Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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ब्रह्मन्
प्राचीन चरित्रकोश
२. बसिलोपन एक गोत्रकार । २. ऋग्वेदी ब्रह्मचारी ।
ब्रह्मबलि - एक आचार्य, जो व्यास की अथर्वन् शिष्यपरंपरा में से देवदर्श ऋषि के चार शिष्यों में से एक था।
ब्रह्मबलिन् - वसिष्ठ कुलोत्पन्न एक ऋषि । ब्रह्ममालिन् - - वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार गण । ब्रह्मरात -- याज्ञवल्क्य ऋषि का पिता ( विष्णु. ३. ५.२ ) । भागवत में इसके नाम के लिए 'देवरात' पाठभेद प्राप्त है ( देवरात ३. देखिये ) । वायु में इसे 'ब्रह्मवाह' कहा गया है।
२. शुकाचार्य का नामान्तर ( भा. १.९.८ ) । ब्रह्मराति - याज्ञवल्क्य ऋषि का पैतृक नाम । ब्रह्मवत् भृगुकुलोत्पन्न एक ऋषि एवं मंत्रकार ब्रह्मवादिनी - प्रभास नामक वसु की पत्नी । ब्रह्मवाह - याज्ञवल्क्य का पिता 'ब्रह्मरात' के नाम के लिये उपलब्ध पाठभेद ( वायु. १.६०.४१ ; ब्रह्मरात देखिये) ।
ब्रह्मवृद्धि छंदोगमाहकि - एक आचार्य, जो मित्र वर्चस् ऋषि का शिष्य था (वं. बा. १) ।
ब्रह्मशत्रु - रावणपक्षीय एक राक्षस ( वा. रा. सुं. ५.५४ ) ।
ब्रह्मसावर्णि दसवे मन्वन्तर का अधिपति मनु, जो ब्रह्मा एवं दक्षकन्या सुव्रता का पुत्र था ( ब्रह्मांड. ४.१. ३९-५१ मार्क. ९१.१० ) | यह चाक्षुष मन्वन्तर में पैदा हुआ था वायु, १००.४२ : मनु देखिये) ।
भागवत में इसे उपश्लोक का पुत्र कहा गया है ( भा. ८. १३.२१) । देवीभागवत में दसवें मन्वन्तर का नाम
भ
भक्षक- एक शूद्र, जो अत्यंत पापी था। एक बार प्यास से अत्यधिक व्याकुल होकर, इसने तुलसी चौरे के पास आकर, उसके पवित्र जल को ग्रहण किया, जिससे इसके समस्त पाप धुल गये । पश्चात्, एक व्याध द्वारा मारे जाने के उपरांत इसे स्वर्ग प्राप्त हुआ ।
भग
'मेरुसावर्णि' बताया गया है, एवं उसके अधिपति के नाते ब्रह्मसावर्णि का नाम न दे कर, वैवस्वतपुत्र प्रपत्र का नाम दिया गया है ( दे. भा. १०.१३ ) ।
ब्रह्मसूनु - ग्यारहवें मन्वन्तर का अधिपति मनु ( मत्स्य. ९.३६ ) ।
ब्रह्महत्या - शंकर के द्वारा निर्माण की गयी एक देवी, जो उसने भैरव नामक राक्षस का वध करने के लिये ' उत्पन्न की थी।
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भैरव नामक राक्षस ने ब्रह्मा का सर काट लिया । फिर शंकर ने इसे निर्माण किया, एवं इसे भैरव के पीछे छोड़ दिया। भारत के सारे शिवस्थानों में इसका उत्सव मनाया जाता है केवल काशी में इसका उत्सव नहीं होता। शिवपुराण में वर्णन किया इसका माहात्म्य अतिशयोक्त प्रतीत होता है।
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ब्रह्मन् एक राक्षस, जो अनायुषा नामक राक्षसीका पौत्र, एवं नृप राक्षस का पुत्र था।
ब्रह्मतिथि काण्य एक वैदिक सूट (८५) । ब्रह्मापेत -- एक राक्षस, जो ब्रह्मधान राक्षस का पुत्र था ( ब्रह्मांड ३.७.९८ ) । यह अश्विन माह में सूर्य के साथ भ्रमण करता हैं ( भा. १२.११.४३ ) । .
ब्रह्मावर्त (खा प्रिय) एक राजा जो पभाएवं जयंती का पुत्र था ( भा. ५.४.१० ) ।
ब्रह्मिष्ठ -- (सो. नील. ) एक राजा, जो मस्त्य एवं वायु के अनुसार मुद्गल राजा का पुत्र था। इसकी स्त्री का नाम इंद्रसेना था।
ब्राह्मण--एक नाग, जो कश्यप एवं कद्रू का पुत्र था । ब्राह्मपुरेयक -- वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण । इसके नाम के लिए 'ब्रह्मकृवेजन' पाठभेद प्राप्त है ।
यह पूर्व जन्म में एक विलासी राजा था, जिसने एक सुन्दर स्त्री का अपहरण कर उसका सतीत्व नष्ट किया था । इसी पापकर्म के कारण इस शूद्रयोनि में अनेकानेक यातनाए भोगनी पड़ी (पद्म. ब्र. २२) ।
भग - एक वैदिक देवता जो सम्पत्ति, वैभव एवं सौभाग्य
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