Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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बिल्व
प्राचीन चरित्रकोश
बुध
आदिकल्प में ब्रह्मा ने बिल्व वृक्ष (बेलपत्र वृक्ष)| बीजवाप (बीजवापिन् )-- अत्रिकुलोत्पन्न एक का निर्माण किया, जिसे 'श्रीवृक्ष' भी कहते है। इस | गोत्रकार । वृक्ष के नीचे एक व्यक्ति रहने लगी, जिसे ब्रह्मा ने 'बिल्व' बीभत्सु--अर्जुन का नामान्तर (म. वि. ३९.१०)। नाम दिया। बाद में, इसकी भक्तिभावना तथा व्यवहार बुडिल आश्वतराश्वि वैयाघ्रपद्य--एक गायत्रीसे प्रसन्न हो कर, इन्द्र ने इसे पृथ्वी का राज्य करने के वेत्ता एवं मूलतत्त्वप्रतिपादक आचार्य, जो विदेह जनक लिये कहा । इस महान् उत्तरदायित्य को सभालने के एवं केकयराज अश्वपति का समकालीन था (ब. उ. ५. लिये इसने इन्द्र से वज्र माँगा, जिसके बलपर सुलभता १४.८; श. बा. १०.६.१.१)। संभव है, 'बुलिल के साथ राज्य किया जा सके । इन्द्र ने इससे कहा, 'तुम | आश्वतर अश्वि' तथा यह दोनो एक ही व्यक्ति हो। वज्र ले कर क्या करोगे? जब कभी भी आवश्यकता पड़े, __ अनेक ज्ञाताओं की विद्वत्सभा में इसने आत्मा की तुम मुझे याद कर उसे प्राप्त कर सकते हो। मंबंध में अपने विचार प्रकट किये, एवं 'शर्य' स्वयं ही एक बार कपिल नामक एक शिवभक्त ब्राह्मण घूमता |
आत्मा है, ऐसा अभिमत इसने व्यक्त किया (छां. उ. ५. घामता इसके यहाँ आ पहुँचा। शीघ्र ही दोनों में
११.१)। इसका एवं विदेह जनक का विवाद हुआ था, मित्रता हो गयी । एक दिन इसमें तथा कपिल में शास्त्रार्थ |
जिसमें जनक ने इस पर 'प्रतिग्रह' लेने का दोषारोप हुआ, जिसका विषय था, 'तप श्रेष्ठ है अथवा कर्म'।
किया था। यह चीज यहाँ तक जोर पकड़ गयी, कि इसने वज्र का
संभव है, व्याघ्रपद का वंशज होने के कारण, इसे
| 'वैयाघ्रपद्य' पैतृक नाम प्राप्त हुआ हो।। स्मरण कर उसके द्वारा कपिल के दो टुकडे कर दिये। कपिल में भी शिव की भक्ति तथा अपने तप का बल था बुद्धि-दक्षप्रजापति की कन्या, जो धर्म की पत्नी अतएव उसने शिव के द्वारा पुनः अमरत्व प्राप्त किया। थी। इसे कुल नौ बहने थी, जो सारी धर्म ऋषि की
इधर बिल्व ने विष्णु के पास जा कर उन्हें प्रसन्न कर. पत्नियां थी। इसने एवं इसके बहनों ने ब्रह्माजी द्वारा वर प्राप्त किया कि, संसार के समस्त प्राणी इससे डरते
णी इससे डरते | धर्म का द्वार निश्चित किया था (धर्म देखिये; म. आ. रहें । किन्तु इस वर द्वारा इसे कुछ लाभ न हुआ।
६०.१४)। अन्त में, विष्णुभक्ति से इसका मन शिवभक्ति की ओर। २. एक राजा, जो सावर्णि मनु का पुत्र था। झुका, तथा यह महाकालबन में शिवलिंग की आराधना
। ३. तुषित देवों में से एक। करने लगा। एक बार घुमता हुआ कपिल उधर आ | बुद्धिकामा--स्कंद की अनुचरी मातृका (म. श. पहुँचा । वहाँ इसे इस रूप में देख कर वह अति प्रसन्न | ४५.१२)। इसके नाम के लिए 'वृद्धिकामा' पाठभेद हुआ, तथा दोनो मित्र हो गये (स्कंद. ५.२.८३)। प्राप्त है।
बिल्वक--एक नाग, जो कश्यप एवं कद्र के पुत्रों में | बुदबुदा-एक अप्सरा, जो वर्गा नामक अप्सरा की से एक था।
सखी थी (म. आ. २०८.१९; स. १०.११) ब्राह्मण के बिल्वतेजस्-तक्षककुल का एक नाग, जो जनमेजय |
शाप के कारण, यह ग्राह हो कर जल में रहने लगी। के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.८)।
पश्चात् अर्जुन द्वारा इसका ग्राहयोनि से उद्धार हुआ। पाठभेद (भांडारकर संहिता)-'बलहेड'।
(म. आ. २०८.१९)। बिल्वपत्र-कश्यपवंशीय एक नाग, जो नारदद्वारा
बुध--एक ग्रह, जो बृहसति की पत्नी तारा का मातलि को वरस्वरूप में दिखाया गया था (म. उ.
चन्द्रमा से उत्पन्न पुत्र था (पान. सृ.८२)। यह बृहस्पति१०१. १४)।
पत्नी का पुत्र था, इस कारण इसे 'बृहस्पतिपुत्र' नामांतर
प्राप्त है। क्यों कि, यह चन्द्रमा से उत्पन्न हुआ, इसलिये बिल्वपांडर--एक नाग, जो कश्यप एवं कद्दू के पुत्रों इसे चन्द्र (सोम) वंश का उत्पादक कहा जाता है (पन. में से एक था।
उ. २१५)। बिल्वि--भृगकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इसके नाम के इसकी पत्नी का नाम इला था, जो मनु की कन्या लिये 'भल्लि' पाठभेद प्राप्त है।
थी। इला से इसे पुरूरवस् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ बीज--विश्वेदेवों में से एक। .
| (म. अनु. १४७.२६-२७)। यही पुरुरवस् सोमवंश