Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भरद्वाज
प्राचीन चरित्रकोश
भरद्वाज
आश्रम ही ले लेने के लिए उससे कहा । किन्तु राम ने सम्भवतः भरद्वाज वर्तमान मन्वंतर के सप्तर्षियों में से कहा, 'यहाँ से अयोध्या निकट है,अतएव अयोध्यावासियों एक होगा। प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में सूर्य के साथ भ्रमण से मुझे सदैव अडचने प्राप्त होती रहेंगी। यह सुनकर, | करनेवाला नक्षत्र भी यही होगा। इसने राम के रहने के लिए दस मील दूर पर स्थित ९. एक ऋषि, जो शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म से चित्रकूट में रहने के लिए व्यवस्था कर दी, तथा उसका मिलने गया था (भा. १.९.६)। मार्ग बता कर बिदा किया (वा. रा. अयो. ५४-५५)। १०. एक ऋषि जो, बारहवें या उन्नीसवें युग का
राम को वापस लाने के लिए जब भरत वन को गया | व्यास था। था, तब वह अपने सेना को दूर रखकर, इसके आश्रम ११. एक धर्मशास्त्रकार, जिसके द्वारा श्रौतसूत्र और आया था। भरत को देखकर भरद्वाज के मन में शंका उठी धर्मसूत्र की रचना की गयी है । इसके द्वारा लिखित थी कि, राम को अकेला समझ कर उन्हे मार कर श्रौतसूत्र की हस्तलिखित पाण्डुलिपि बम्बई विश्वविद्यालय भरत निष्कंटक राज्य तो नहीं करना चाहता। इस के ग्रंथालय में उपलब्ध है, जिसमें कुल दस अध्याय (प्रश्न) सम्बन्ध में इसमें भरत से प्रश्न भी किया था, जिसे सुन | है, एवं उसमे 'आलेखन' और 'आश्मरथ्य' धर्मशास्त्रकारों कर भरत की आँखों में आसू आ गये थे। भरत के द्वारा का उल्लेख कई बार आया है। इस ग्रंथ में इसका निर्देश दिये गये विश्वास पर इसने उसका ससैन्य आदरसत्कार | 'भरद्वाज' एवं 'भारद्वाज' इन रूपों से आया है। किया था। उसके खाने पीने तथा ठहरने की इसने सुन्दर विश्वरूप एवं अन्य भाष्यकारों के भाष्यों में भरद्वाज
व्यवस्था की थी। भरत एक रात इसके यहाँ ठहरा भी | के धर्मशास्त्र विषयक सूत्रग्रन्थ का उल्लेख आया है। • था, तथा बडे भावुक भावों में भर कर अपनी माताओं याज्ञवल्क्य स्मृति पर विश्वरूपद्वारा लिखित भाष्य में
का परिचय इसे दिया था । भरत के द्वारा पूछे जाने पर, | भरद्वाज के मतों का उल्लेख किया गया है। उसमें लिखा इसने उसे राम के रहने का मार्ग बताते हुए कहा था | है कि, गुरुओं को अपने शिष्यों को संध्यावंदन, यज्ञकर्म एवं कि, वह यहाँ से ढाई योजनं दूर पर है (वा. रा. अयो | शुद्ध भाषा सिखानी चाहिये, तथा उन्हें म्लेच्छ भाषा से ९०.९२)।
दूर रहने की शिक्षा देनी चाहिए (याज्ञ. १.१५)। दूसरों को रावण का वध कर राम इसके आश्रम आया था, और कष्ट देने की बात को सोचना भी पाप है, ऐसा इसका मत उसने इससे मुलाकात की थी। इसने राम का स्वागत कर, था, एवं इस पाप के लिए इसने प्रायश्चित्त भी बताया है उसका आदरसत्कार करते हुए वरप्रदान किया था, 'तुम (याज्ञ. १.३२)। श्राद्ध के समय किस अनाज का प्रयोग न जिस मार्ग से होकर जाओगे उस मार्ग के वृक्षफल वसंत करना चाहिए, तथा शूद्रस्पर्श के उपरांत स्नान द्वारा अपने ऋतु के समान होकर फलफूलमय हो जायेंगे' (वा. रा. को किस तरह शुद्ध करना चाहिए, इसके बारे में भी इसने यु. १२४)।
अपना अभिमत दिया है (याज्ञ. १.१८५, २३६)। घर अश्वमेध यज्ञ के बाद राम पुनः भरद्वाज से मिलने के में जब गृह्याग्नि का संस्कार बन्द हो, तो क्या प्रायश्चित्त लिए गौतमी नदी के तट पर स्थित आश्रम में आया था। लेना चाहिए, इसके विषय में भरद्वाज के मत का उल्लेख राम को सारे ऋषियों के साथ आश्रम में अतिथरूप में | अपराक ने किया है (अपराक. ११५५)। आया हुआ देखकर, इसने उन सब का स्वागत कर श्रौतसूत्र एवं धर्मसूत्र के अतिरिक्त, इसके द्वारा लिखित भोजनादि के लिए प्रार्थना की थी। इसके आश्रम में एक स्मृति पद्य में लिखी हुई मानी गयी है, जिसके उद्शंभु ने राम के पूछने पर, श्राद्ध निर्णय, शिवपूजाविधि | धरण स्मृतिचंद्रिका एवं हरदत्त में प्राप्त है । और भस्ममाहात्म्य की कथा बतायी थी (पम्न. पा. | अर्थशास्त्रकार- एक अर्थशास्त्रकार के नाते भरद्वाज का १०५)।
निर्देश कौटिल्यअर्थशास्त्र में सात बार आया है । कौटिल्य ८. एक अग्नि, जो शंयु नामक अग्नि का ज्येष्ठ पुत्र था। | अर्थशास्त्र में कणिक भारद्वाज नामक आचार्य का उल्लेख धर्म की कन्या सत्या इसकी माता थी। इसकी पत्नी का प्राप्त है, जो सम्भवतः यही होगा (कौटिल्य.५.५)। कौटिल्य नाम वीरा था, जिससे इसे वीर नामक पुत्र उत्पन्न हुआ | ने इसके जिन मतों का उल्लेख किया है, वह निम्न प्रकार था (म. व. २०९. ९)। यज्ञ में प्रथम आज्यभाग के | से हैं:-राजा को अपने सहपाठियों में से मंत्रियो का चुनाव द्वारा इस भरद्वाज नामक अमि की पूजा की जाती है। | करना चाहिए; राजा को राजनैतिक निर्णयों को अपने आप
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