों के शव का दाह करता है। इसका अग्निष्टोम में नित्य वास रहता है; अतः इसे 'नियत' भी कहते है (म. व. २१२.७ ) ।
भरत 'जड' ५.४.९९ वायु. ३२.५२९ ब्रह्मांड. २.१४.६२ लिंग १. ४७.२४; विष्णु. २.१.२२) । वायु के अनुसार, इसके पूर्व इस देश का नाम 'हिमवर्ष था। '
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बहुत दिनों तक राज्य करने के उपरांत, इसका पिता राजय ऋपम इसका राज्याभिषेक कर वन चला गया। पिता के द्वारा राज्यभार सीप देने के उपरांत इसने विश्वरूप की कन्या पंचजनी का वरण किया। यह अपने पिता की ही भाँति प्रजापालक, दयालु एवं धार्मिक प्रवृत्ति का राजा था। इसकी प्रजा भी निश्धर्म का पालन करती हुयी सुख के साथ जीवन निर्वाह करती थी। इसने यजकमों के 'प्रकृति विकृतियों का पूर्ण ज्ञान संपादित कर, बडे बडे यज्ञों को कर यज्ञपुरुष की आराधना की थी। इस प्रकार भक्तिमार्ग का अवरोधन करता हुआ इसने एक कोटि वर्षों तक राज्य किया। तदोपरांत राज्य को छोड़कर यह तर के लिए पुलहाश्रम चा गया (मा. ५.७.८) ।
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द्वितीय जन्म -- पुलह का आश्रम गंडकी नदी के किनारे बडे सुन्दर स्थान पर बना था। वहीं जाकर यह सूर्यमंत्र का जाप कर तपस्या करने लगा। एक दिन इसने एक गर्भवती हरिणी देखी, जो तृषित होकर शरीर श्लथ बड़ी जल्दी जल्दी पानी पी रही थी। इतने में सिंहना से भयत्रस्त होकर वह एकदम भगी। वैसे ही उसके गर्भ में स्थित शावक गिर कर पानी के प्रवाह में वह गया, तथा वह अस्तनयनों से देखती कुंज में विलीन हो गयी। भरत ने शावक को पानी से निकाला, तथा इसे आश्रम ले आया। इस हरीणशावक के प्रति इसकी स्नेह भावना इतनी बढ़ गयी कि उसी मोह में नित्य होने वाली दिनचर्या चौबीस घन्टे गायक ही याद रहता तथा उसी की ही तथा अपनी तपस्या से भी वह उदासीन हो गया । उन्हें चिन्ता। यहां तक कि, मृत्यु के समय भी इसे यही चिन्ता थी कि मेरे बाद इस शावक का क्या होगा ? इसी कारण मृत्योपरांत इसे मृगजन्म ही प्राप्त हुआ ।
९. एक अमि, जो शंभुपुत्र भरत नामक अभि का पुत्र था (म.व. २०९.६-७ ) । इसे पुतमति नामांतर भी प्राप्त था (म. व. २११.१; पुष्टीमति देखिये) ।
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१०. वाराणसी क्षेत्र में रहनेवाला एक योगी, जिसने गीता के चौथे अध्याय का पाठ कर बदरी (बेर) बनी हुई दो अप्सराओं का उद्धार किया था (पद्म उ. १७८)। ११. वृत्ति से रहनेवाला एक दुराचारी ब्राह्मण इसके माई का नाम पुंडरीक था। एक मृत मनुष्य के शव को अभि देने का पुण्यकर्म करने के कारण, यह मुक्त हो गया (पद्म, उ. २१८-२१९) ।
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१२. एक राजा, जो भौत्य मनु के पुत्रों में से एक था । १३. (सो. तुर्वसु. ) करंधमपुत्र मरुत्त राजा का नामांतर ( मरुत्त १. देखिये ) ।
भरत 'जड' ( स्वा. नामि) एक महायोगी एवं गुणवान् राजर्षि, जो ' जडभरत' नाम से सुविख्यात हैं। अनभवर्ष का राजा नाम के पुत्र ऋषभदेव को इन्द्र की की कन्या जयन्ती से सी पुत्र हुए, जिनमें यह ये था। पहले इस देश का नाम अजनाभ वर्ष था। बाद को इसी के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष हुआ (भा.
मृगयोनि में इसे अपने पूर्वजन्म का पूर्णज्ञान था । अतएव अपने मातापिता के मोह का परित्याग कर, यह उसी पुलह आश्रम में आकर, शाल वृक्षों की पवित्र छाया में एकाग्रचित्त होकर तपस्या करने लगा। जब इसे पता चला कि इसकी मृत्यु निकट आ गयी है, तब गंडकी नदी के पवित्र जल में गले तक डूबकर इसने अपने मृग शरीर का त्याग किया।
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