Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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बाष्किह
प्राचीन चरित्रकोश
बालीक
प्राप्त हुआ होगा। बौधायन श्रौतसूत्र में इसे शिवि राजा ३. कौरव्य कुल का एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र का वंशज कहा गया है (बौ. श्री. २१.१७)। में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.१२)।
बाहीक-उत्तरी पश्चिम पंजाब में रहनेवाले लोगों के ४. एक वृष्णिवंशीय वीर, जिसके पराक्रम के बारे में लिए प्रयुक्त सामुहिक नाम (श. ब्रा. १.७.३.८)। ये सात्यकि ने श्रीकृष्ण से चर्चा की थी (म. व. १२०.१८)। अग्नि को 'भव' नाम से संबोधित करते थे।
बाहुगर--(सो.) एक राजा, जो भविष्य के अनुसार बाहु--(सू. इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो सगर
सुद्युम्न राजा का पुत्र था। राजा का पिता था (म. शां. ५७.८)। मत्स्य एवं विष्णु बाहुदा सुयशा--परिक्षित् द्वितीय राजा की कुरु में इसे वृक राजा का, एवं वायु में इसे धृतक राजा का पुत्र
वंशीय पत्नी (सुयशा देखिये)। इसके पुत्र का नाम कहा गया है। ब्रह्मांड में इसे 'फल्गुतंत्र' नामान्तर दिया | भीमसेन था। गया है, एवं भागवत में इसके नाम के लिये 'बाहुक' बाहुरि-वसिष्ठ कुल के वाग्ग्रंथि नामक गोत्रकार के पाठभेद प्राप्त है। इसे 'असित' नामान्तर भी प्राप्त है | लिये उपलब्ध पाठभेद (वाग्ग्रंथि देखिये)। (वा. रा. बा. ७०.३०; अयो. ११०.१८)।
बाहवृक्त-- ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक ऋषि, जिसने युद्ध ब्रह्मांड के अनुसार यह कृतयुग में पैदा हुआ, एवं | में शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी (ऋ. ५.४४. १२)। इसने पृथ्वी के सप्तद्वीपों में सात अश्वमेध यज्ञ किये। बाहुवृक्त आत्रेय--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ.५. (ब्रह्मांड, ३.६३.१२१; वायु. ८९.१२३; ह. वं. १.१४; | ७१-७२)। ब्रह्म. ८.३०% शिव. वा. ६१.२३; नारद. १.७१.५)। बाहुशालिन्--धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक । इसे कुल दो पत्नियाँ थी। उनमें से केशिनी अथवा |
बाह्य--अंगिराकुलोत्पन्न एक ऋषि । कालिंदी नामक पत्नी से इसे सगर नामक पुत्र उत्पन्न हुआ |
२. (सो. क्रोष्टु.) एक यादववंशीय राजा, जो वायु के (सगर देखिये)। .
अनुसार भजमान राजा का पुत्र । हैहय राजा तालजंघ ने शक, कंबोज आदि राजाओं के |
बाह्यकर्ण-एक नाग, जो कश्यप एवं कद्दू के पुत्रों में सहाय्यता से इसपर आक्रमण कर इसका पराजय किया।
से एक था (म. आ. ३१.९)। इस पराजय के पश्चात् , यह और्व ऋषि के आश्रम में रहने के लिए गया, एवं उसी आश्रम में इसकी मृत्यु हो
बाह्यका--यादवराजा सात्वत भजमान की पत्नी जो गयी (मत्स्य. १२.४०; पद्म. सृ. ८; लिंग. १.६६.१५,
संजय राजा की कन्या थी। इसे शताजित् , सहस्राजित् एवं विष्णुधर्म. १.१६)।
आयुताजित् नामक तीन पुत्र थे। २. एक शक्तिशाली राजा, जिसे भारतीय युद्ध के | बाह्यकुंड--कश्यप वंश में उत्पन्न एक नाग, जिसे समय पाण्डवों की ओर से रणनिमंत्रण भेजा गया था | नारद ने इंद्रसारथि मातलि को वरस्वरूप में दिखाया था (म. उ. ४.२९)।
(म. स. १०१. १०)। ३. सुंदरवेग वंश का एक 'कुलपांसन' राजा, जिसने
बालीक--(सो. पूरु.) कुरुवंशीय प्रतीप राजा का अपने दुर्वर्तन के कारण अपने कुल का विनाश कराया
पुत्र, जो देवापि एवं शन्तनु का ज्येष्ठ भाई था (भा. ९. (म. उ. ७२.१३)।
२२)। इसकी माता का नाम सुनंदा था, जो शिबि देश ४. (स्वा. उत्तान.)एक राजा, जो पृथु राजा का पुत्र था।
की राजकन्या थी (म. आ. ८९.५२)। शिबि राजा को ५. इंद्रसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ।
पुत्र न था, जिस कारण यह उस राज्य का उत्तराधिकारी ६. स्वारोचिष मनु का एक पुत्र ।
बन गया । प्रतीप का पुत्र होने से इसे 'प्रातिपीय' उपाधि बाहुक-(सू. इ.) इक्ष्वाकुवंशीय बाहु राजा का | प्राप्त थी। भागवत के अनुसार, इसके पुत्र का नाम सोमदत्त नामान्तर (बाहु १. देखिये)। भागवत में इसे वृक राजा | था ( भा. ९. २२. १८)। का पुत्र कहा गया है।
| भारतीय युद्ध में, यह कौरवों के पक्ष में शामिल था। २. निषधराज नल राजा का नामान्तर, जब की वह दुर्योधन की ग्यारह अक्षौहिणी सेनाओं के जो सेनापति सूतअवस्था में अयोध्यानरेश ऋतुपर्ण के यहाँ रहता चुने गये थे, उनमें यह भी एक था । यह स्वयं था (म. व. ६४.२; नल १. देखिये)।
| अतिरथि था (म. उ. १६४. २८)। धृष्टकेतु, द्रुपद, ५०९