Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भरत 'दाशरथि
प्राचीन चरित्रकोश
भरद्वाज
गया, तथा प्रतिष्ठान नगरी वत्स राज्य में विलीन हो गयी।। भरतवंश-इसके वंश में उत्पन्न सारे पुरुष 'भरत' यही नही, हस्तिनापुर नगर इसके द्वारा बसाया भी गया। अथवा 'भारतवंशी' कहलाते है (ब्रह्म. १३.५७; वायु. ९९ बाद को इसके वंश के पाँचवे पुरुष हस्तिन् ने उसे और १३४)। इसके वंश में पैदा हुए पाँचवे पुरुष हस्तिन् को उन्नतिशील बना कर उसे अपने नाम से प्रसिद्ध किया अजमीढ एवं द्विमीढ नामक दो पुत्र थे। उनमें से अजमीढ़ (वायु. ९९.१६५; मत्स्य. ४९.४२)।
| ने हस्तिनापुर का पूरुवंश आगे चलाया, एवं द्विमीढ ने । शतपथ ब्राह्मण में श्रेष्ठ सम्राट भरत द्वारा सात्वत राजा । आधुनिक बरेली इलाके में अपने स्वतंत्र द्विमीढ वंश का अश्वमेधीय अश्व पकड लेने का निर्देश है (श. ब्रा. | की स्थापना की। ३.५.४.९; २१)। शतपथ ब्राह्मण के इस निर्देश में अजमीढ की मृत्यु के बाद, उसका पुत्र ऋक्ष हस्तिनादुष्यन्तपुत्र भरत एवं दशरथपुत्र भरत के बीच में | पुर का सम्राट बना एवं उसके बाकी दो पुत्र नील एवं भ्रान्ति हो गयी है, क्योंकि, सात्वत राजा राम दाशरथि बृह दिषु ने उत्तर पांचाल एवं दक्षिण पांचाल के स्वतंत्र का समकालीन था।
राजवंशों की स्थापना की। इस तरह भरतवंश ने शाखाओं परिवार--इसे कुल चार पत्नियाँ थीं, जिनमें काशिराज में फैलकर, उत्तर भारत के शासन की बागडोर अपने हाथों सर्वसेन की कन्या सुनन्दा पटरानी थी। इसकी शेष में ले ली। पत्नीयाँ विदर्भ देश की राजकन्याएँ थीं। शादी के उपरांत भरद्वाज ब्राह्मण था। भरतपुत्र होकर वह क्षत्रिय. विदर्भ कुमारियों से भरत को एक एक पुत्र हुए। पर इन हुआ, इस प्रकार भरतवंश की एक शाखा क्षत्रियब्राह्मण ... तीन रानियों के तीनों पुत्र, पिता की भाँति बल तथा नाम से प्रसिद्ध हुयी। उस शाखा में उरुक्षय वंश के महर्षि योग्यता में ऐश्वर्यपूर्ण न थे, अतएव उनकी माताओं ने । एवं काप्य, सांकृति, शैन्य गार्य आदि क्षत्रियब्राह्मण , उन्हें मार डाला (ब्रह्म. १३.५८; ह. वं. १.३२; भा. ९. प्रमुख थे (भरद्वाज देखिये)। २०.३४ )। आगे चल कर एक गहन समस्या आ पड़ी, | भरती-भरत नामक अग्नि की कन्या। की भरत का उत्तराधिकारी कोन हो? ।
भरद्वसु--एक ऋषि, जो वसिष्ठकुल का मंत्रकार था । पुत्रप्राप्ति के लिए भरत ने अनेकानेक यज्ञ किए, | भरद्वाज-एक सुविख्यात वैदिक सूक्तद्रष्टा, जिसे अन्त में मरूतों को प्रसन्न करने के लिए 'मरुत्स्तोम' यज्ञ | ऋग्वेद के छठवे मण्डल के अनेक, सूक्तों के प्रणयन का भी किया। मरुतों ने प्रसन्न होकर बृहस्पति के पुत्र भरद्वाज | श्रेय दिया गया है (ऋ. ६. १५. ३,१६.५ १७.४; ३१ को इसे पुत्र के रूप में प्रदान किया। संभव है, यहाँ । ४)। भरद्वाज तथा भरद्वाजों का स्तोतारूप में मी, उक्त मरुत् देवता का संकेत न होकर, वैशालिनरेश मरुत्त मण्डल में निर्देश कई बार आया है । अथर्ववेद एवं ब्राह्मण अभिप्रेत हो (मरुत्त देखिये)।
ग्रन्थों में भी इसे वैदिक सूक्तद्रष्टा कहा गया है (अ. वे. भरद्वाज पहले ब्राह्मण था, किन्तु इसके पुत्र होने के | २.१२.२, ४.२९.५; क. स. १६.९; मै. सं २.७.१९; वा. उपरांत क्षत्रिय कहलाया। दो पिताओं का पुत्र होने के सं. १३.५५, ऐ. बा. ६.१८.८.३; तै. ब्रा. ३.१०.११. कारण ही भरद्वाज को 'द्वयामुष्यायण ' नाम प्राप्त हुआ | १३. कौ. ब्रा. १५.१,२९.३ )। (भरद्वाज देखिये)। भरत के मृत्योपरान्त भरद्वाज ने भरद्वाज ने अपने सूक्तों में बृबु, बृसय एवं पारावतों अपने पुत्र वितथ को राज्याधिकारी बना कर, वह स्वयं वन का निर्देश किया है (ऋ.८.१०.८)।पायु, रजि, सुमिहळ में चला गया (मत्स्य. ४९.२७-३४; भा. ९. २०; साय्य, पेरुक एवं पुरुणीथ शातवनेय इसके निकटवर्ती थे। वायु. ९९.१५२-१५८)।
पुरुपंथ राजा का भरद्वाज के आश्रयदाता के रूप में निर्देश महाभारत में इसकी पत्नी सुनन्दा से इसे भूमन्यु प्राप्त है (ऋ. ९. ६७. १-३; १०.१३७. १; सर्वानुनामक पुत्र होने का निर्देश प्राप्त है (म. आ. ९०. | क्रमणी; बृहदे. ५.१०२)। ३४)। पर वास्तव में भूमन्यु इसका पुत्र न होकर पौत्र हिलेब्रान्ट के अनुसार, भरद्वाज लोग संजयो के साथ भी (वितथ का पुत्र) था।
| संबद्ध थे (वेदिशे माइथालोजी- १.१०४)। सांख्यायन भविष्य के अनुसार, इसने पृथ्वी को नानाविध देश- श्रौतसूक्त के अनुसार, भरद्वाज ने प्रस्तोक सार्जय से विभागों में बाँट दिया, एवं इसीके कारण इस देश को पारितोषिक प्राप्त किया था (सां. श्री. १६.११)। कई 'भारतवर्ष' नाम प्राप्त हुआ (भवि. प्रति. १.३)। । विद्वानों के अनुसार, ये सारे लोग मध्य एशिया में स्थित
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