Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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बृहस्पति
इसके द्वारा रचे गए ‘अंगदतंत्र' नामक वैद्यकीय ग्रंथ का निर्देश प्राप्त है ( वायु. १०३ - ५९; अष्टांग. पृ. १८ ) । ग्रन्थ-- १. बृहस्पतिस्मृति; २. बार्हस्पत्यशास्त्रः-ब्रह्मदेव द्वारा रचित ' बाहुदन्तक' नामक ग्रंथ को बृहस्पति ने तीन हज़ार अध्यायों में संक्षिप्त किया जिसे ‘बार्हस्पत्यशास्त्र ' कहते हैं; ३. दानबृहस्पति - बृहस्पति के इस ग्रंथ का निर्देश अपरार्क एवं दानरत्नाकार में प्राप्त हैं; ४. स्वप्नाध्याय ५. चार्वाक दर्शन:बृहस्पति द्वारा रचित इस ग्रंथ का निर्देश प्राप्त है । ६. वास्तुशास्त्रः- बृहस्पति द्वारा वास्तुशास्त्र पर लिखित एक ग्रंथ का निर्देश मत्स्य में प्राप्त है ( मत्स्य. २५२; व्यास देखिये) ।
प्राचीन चरित्रकोश
५. जनमेजय के सर्पसत्र में उपस्थित एक ऋषि । बृहस्पति शास्ति -- एक आचार्य, जो भवत्रात शायस्थि नामक ऋषि का शिष्य ( इंडिशे स्टूडियेन ४. ३७२)।
बैजभृत- भृगुकुल का एक गोत्रकार । बैजवाप -- वृहदारण्यक उपनिषद में निर्दिष्ट एक आचार्य (बृ. उ. माध्यं. २.५.२०१ ४.५.२६, श. ब्रा. १४.५.५.२० ) । बीजवाप का वंशज होने से इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा ।
बैजवापायन - बृहदारण्यक उपनिषद में निर्दिष्ट एक आचार्य (बृ. उ. माध्यं २.५.२०१ ४.५.२० श. ब्रा. १४.५.२०)। बैजवाप का वंशज होने से इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा । इसके नाम के लिए ' वैजवापायन पाठभेद भी प्राप्त है ।
बौधायन
२. एक आचार्य, जिसका नहुष राजा के साथ तत्त्वज्ञान विषय में संवाद हुआ था, जो 'बोध्यगीता' नाम से प्रसिद्ध है ( म. शां. १७१.५८ ) ।
बोने नहुष से कहा, 'मैं दूसरों को जो उपदेश करता हूँ, उसी अनुसार सर्वप्रथम मेरा आचरण रहता है । मै स्वयं किसी का गुरु न हो कर, सारे विश्व को मैं गुरु मानता हूँ। मैं ने पक्षियों से अद्रोह का पाठ सीखा है । उसी तरह पिंगला वेश्या से नैराश्य, मृग से त्याग, इषुकार से एकाग्रता, एवं कुमारी कन्या से एकाकित्व का पाठ मुझे प्राप्त हुआ है ' ( म. शां. १७१.५७-६१ ।
'बोध्य गीता' में प्राप्त उपर्युक्त तत्त्वज्ञान, एवं मंकि ऋषि प्रणीत ' मंकिगीता' का प्रतिपादन दोनो एक ही है ।
• बैजवापि - एक आचार्य, जो संभवतः बीजवाप अथवा बीजवापिन् का वंशज होगा ( मै. सं. १.४.७ ) । बैद — धौम्य ऋषि का एक शिष्य ( म. आ. ६.
७९)।
२. हिरण्यदत्त नामक आचार्य का पैतृक नाम । बोध--यास की ऋक् शिष्य परंपरा में से बौध्य नामक आचार्य के लिये उपलब्ध पाठभेद ( बौध्य देखिये) ।
२. एक ऋषि, जो अथर्ववेद में प्रतिबोध नामक ऋषि के साथ निर्दिष्ट है (अ. वे. ५.३०.१०९ ८.१.१३) । बोध-- वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण । बोध्य -- व्यास की ऋक् शिष्यपरंपरा में से बौध्य नामक आचार्य का नामांतर ( बौध्य देखिये) ।
बौधक - एक आचार्य, जो ब्रह्मांड के अनुसार व्यास की यजुः शिष्यपरंपरा में से याज्ञवल्क्य ऋषि का वाजसनेय शिष्य था ।
बौधायन धर्मसूत्र में इसके नाम के लिए ' बोधायन ' एवं 'बौधायन' दोनो भी पाठ प्राप्त है । कई स्थानों में इसे 'भगवान्' बोधायन कहा गया है।
बौधायन शाखा - यह संभवतः दक्षिण भारत में स्थित कृष्णा नदी के मुहाने में स्थित प्रदेश में रहता होगा । बौधायन शाखा के ब्राह्मण आज भी उसी प्रदेश में अधिकतर दिखाई देते हैं । वेदों का सुविख्यात भाष्यकार सायणाचार्य स्वयं बौधायन शाखा का था । बौधायन शाखा के ब्राह्मणों को 'प्रवचनकार शाखीय ' नामान्तर भी प्राप्त है । गृह्यसूत्रों में स्वयं बौधायन को भी 'प्रवचनकर्ता ' कहा गया है । पल्लव राजा नंदिवर्मन् के ९ वी शताब्दी के अनेक शिलालेखों में ' प्रवचनकार लोगों को दान देने का निर्देश प्राप्त है ( इन्डि, ऑन्टि ८,२७३ - २७४ ) । बौधायन के धर्मसूत्रों में भी दाक्षिणात्य लोगों के रीतिरिवाजों का निर्देश प्राप्त है ।
बौधायन सूत्र --बौधायन के द्वारा रचित बौधायन सूत्रों का संग्रह संपूर्ण अवस्था में अभी तक अप्राप्य है जैसे
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बौधायन - कल्पसूत्रों का प्रवर्तक एक आचार्य, जो संभवत. कृष्ण यजुर्वेदशाखा का ऋषि था । इसके द्वारा विरचित 'बौधायन धर्मसूत्र' में कण्व बोधायन नामक पूर्वाचार्य का निर्देश प्राप्त है (बौ. ध. २.५.२७ ) । संभव है, यह उसी कण्व बोधायन का पुत्र अथवा वंशज होगा । धर्मसूत्र का भाष्यकार गोविंदस्वामिन् के अनुसार, बौधायन को ' काण्वायन' नामान्तर प्राप्त है ( बौ. ध. १.३.१३.) ।