Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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नरक
प्राचीन चरित्रकोश
नेरक
२. तेरह सैहिकेयों में से एक। यह विप्रचिति दानव | थे। उस समय समस्त देवमंडल को साथ ले कर इंद्र वहाँ तथा दितिकन्या सिंहिका का पुत्र था ।
आया । उस ने कृष्ण से पापी नरकासुर का वध करने की ३. एक असुर, एवं प्राग्ज्योतिषपुर का राजा । पृथ्वी | प्रार्थना की । श्रीकृष्ण ने भी नरक का वध करने की का पुत्र (भूमिपुत्र) होने के कारण, इसे भौम नाम भी | प्रतिज्ञा की। प्राप्त था । इसकी माता भूदेवी ने विष्णु को प्रसन्न कर, पश्चात् सत्यभामा एवं इंद्र को साथ ले कर तथा गरुड इसके लिये 'वैष्णवास्त्र' प्राप्त किया था। उसी अस्त्र | पर आरुढ हो कर, श्रीकृष्ण प्राग्ज्योतिषपुर राज्य के के कारण, नरकासुर बलाढ्य एवं अवध्य बना था। अपनी | सीमा पर पहुँच गया । उस राज्य की सीमा पर मुर दैत्य मृत्यु के पश्चात् , यही अस्त्र इसने अपने पुत्र भगदत्त को की चतुरंगसेना खड़ी थी। उस सेना के पीछे मुर दैत्य के प्रदान किया (म. द्रो. २८)।
बनाये हुएँ छः हजार तीक्ष्ण पाश थे। श्रीकृष्ण ने उन नरक का राज्य नील समुद्र के किनारें था। इसकी पाशों को काट कर, एवं मुर को मार कर राज्य की सीमा राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर अथवा मूर्तिलिंग नगर में थी। में प्रवेश किया। पश्चात् पर्वतों के चट्टानों के घेरे के इसके पाँच राज्यपाल थे।-- हयग्रीव, निशंभ, पंचजन, | रक्षक, निशुंभ पर श्रीकृष्ण ने हमला किया। इस युद्ध में विरुपाक्ष एवं मुर (म. स. परि.१क्र. २१ पंक्ति. १००६)। निशुंभ, हयग्रीव आदि आठ लाख दानवों का वध कर पृथ्वी भर की सुंदर स्त्रियाँ, उत्तम रत्न एवं विविध श्रीकृष्ण आगे बढ़ा । पश्चात् ओदका के अंतर्गत विरुपाक्ष वस्त्र आदि का हरण कर, नरक अपने नगर में रख देता एवं पंचजन नाम से प्रसिद्ध पाँच भयंकर राक्षसों से श्रीकृष्ण था। किंतु उन में से किसी भी चीज का यह स्वयं उपभोग का युद्ध हुआ। उनको मार कर श्रीकृष्ण ने प्राग्ज्योतिषपुर नहीं लेता था।
नगर में प्रवेश किया। ____गंधर्व, देवता, एवं मनुष्यो की सोलह हजार एक सौ प्राग्ज्योतिषपूर नगरी में, श्रीकृष्ण को दैत्यों के साथ कन्याएँ, एवं अप्सराओं के समुदाय में से सात अप्सराओं | बिकट युद्ध करना पड़ा। उस युद्ध में लक्षावधि दानवों को का नरक ने हरण किया था। त्वष्टा की चौदह वर्ष की | मार कर, श्रीकृष्ण पाताल गुफा में गया । वहाँ नरकासुर कन्या कशेरु का, उसे मुछित कर नरक ने अपहरण | रहता था। वहाँ कुछ देर युद्ध करने के बाद, श्रीकृष्ण ने किया था। उस समय इसने हाथी का मायावी रूप धारण | चक्र से नरकासुर का मस्तक काट दिया (म. स. परि. १क्र. किया था (म. स. परि. १क्र. २१पंक्ति. ९३८-९४०)।| २१ पंक्ति. ९९५-११५५)। इसका वध करने के पहले, इंद्र का ऐरावत हाथी एवं उचैःश्रवा नामक अश्व का | श्रीकृष्ण ने इसे ब्रह्मद्रोही, लोककंटक एवं नराधम कह कर
भी इसने हरण किया था। देवमाता अदिति के कुंडलों | पुकारा (म. स. परि. १क्र. २१ पंक्ति. १०३५)। ' का भी नरक ने अपहरण किया था।
नरकासुर एवं श्रीकृष्ण के युद्ध की कथा हरिवंश में नरक ने पृथ्वी से अपहरण किया सारा धन, एवं | कुछ अलग ढंग से दी गयी हैं। पंचजन दैत्य का वध स्त्रियाएँ अलका नगरी के पास मणिपर्वत पर 'औदका' करने के पश्चात् , श्रीकृष्ण ने प्राग्ज्योतिषपुर नगरी पर नामक स्थान में रखी हुई थी। मुर के दस पुत्र एवं अन्य | हमला किया। प्रधान राक्षस, उस अंतःपुर की रक्षा करते थे। इसके राज्य नरकासुर से युद्ध शुरु करने के पहले श्रीकृष्ण ने की सीमा पर, मुर दैत्य के बनाये हुएँ छः हजार पाश | पांचजन्य शंख पूँका । उस शंख की आवाज़ सुन कर नरक लगाएँ गये थे। उन पाशों के किनारों के भागों में छुरे | अत्यंत क्रोधित हुआ, एवं अपने रथ में बैठ कर युद्ध के लगाएँ हुए थे। इस के बाद बड़े पर्वतों के चट्टानों के ढेर | लिये बाहर चला आया । नरक का रथ अत्यंत विस्तृत, से एक बाड़ लगाई गयी थी। इस ढेर का रक्षक निशंभ मौल्यवान एवं अजस्त्र था। इसके रथ को हजार घोडे था। औदका के अंतर्गत लोहित गंगा नदी के बीच | जोते गये थे। इस प्रकार सुसज्ज हो कर, नरकासुर युद्धभूमि विरूपाक्ष एवं पंचजन ये राक्षस उस नगरी के रक्षक थे। में आया, एवं श्रीकृष्ण से उसका तुमुल युद्ध हुआ। (म. स. १.२१.९५३)।
| आखिर श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट नरक का वर्तन हमेशा ही देव तथा ऋषिओं के खिलाफ लिया । फिर नरकासुर की माता ने, श्रीकृष्ण के पास आ ही रहता था । स्वयं श्रीकृष्ण का भी इसने अपमान कर, अदिति के कुंडल एवं प्राग्ज्योतिषपुर का राज्य उसे किया था। एक बार सारे यादव दाशाही सभा में बैठे हएँ । अर्पण कर दिया (ह. व. २.६३; भा. १०.५९) पश्चात्
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