Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
भद्राश्व
२. (सो. नी. ) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार, पृथु राजा का पुत्र था । इसे हर्यश्व एवं भर्म्याश्व नामांतर भी प्राप्त थे ।
४. (सो. वसु. ) एक राजा, जो विष्णु एवं वायु के अनुसार, वसुदेव एवं रोहिणी के पुत्रों में से एक था। ५. (सो. पूरु. ) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार अहंवर्च राजा का पुत्र था । इसे रौद्राश्व नामांतर भी प्राप्त था । इसे कुल दस कन्याएं थी, जो प्रभाकर ( आत्रेय ) ऋषिको विवाह में दी गयी थी ।
भद्रेश्वर - मध्यदेश का एक सूर्योपासक राजा इसके दाहिने हाथ पर यकायक कोढ़ उत्पन्न हुआ, जिससे छुटकारा पाने के लिए, इसने एवं इसके प्रश ने कठोर सूर्योपासना की । सूर्यप्रसाद से इसका कोढ़ नष्ट हुआ, एवं इसे मुक्ति मिल गयी (पद्म सू. ७९ ) ।
भनस्य--(सो.) एक राजा, जो भविष्य के अनुसार प्रवीर राजा का पुत्र था।
भय -- एक राक्षस, जो अधर्म के द्वारा उत्पन्न तीन भयंकर राक्षसों में से एक था। इसकी माता का नाम निर्ऋति था । इसके अन्य दो भाइयों का नाम महाभय एवं मृत्यु था । ये तीनों राक्षस सदा पापकर्म में लगे रहते थे (म. आ. ६६.५५) ।
२. एक बसु, जो द्रोग एवं अभिमति का पुत्र था (मा. ६.१.११) ।
भयंकर -- सौवीर देश का राजकुमार, जो जयद्रथ के रथ के पीछे हाथ में ध्वजा ले कर चलता था। यह द्रौपदीहरण के समय जयद्रथ के साथ गया था। भारतीय युद्ध में अर्जुन ने इसका वध किया ( म. व. २४९.११ - १२; २५५.२७ ) ।
२. एक सनातन विश्वेदेव ( म. अनु. ९१.३१ ) । भयंकरी -- स्कंद की अनुचरी मातृका ( म. श. ४५.४)।
भयद आसमात्य- एक राजा, जो संभवतः असमाति राजा का वंशज था (जै. उ. बा. ४. ८. ७) । भयद राजा का निर्देश पुराणों में भी प्राप्त है ।
भयमान वार्षागिर एक राजा, जो सायणाचार्य के अनुसार, एक वैदिक मंत्रद्रष्टा भी था (ऋ. १.१००० १७) ।
भया -- एक राक्षसी, जो हेति नामक राक्षस की पत्नी थी। इसके पुत्र का नाम विकेश था ( वा. रा. उ. ४.१६) ।
भरत
भयानक - - जालंधर के पक्ष का एक दैत्य (पद्म.
उ. ९ ) ।
भर - एक राजा, जो आर्ष्टिषेण नामक राजर्षि का पुत्र था । इसकी माता का नाम जया, एवं पत्नी का नाम सुप्रभा था।
भरणी-- प्राचेतस दक्ष की सत्ताईस कन्याओं में से एक, जो सोम को विवाह में दी गयी थी। आकाश में स्थित भरणी नक्षत्र यही है । ' चंद्रव्रत' में, भरणी नक्षत्र को चंद्रमा का सिर मान कर पूजा करने का विधान प्राप्त है ( म. अनु. ११०.९) । भरणी नक्षत्र में जो ब्राह्मणों के धेनु का दान करता है, वह इस लोक में बहुतसी गौओं को, तथा परलोक में महान् यश को प्राप्त करता है (म. अनु. ६४.३५ ) ।
भरत - (सो. पूरु.) एक सुविख्यात पूरुवंशीय सम्राट, जो दुष्यन्त राजा का शकुंतला से उत्पन्न पुत्र था ( भरत. दौःषन्ति देखिये )।
२. (सो. इ. ) अयोध्या के दशरथ राजा का पुत्र ( भरत ' दाशरथि ' देखिये ) ।
३. (स्वा. नाभि. ) एक महायोगी राजर्षि, जो ऋषभ राजा का पुत्र था ( भरत 'जड' देखिये) ।
४. एक सुविख्यात मानवसमूह । ऋग्वेद के तीसरे एवं सातवें मण्डल में सुदास एवं तुत्सुओं के सम्बन्ध में इनका निर्देश प्राप्त है (ऋ. ३.३३.११-१२,७.३३.६) ।
वेद में विश्वामित्र को 'भरतों का ऋषभ अर्थात भरतों में श्रेष्ठ कहा गया है। विपाशू एवं शतुद्री नदियों के संगम के उस पार जाने के लिए विश्वामित्र ने भरतों को मार्ग बताया था (ऋ. ३.३३.११ ) । ऋग्वेद में अन्यत्र, भरतों की एक पराजय एवं वसिष्ठ की सहायता से उनकी रक्षा होने का स्पष्ट निर्देश प्राप्त है ( ऋ. ७. ८.४ ) । ऋग्वेद के छठवें मण्डल में इन्हें दिवोदास राजा का सम्बन्धी बताया गया है (ऋ. ६.१६.४-५) । सम्भव है, सुदास एवं दिवोदास यह दोनों राजा स्वयं भरतगण के ये (ऋ. ६.१६. १९ ) ।
ऋग्वेद में दूसरे स्थान पर भरतगण एवं तृत्सुओं को पूरुओं के शत्रु के रूप में वर्णित किया गया है। इस । प्रकार तृत्सुओं तथा भरतों का घनिष्ट सम्बन्ध अवश्य था, चाहे उसका कारण कुछ भी रहा हो। गेल्डनर तृत्सुओं को इनके परिवार का कहता है, तथा ओल्डेनबर्ग भरतों के पारिवारिक गायक वसिष्ठ को ही सुगण कहता है (बेविशे, स्टूडियन २.१३६ ) | हिलेबाट तुत्सुओं तथा
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