Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भरद्वाज
प्राचीन चरित्रकोश
भरद्वाज
पीढ़ी पूर्व था। अतएव यह सम्भव है कि, यह स्वयं हुआ, तब रैभ्य ऋषि के पुत्र अर्वावसु ने यवक्रीत को पुनः उसका दत्तक पुत्र न हुआ हो । सम्भव है, इसका पुत्र था | जीवित किया (म. व. १३५-१३८) । पुत्र को पुनः पौत्र भरद्वाज विदाथिन् राजा भरत को दत्तक रूप में प्राप्त कर यह प्रसन्न हुआ एवं स्वर्ग चला गया । दिया गया हो ( भरद्वाज ३. देखिये)।
५. पूर्व मन्वंतर का एक ब्रह्मर्षि । यह किसी समय ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार, यह लम्बा, क्षीणशरीर | गंगाद्वार में रहकर कठोर व्रत का पालन कर रहा था। एवं गेहुए रंग का था (ऐ. ब्रा. ३४९) यह अत्यंत | एक दिन इसे एक विशेष प्रकार के यज्ञ का अनुष्ठान दीर्घायु तपस्वी एवं विद्वान था (ऐ. आ. १.२.६)। करना था। अतएव अन्य महर्षियों के साथ यह गंगाइसका याज्ञवल्क्य ऋषि से तत्त्वज्ञान के सम्बन्ध में संवाद | स्नान करने गया। वहाँ पहले से नहा कर वस्त्र बदलती हुआ था। 'जगत्सृष्टिप्रकार के सम्बन्ध में इसका एवं हुयी घृताची अप्सरा को देखकर इसका वीर्य स्खलित भृगु ऋषि से संवाद हुआ था (म. शां. १७५)। इसने हो गया, जिससे इसको श्रुतावती नामक कन्या हुयी धन्वन्तरि को आयुर्वेद सिखाया था (ब्रह्मांड. ३.६७) । (म. श. ४७)। श्रुतावती के लिए भांडारकर संहिता में __ यह ब्रह्मा द्वारा किये गये पुष्कर क्षेत्र के यज्ञ उपस्थित | 'स्त्रचावती' पाठभेद भी प्राप्त है। था (पद्म. सृ. ३४)। सर्पविष से मृत्यु हुए प्रमद्वरा को
६. अंगिराकुलोत्पन्न एक ऋषि, जिसका आश्रम गंगा- . देख कर रोनेवाले स्थूलकेश ऋषि के परिवार में यह भी
द्वार में था (म. आ. १२१)। उत्तर पांचाल का राजा.. एक था (म. आ. ८.२१)।
पृषत इसका मित्र था। गंगाद्वार से चल कर हविर्धान ' ३. एक सुविख्यात ऋषि, जो पूरुसम्राट भरत को पुत्र होता हुआ, यह गंगास्नान को जा रहा था। उस समय के रूप में प्रदान किया गया था। सम्भवतः यह बृहस्पति | स्नान कर के निकली हुयी घृताची नामक अप्सरा को ऋषि के पुत्र भरद्वाज बार्हस्पत्य का पुत्र या पौत्र था उभरती हुई युवावस्था को देखकर इसका अमोघ वीर्य । (भरद्वाज २. देखिये )। इसका नाम विदथिन् था, जिसके | पर्वत की कंदरा में स्खलित हुआ। इसने उस वीर्य को. कारण यह 'भरद्वाज विदथिन्' नाम से सुविख्यात हुआ। दोनें (द्रोण) में सुरक्षित कर रखा, जिससे इसे द्रोण
पूरुवंशीय सम्राट भरत के कोई पुत्र न था, इस कारण नामक पुत्र हुआ (म. आ. ५७.८९; १५४.६)। मरुत्त राजा ने भरत को इसे पत्र रूप में प्रदान किया। इसके पुत्र द्रोण एवं पृषत राजा के पुत्र द्रुपद में भरद्वाज स्वयं ब्राह्मण था, किन्तु भरत का पुत्र होने के | बाल्यावस्था में बड़ी घनिष्ठता थी, किन्तु आगे चलकर उन कारण यह क्षत्रिय कहलाया। दो वंशों के पिताओं के पत्र दोनों में इतनी कटुता उत्पन्न हो गयी कि, पीढ़ियों तक होने के कारण इसे 'यामप्यायण' एवं इसके कुल में | आपस की दुश्मनी खत्म न हो सकी (द्रुपद एवं द्रोण उत्पन्न लोगों को 'या मुष्यायणकौलीन' कहा जाता है। देखिये)। भरत के मृत्योपरांत भरद्वाज ने अपने पत्र वितथ को बृहस्पति ने इस ऋषि को आग्नेय अस्त्र प्रदान किया। राज्याधिकारी ना कर, यह स्वयं वन में चला गया | था, जो इसने अग्नि के पुत्र आनिवेश को दिया था (म. (मत्स्य. ४९.२७-३४; वायु. ९९.१५२-१५८)। आ. १२१.६; १५८.२७)। .
क्योंकि इसका नाम विदाथिन् था, अतएव इसके पुत्र ७. बाल्मीकि ऋषि का शिष्य, जो प्रयाग में रहता एवं वंश के लोग 'वैदथिन' नाम से सुविख्यात हुए। था। जब क्रौंच पक्षियों के जोडे को देखकर वाल्मिकि के सुख इसे निम्नलिखित पाँच पुत्र थे:- ऋजिश्वन् , सुहोत्र, से करुण वाणी काव्य के रूप में प्रस्फुटित हुयी थी, तब शुनहोत्र, नर, गर्ग (सर्वानुक्रमणी ६.५२)। सम्भव है, यह | यह उपस्थित था (वा. रा. बा. २.७-२१)। ब्रह्मपुराण इसके पुत्र न होकर वंशज हो।
के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि, भरद्वाज की पत्नी ४. अंगिराकुलोत्पन्न एक ऋषि, जो विश्वामित्र के पुत्र का नाम सम्भवतः 'पैठिनसी' था। वाल्मीकि ने सर्वरम्य ऋषि का मित्र था। इसके पुत्र का नाम यवक्रीत | प्रथम इसे ही रामायण की कथा बतायी थी ( यो. वा. था।
१.२)। रैभ्य ऋषि ने एक कृत्या का निर्माण किया था, जिसने दंडकारण्य जाते समय दाशरथि राम ने इसके इसके पुत्र यवक्रीत को मार डाला। पुत्रशोक से विद्दल | दर्शन किये थे, और इसका आतिथ्य स्वीकार किया था। हो कर, यह आग में जल कर मृत होने के लिये तत्पर | राम के द्वारा रहने के लिए स्थान माँगने पर इसने अपना
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