Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भरद्वाज
प्राचीन चरित्रकोश
भर्तृहरि
एकान्त में सोचकर देना चाहिए; जो राजकुमार अपने | पुत्र था। इसके नाम के लिये 'रुचक' एवं 'रुरुक' पिता के प्रति प्रेम एवं मर्यादा का उल्लंघन करता हुआ | पाठभेद प्राप्त हैं। अवहेलना करता हो, उसको भेदनीति के द्वारा दण्ड देना भर्ग--एक रुद्र, जो एकादश रुद्रों में से अंतिम था। चाहिए; राजा जिस समय मरणासन्न स्थिति में हो, उस | यह शिव नामांतर भी है। समय मंत्री को चाहिए कि राजकुमारों के बीच कोई न २. (सो. तुर्वसु.) एक राजा, जो भागवत के कोई कलह पैदा कर दे; राजसंकट के काल में राजा एवं अनुसार, वह्नि राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम मंत्री में सर्व लोगों ने राजा की सहायता करनी चाहिये, | भानुमत् था। किन्तु व्यवहार में देखा जाता है कि, लोग बलवान का ही | ३. (सो. काश्य.) काशी देश का एक राजा, जो पक्ष लेते है। इसका यह अन्तिम अभिमत महाभारत में भागवत के अनुसार, वीतिहोत्र राजा का पुत्र था। इसके इन्ही शब्दों में वर्णित है (म. शां. ६७.११)। नाम के लिये 'भार्ग' एवं 'गार्ग्य' पाठभेद प्राप्त है। "
महाभारत में इसके एवं राजा शत्रुजय के बीच हुआ | इसके पुत्र का नाम भर्गभूमि था। संवाद प्राप्त है, जिसमें साम, दाम, दण्ड, भेद आदि | भर्ग प्रागाथ--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ ८.६०नीतियों में दण्डनीति को श्रेष्ठता दी गयी है (म. शां. | ६१)। १४०)। इसी पर्व में प्राप्त राज्यशास्त्रकारों की नामावली भर्गभूमि-(सो. काश्य.) काशी देश का एक में इसका नाम भी सन्निहित है (म. शां. ५८.३)। | राजा, जो भागवत के अनुसार भर्ग राजा का पुत्र था । ..
'यशस्तिलक' नामक राज्यशास्त्रविषयक ग्रन्थ में, अर्तहरि--एक सविख्यात संस्कृत व्याकरणकार, जो भरद्वाज के राजनैतिक अभिमत से सम्बन्धित दो पद्य उद्- | पतंजलि के 'व्याकरणमहाभाष्य' का सर्वाधिक प्राचीन एवं , - धरण प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है कि, इसका राज्य- प्रामाणिक टीकाकार माना जाता है। महाभाष्य पर लिखी. विषयक ग्रन्थ पद्यरूप में १० वी शताब्दी में प्राप्त था। ही इसकी टीका का नाम 'महाभाष्यप्रदीप' है। ...
भरद्वाज के व्यवहारविषयक मतों का उल्लेख कई पुण्यराज के अनुसार, भर्तृहरि के गुरु का नाम वसुरांत ग्रन्थों में प्राप्त है । मुकदमे गवाही देने के पूर्व व्यक्तियों था। चिनी प्रवासी इत्सिंग के अनुसार, यह बौद्धधर्मीय द्वारा लिए गये शपथ के इसने चार प्रकार बताये हैं | था, एवं इसने सात बार प्रव्रज्या ग्रहण की थी (इत्सिंग (पराशर माधवीय २.२३१)। किन्ही दो व्यक्तियों के पृ. २७४)। किंतु मीमांसकजी के अनुसार, यह वैदिकधर्मीय बीच हुए समझौता, विनिमय एवं बँटवारे को खारिज | ही था (संस्कृत व्याकरण का इतिहास-पृ. २५७)। करना हो, तो उसकी अवधि नौ दिन की बताई गयी है, वाक्यपदीय--संस्कृत भाषा में अंतर्गत शब्दों का किन्तु यदि उसमें किसी प्रकार के कानूनी झगडे हो, तो | संपूर्ण विवेचन पाणिनि एवं पतंजलि ने अपने व्याकरण उसकी अवधि नौ साल तक हो सकती है ( सरस्वती- | ग्रंथो के द्वारा किया। किंतु उन्ही शब्दों को ब्रह्मस्वरूप विलास. पृ. ३१४; ३२०)। इन उद्धरणों से यह सिद्ध मान कर, तत्वज्ञान की दृष्टि से , व्याकरणशास्त्र का है, कि इसका व्यवहारविषयक ग्रन्थ राजशास्त्रविषयक | अध्ययन करने का महनीय कार्य भर्तृहरि ने अपने ग्रन्थ से अलग है।
'वाक्यपदीय' नामक ग्रंथ के द्वारा किया। इस ग्रंथ के ____ अन्य ग्रंथ--१भरद्वाजसंहिता--पंचरात्र सांप्रदाय के | निम्नलिखित तीन कांड है:-ब्रह्मकांड, वाक्यकांड, इस ग्रंथ में कुल चार अध्याय हैं; २. भरद्वाजस्मृति, | प्रकीर्णकांड । जिसका निर्देश पद्म में प्राप्त है, एवं जिसके उद्धरण मीमांसा, सांख्य, योग आदि दर्शनों का निर्माण होने हेमाद्रि, विज्ञानेश्वर, बालभट्ट आदि ग्रंथकारों के द्वारा | के पश्चात् , व्याकरणशास्त्र एक अनुपयुक्त शास्त्र कहलाने लिये गये है; ३. वास्तुतत्त्व; ४. वेदपादस्तोत्र (C.C.)। | लगे। किंतु शब्दों के अर्थ का ज्ञान प्राप्त होने पर, शब्द.
१२. (सू. इ. भविष्य.) एक राजा, जो वायु के ब्रह्म की प्राप्ति होती हैं, ऐसा नया सिद्धान्त भर्तृहरि ने अनुसार, अमित्रजित् राजा का पुत्र था।
प्रस्थापित किया, एवं इस प्रकार व्याकरणशास्त्र का भरद्वाजि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । पुनरुत्थान किया।
भरुक--(सू . इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो व्याडि का संग्रहग्रंथ नष्ट होने पर, पाणिनीय व्याकरण: भागवत, विष्णु एवं वायु के अनुसार, विजय राजा का | शास्त्र विनष्ट होने का संकट निर्माण हुआ; उसी संकट से