Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भर्तृहरि
प्राचीन चरित्रकोश
भव्य
व्याकरणशास्त्र को बचाने के लिये 'वाक्यपदीय' ग्रंथ सिमर के अनुसार, इनमें एवं आधुनिक बोलन दर्रे में की रचना की गयी है, ऐसा निर्देश उस ग्रंथ के द्वितीय काफी नामसादृश्य है, जिससे प्रतीत होता है कि, इनका "कांड में प्राप्त है।
मूल निवासस्थान पूर्वी बलुचिस्तान था (सिमर-अल्टिन्डिशे ग्रंथ--१. महाभाष्यदीपिका; २. वाक्यपदीय; ३. | लेबेन, १२६ )। वाक्यपदीय के पहले दो कांडो पर 'स्वोपज्ञटीका'; ४. भल्लविन्--लांगली भीम नामक शिवावतार का वेदान्तसूत्रवृत्ति; ५. मीमांसासूत्रवृत्ति ।
शिष्य। २. एक व्याकरणकार, जो संस्कृत व्याकरणशास्त्र को भल्लाट--(सो. पूरु.) एक पुरुवंशीय राजा, जो काव्य के रूप में प्रस्तुत करनेवाले 'भट्टिकाव्य' का | मत्स्य के अनुसार विश्वक्सेन का, एवं वायु के अनुसार, रचयिता था। इसने 'भागवृत्ति' नामक अन्य एक ग्रंथ उदक्सेन राजा का पुत्र था। भागवत में इसके लिये भी लिखा था।
'भल्लाद' पाठभेद प्राप्त है। ३. एक राजा, जो शृंगार, नीति एवं वैराग्य नामक | भल्लि-बिल्वि नामक भृगुकुल के गोत्रकार के लिये 'शतकत्रयी' ग्रंथ का रचयिता था।
उपलब्ध पाठभेद (बिल्वि देखिये)। भयं--कश्यपकुलोत्पन्न गोत्रकार ऋषिगण ।
२. (सो. कुकुर.) यादव राजा नल का नामांतर भयश्चि--(सो. नील.) पांचाल देश का सुविख्यात | (नल ४. देखिये)। यह विलोमन् राजा का पुत्र था, राजा, जो अर्क राजा का पुत्र था । इसे मुद्गल आदि पाँच एवं इसके पुत्र का नाम अभिजित् था। इसे 'नंदनोदरअत्यंत पराक्रमी पुत्र थे, जिन्हे देखकर यह हमेशा कहा| दुंदुभि' अथवा 'चंदनोदकदुंदुभि' नामांतर भी प्राप्त है करता था, 'मेरे राज्य के संरक्षण के लिये मेरे पाँच पुत्र | ३. एक यादव, जो वसुदेव एवं रथराजी का पुत्र है। ही केवल काफी - 'पंच अलम्') है।'
४. रौच्य मनु के पुत्रों में से एक । इस कारण इसके इन पुत्रों को 'पंचाल' सामुहिक नाम भव-कश्यप एवं सुरभि के पुत्रों में से एक। इसके प्राप्त हुआ, जिससे आगे चलकर इसका देश ही 'पंचाल' | नाम के लिये 'भल' पाठभेद प्राप्त है। नाम से प्रसिद्ध हुआ (पंवाल देखिये; भा. ९.३१. २. ग्यारह रुद्रों में से एक, जो ब्रह्मा का पौत्र एवं स्थाणु ३१-३२)।
| का पुत्र था (म. आ. ६०.१-३)। भलंदक--(सू. दिष्ट.) मलंदन राजा के लिये उपलब्ध ३. एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु. ९१.३५)। पाठभेद ( भलंदन २. देखिये)।
भवत्रात शायस्थि--एक आचार्य, जो कुस्तुक भलंदन--अत्रिकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
शार्कराक्ष्य नामक आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य . २. (सू. दिष्ट.) एक राजा, जो जन्म से तो ब्राह्मण | का नाम बृहस्पतिगुप्त शायस्थि था (वं. बा. १)। .. था, किंतु नीच वाणिज्यकर्म करने के कारण वैश्य बन गया भवद-(सो.) एक राजा, जो भविष्य के अनुसार, • था (मार्क. ११३. ३; ब्रह्म. ७.२६; विष्णु. ४.१.१५, भा. मनस्यु राजा का पुत्र था। ९.२.२३)।
भवदा-स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श.. ___ भागवत, विष्णु एवं वायु के अनुसार, यह नाभाग | ४५.१३)। राजा का पुत्र था, एवं इसके पुत्र का नाम वत्सप्रीति था। भवनन्दि--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। मत्स्य में इसके नाम के लिये 'भलंदक' पाठभेद प्राप्त है। भवन्मन्यु-(सो. पूरु.) एक पूरुवंशीय राजा, जो मत्स्य एवं ब्रह्मांड में, इसे वैश्य जाति का मंत्रद्रष्टा ऋषि | विष्णु के अनुसार, वितथ राजा का पुत्र था। इसके नाम कहा गया है (मत्स्य. १४५.११६, ब्रह्मांड. २. ३२. | के लिये 'मन्यु' पाठभेद भी प्राप्त है (भा. ९.२१.१)। १२१); किंतु प्रतीत होता है कि, यह पुनः ब्राह्मण हुआ | इसे निम्नलिखित पाँच पुत्र थेः-बृहत्क्षत्र, नर, गर्ग, था (ब्रह्म.७.४२)।
महावीर्य एवं जय (विष्णु. ४.१९.९)। भलानस्--ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक जातिसंघ, जो | भव्य-रैवतमन्वतर का एक देवगण, जिसमें निम्नदाशराज्ञ युद्ध में सुदास के शत्रुपक्ष में शामिल था । पक्थ, | लिखित आठ देव शामिल थे:-परिमति, प्रिय निश्चय, अलिन, विषाणिन एवं शिव जातियों के समवेत इनका | मति, मन, विचेतस् , विजय, सुजय एवं स्योद (ब्रह्मांड, निर्देश ऋग्वेद में आता है (ऋ. ७. १८.७)। । २.३६.७१-७२)।
प्रा. च.७०]