Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पिप्पलाद
प्राचीन चरित्रकोश
पिशाच
अथर्ववेदसंहिता का संकलन करते समय पिप्पलाद ने सुकेशा भारद्वाज ने छठा प्रश्न किया, 'पोडश कल ऐन्द्रजालिक मंत्रों का संग्रह किया था। कुछ दिनों बाद | पुरुष' (परमात्मा) का रूप क्या है ? ' पिप्पलाद ने पैप्पलाद शाखा के नौ खण्ड हुये जिनमें शौनक तथा | उत्तर दिया, "वह हर एक व्यक्ति के शरीर में निवास पैप्पलाद ( काश्मीरी ) प्रमुख थे। अथर्ववेद के पैप्पलाद | करता है, जिसके कारण वह सर्वव्यापी है। बहती गंगा शाखा के मूलपाठ को शाबें तथा ब्लूमफील्ड ने जिस प्रकार समुद्र में विलीन हो जाती है उसी प्रकार समस्त हस्तलिपि के फोटो-चित्रों में सम्पादित किया है, जिसका | सृष्टि उसी में विलीन हो जाती है। केवल पुरुष शेष कुछ अंश प्रकाशित भी हो चुका है।
रहता है। इस ज्ञान की प्राप्ति पर मानव को अमरता ___ अन्यग्रंथ-पिप्पलाद का 'पैप्पलाद ब्राहाण' नामक | प्राप्त होती है । वही परब्रह्म है।" एक ब्राह्मणग्रंथ उपलब्ध है, जिसके आठ अध्याय है।। इन छै संवादों में पिप्पलाद द्वारा व्यक्त किये गये उसके अतिरिक्त 'पिप्पलाद श्राद्धकल्प' एवं 'अगस्त्य |
विचारों में उनके क्रमबद्ध तत्त्वज्ञान का प्रत्यक्ष परिचय कल्पसूत्र' नामक पिप्पलादशाखा के और दों ग्रंथ भी प्राप्त है। उपलब्ध हैं।
२. परिक्षित् राजा के पास आया हुआ एक ऋषि तत्त्वज्ञान-प्रश्नोपनिषद में एक तत्त्वज्ञानी के नाते |
(भा. १.१९.१०)। इसका निर्देश प्राप्त है। मोक्ष शास्त्र को पैप्पलाद कहने
पिप्पलायन--(स्वा. प्रिय.) एक भगवद्भक्त राजा।
ऋषभ देवों द्वारा जयंती नामक स्त्री से उत्पन्न नौ सिद्धपुत्रों । की प्रथा थी (गर्मोपनिषद्)। प्रश्नोपनिषद, अथर्ववेद का एक उपनिषद है।
में से एक (भा. ५.४.११, ११.३.३५ )। पिप्पलाद के पास सुकेशा भारद्वाज, शैव्य सत्यकाम,
पिप्पल्य--कश्यपकुल का एक गोत्रकार । सौर्यायणि गाये, कौसल्य आश्वलायन, भार्गव वैदर्भी तथा | पिम्र--वैदिक कालीन एक असुर राजा, एवं इंद्र का कबंधिन् कात्यायन आदि ऋषि ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने आये | शत्रु । ऋजिश्वन ऋषि के लिए इंद्रने इसको कई बार थे। उन्हें एक वर्ष तक आश्रम में रहने के बाद, प्रश्न पूछने | पराजित किया था (ऋ. १.१०१.१-२, ४.१६.१३, ५.. की अनुज्ञा प्राप्त हुयी । उन्होंने जिस क्रम से प्रश्न पूछे | २९.११, ६.२०.७)। वह ब्रह्मज्ञान की स्वरूपता समझने के लिये पर्याप्त हैं। यह अनेक दुर्गो का स्वामी था. (ऋ. १.५१.५)। __कबंधिन् कात्यायन ने प्रथम प्रश्न किया, 'किस मूलतत्त्व यह दास था (ऋ.८.३२.२); एवं. काली संतानोवाले से सृष्टि पैदा हुयी?' पिप्पलाद ने कहा, 'प्रजापति ने | तथा काली जाति के लोग इसके मित्र थे। 'रयि' (अचेतन) एवं प्राणों (चेतन) के मिथुन से | रॉथ के अनुसार, यह एक दानव था (सेन्ट पीटर्सबर्ग सृष्टि का निर्माण किया
कोश)। लुडविग इसे 'मानवशत्र' मानते हैं । 'पिग्रु' भार्गव वैदर्भी ने दूसरा प्रश्न किया ' उत्पन्न सृष्टि की का शब्दार्थ 'प्रतिरोधक' होता है। धारणा किन देवताओं द्वारा होती है। पिप्पलाद ने उत्तर | पिलि--भृगुकुल का एक गोत्रकार । दिया, 'प्राण देवता द्वारा सृष्टि की धारणा होती है। पिशंग--वैदिककालीन एक ऋषि । पञ्चविश ब्राह्मण
कौसल्य आश्वलायन ने तीसरा प्रश्न किया 'प्राण की | के अनुसार, सपोत्सव करने वाले दो 'उन्नेतृ' पुरोहितों उत्पत्ति कैसे होती है ? पिप्पलाद ने उत्तर दिया, 'आत्मा में से यह एक था (पं. बा. २५.१५.३)।
। २. धृतराष्ट्रकुल में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के सौर्यायणि गाय ने चौथा प्रश्न किया' 'स्वप्न में सर्पसत्र में जलकर मर गया था । जागृत तथा निद्रित कौन रहता हैं ?' उत्तर मिला, 'निद्रा ३. मणिवर एवं देवजनी के 'गुह्यक' पुत्रों में से एक में आत्मा केवल जागृत रहती है, शेष सब निद्रा में | ( मणिवर देखिये)। विलीन हो जाते हैं।
पिशाच--दानवों का एक लोकसमूह । ये लोग शैव्य सत्यकाम ने पाचवाँ प्रश्न किया, 'प्रणव का उत्तर-पश्चिम सीमा प्रदेश, दर्दिस्थान, चित्रल आदि ध्यान करने से मानव की इच्छा कहाँ तक सफल होती | प्रदेशों में रहते थे । काफ़िरिस्थान के दक्षिण की ओर है ?" उत्तर मिला, "सदैव प्रणव ध्यान करनेवाला मनुष्य | एवं लमगान (प्राचीन-लम्याक) प्रदेश के समीप रहने आत्मज्ञान प्राप्त कर अमरता को प्राप्त होता है।" वाले, आधुनिक 'पशाई-काश्मिर' लोग सम्भवतः यही