Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
बृहत्
एक दिन इसने कालभी ऋषि की सुलभा नामक पत्नी | बुबु तक्षन् एवं प्रस्तोक सार्जय राजाओं से भरद्वाज ऋषि को देखा, तथा तुरंत ही उसका हरण कर उसके, साथ को विपुल उपहार प्राप्त होने का निर्देश ऋग्वेद एवं बलात्कार किया। इससे क्रुद्ध हो कर ऋषिपत्नी ने शाप सांख्यायन श्रौतसूत्र में प्राप्त है (सां. श्री. १६.११. दिया, 'तुम कोढ़ी हो जाओ'। फिर यह कोढ़ी हो कर | ११)। इधर उधर घूमने लगा।
__यह स्वयं पणि अतएव हीन जाति का होने के कारण, घूमते घूमते यह शूरसेन राजा के नगर आ पहुँचा, इसके द्वारा कोई ऋषि दान न लेता था। किंतु भरद्वाज जहाँ वह अपनी संपूर्ण नगरी के साथ विमान में बैठकर ऋषि अपने परिवार के साथ निर्जन अरण्य में रहता था, स्वर्ग जाने की तैयारी में था। विमान चालक ने लाख | एवं उसे जीविका का कोई भी साधन उपलब्ध नहीं था। प्रयत्न किया,लेकिन वह उड़ न सका । तब देवदूतों ने कोढ़ी। इस कारण बुबु से गायों का दान (प्रतिग्रह) लेते हुए बुध को दूर भगा देने के लिए शूरसेन से प्रार्थना की, भी, उसे भरद्वाज को कोई दोष न लगा (मनु. १०.१०७) क्यों कि, इस हत्यारे की पापछाया के ही कारण | संभवतः मनुस्मृति में निर्दिष्ट बृधु तक्षन् एवं बृबु तक्षन् विमान पृथ्वी से खिसक न सका।।
एक ही व्यक्ति होंगे। शूरसेन दयालु प्रकृति का धर्मज्ञ शासक था । अतएव | बुबु स्वयं एक पणि था। किंतु 'पाणियों का उन्मूलन उसने बुध को देखा, एवं गजानन नामक चतुरक्षरी मंत्र से | करनेवाला' ऐसा भी आशय ऋग्वेद के निर्देश से ग्रहण इसके कोढ को समाप्त कर, इसे भी स्वानंदपुर ले जाने | किया जा सकता है। यदि ऐसा ही है, तो 'पणि' का की व्यवस्था की.(गणेश. १.७६)।
अर्थ 'व्यापारी लोग' हो कर, बृबु उनका राजा होना . १०. द्रविण देश में रहनेवाला एक ब्राह्मण | इसकी | संभवनीय है। पत्नी अत्यंत दुराचारिणी थी, किंतु दीपदान के पुण्य- बृसय--ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक दानव जाति, जो पणि कर्म के कारण, उसके समस्त पाप नष्ट हो गयें (स्कंद. | एवं पारावत् लोगों के साथ संबंधित थी (ऋ. १.९३.४; २४.७)।
६.३१.१)। ये लोक पणि एवं पारावतों के साथ ११. एक अग्निहोत्र करनेवाला ब्राह्मण, जो मधुवन | 'अर्कोसिया' अथवा 'ड्रैन्जियाना' प्रदेश निवास करते थे। में रहनेवाले शाकुनि नामक ऋषि का पुत्र था (पद्म. सायण के अनुसार, ऋग्वेद के भारद्वाज रचित सूक्त स्व. ३१)।
में इसे 'त्वष्टावृत्रपिता' कहा गया है, एवं इसके पुत्र बुध आत्रेय--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५.१)। । वृत्र का वध करने की प्रार्थना सरस्वती से की गयी है
बुध सौमायन--पंचविंश ब्राहाण में निर्दिष्ट एक | (ऋ. ६.३१.३)। आचार्य, जिसके द्वारा यज्ञदीक्षा ली गयी थी (पं. ब्रा. ऋग्वेद में अन्यस्थान पर, अग्नि एवं सोम के द्वारा .२४.१८.६)। सोम का वंशज होने से, इसे 'सौमायन' | बृसय के वंशजों का वध होने के कारण, उन देवताओं की पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा।
स्तुति की गयी है (ऋ. १.९३.४)। बुध सौम्य--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१०१)। | - बृहच्छुक्ल-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । बुधकौशिक-एक ब्रह्मर्षि, जो रामरक्षा नामक | बृहच्छलोक--एक आदित्य, जो उरुक्रम आदित्य सुविख्यात स्तोत्र का रचयिता है।
का पुत्र था। इसकी माता का नाम कीर्ति था । सौभाग्यादि बुध्न--एक राक्षस, जो कश्यप एवं खशा के पुत्रों में आदित्य इसके पुत्र थे। एक था।
बृहजिह्व-एक राक्षस, जो कश्यप एवं खशा के पुत्रों बलिल आश्वतर आश्वि--बुडिल आश्वतराश्वि | में से एक था। नामक आचार्य का नामान्तर (बुडिल आश्वतराश्वि | बृहजोति-- एक ऋषि, जो महर्षि अंगिरा को सुभा देखिये)। विश्वजित् याग में पठन करने योग्य शस्त्रमंत्रों | से उत्पन्न सात पुत्रों में से एक (म. व. २०८.२)। के संबंध में, इसका गौश्ल नामक आचार्य से वादविवाद |
बृहत्--एक राजा, जो कालेय नामक दैत्य गणों में हुआ था (ऐ. बा. ६.३०; गौश्ल देखिये)।
से आठवे दैत्य के अंश से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ब तक्षन्--ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक उदार दाता, जो | ६७.५५)।। पणि लोगों का अधिपति था (ऋ. ६.४५.३१-३३)।। २. स्वायंभूव मन्वन्तर के जिताजित् देवों में से एक ।
प्रा. च. ६५]