Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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बलराम
प्राचीन चरित्रकोश
बलराम
पराजित कर सका । जरासंध का वध करने के लिये, एवं इसने दुर्योधन को गदायुद्ध की शिक्षा भी दी (विष्णु. इसने तपस्या कर 'संवर्तक' नामक हल, एवं 'सौनंद' ४. १३; भा. १०. ५७; सत्राजित् देखिये)। बलराम नामक मुसल प्राप्त किया था (ह. वं. २.३५.५९-६५; के नाराज होने की यह कथा भागवत में नहीं दी गयी है । विष्णु. ५.२२.६-७)।
दुर्योधन एवं भीम उसके शिष्य थे। अतएव यह विद्याध्ययन के उपरांत, ककुमीकन्या रेवती से इसका नहीं चाहता था कि, इसके दोनो शिष्य आपस में लड़कर विवाह हुआ, तथा अधिकाधिक यह आनर्त देश में मृत्यु को प्राप्त हो। इसी कारण भारतीय युद्ध के प्रारंभ अपने श्वसुर के यहाँ ही रहता था। जरासंध इतनी में, जब दुर्योधन कृष्ण की मदद माँगने के लिये आया बार कृष्ण से हार चुका था, फिर भी चिन्ता का कारण था, तब इसने कृष्ण से कहा था, 'कौरव एवं पांडव बना हुआ था; अतएव कृष्ण ने मथुरा से हटकर अपनी हमारे लिये एकसरीखे है। इसी कारण सहाय्यता करनी राजधानी द्वारका बनायी।
ही हो, तो वह हमने दुर्योधन की करनी चाहिए। एक बार यह नंद तथा यशोदा से मिलने के लिए | किन्तु कृष्ण ने इसकी बात न सुनी । इस कारण, भारतीय गोकुल गया था, तथा वहाँ दो माह रहा भी था। यह युद्ध के पूर्व ही, यह कृष्ण से क्रुद्ध हो कर, तीर्थयात्रा के आसवपान का बड़ा शौकीन था, अतएव इसके लिये | लिये चला गया । उसकी भी व्यवस्था की गयी थी।
___ बलराम की तीर्थयात्रा--बलराम की तीर्थयात्रा का . जल्दबाज स्वभाव--यह वीरपराक्रमी एवं अजेय था. विस्तृत वर्णन भागवत तथा महाभारत शल्यपर्व में दिया , उसी तरह यह इतना भावुक एवं जल्दबाज़ भी था कि, | गया है। भागवत की तीर्थयात्रावर्णन में विभिन्न प्रकार उतावलेपन में ऐसा कार्य कर बैठता कि, जिससे परिवार के तीर्थस्थानों का विवरण प्राप्त है। के लोक तंग आ जाते। इसमें किसी चीज़ के सोचने | बलराम का प्रथम संकल्प 'प्रतिलोम सरस्वती यात्रा'. समझने की विवेकपूर्ण समझदारी न थी।
करने का था। इस निश्चय के अनुसार यह प्रभास, हस्तिनापुर में दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा के विवाह के | पृथूदक, बिंदुसर, त्रितकूप, सुदर्शन, विशाल, ब्रह्मतीर्थ, संबंध में स्वयंवर था। बलराम के भतीजे कृष्णपुत्र सांब | चक्रताथ, सरस्वता, यमुना
चक्रतीर्थ, सरस्वती, यमुना एवं गंगा नदी के तट पर । ने स्वयंवर में जा कर, लक्ष्मणा का हरण किया। किन्तु | स्थित तीर्थो की यात्रा कर के; नैमिषारण पहुँच गया। दुर्योधन द्वारा हस्तिनापुर में दोनों पकड़ कर लाये गये। नैमिषारण्य में ऋषिमुनियों की पुराणचर्चा चल रही थी। दुर्योधन कौरववंशीय होने के कारण, कभी न चाहता था | सारे मुनियों ने उत्थापन दे कर, इसके प्रति आदरभाव प्रकट कि उसकी कन्या यादववंशीय कृष्णपुत्र सांब को ब्याही | किया। किन्तु पुराणचर्चा में मुख्य सूत का काम करनेवाला जाये। उक्त घटना को सुनते ही बलराम हस्तिनापुर गया। रोमर्हषण नामक ऋषि धर्मकार्य में व्यस्त होने के कारण, क्रोधाग्नि में सारे कौरवपक्षीय राजाओं को इसने पराजित | इसे उत्थापन न दे सका। इस कारण क्रोधित हो कर, शराब किया, एवं इसने हस्तिनापुर को अपने हल से खीच उसकी के नशे में इसने उसका वध किया (भा. १०.७८, २८; रचना ही धुमायी, एवं उसको तेढामेढ़ा बना दिया (विष्णु./ रोमहर्षण देखिये) । पुराणचर्चा समारोह मे एक ही ५.३५: भा. १०.६८; लक्ष्मणा २. देखिये)। यही कारण | कोलाहल मच गया, एवं सारे ऋषियों ने इसे ब्रह्महत्त्या है कि, हस्तिनापुर का धरातल आज भी ऊँचानीचा के पातक से दोषी ठहराया। इस पातक से छुटकारा पाने अजीब तरह का है।
के लिये, यह ग्यारह वर्षों की यात्रा करने के लिये यादववंशीय राजा सत्राजित् के पास स्यमंतक मणि | पुनः निकला। था, जिसे कृष्ण चाहता था । पर सत्राजित् ने उसे देने से | मार्कंडेय के अनुसार, सूत का वध इसके द्वारा द्वारका इन्कार कर दिया। उस मणि के संबंध में सत्राजित् एवं के समीप स्थित रैवतोद्यान में हुआ (मार्क. ६. ७ कृष्ण के दरम्यान हुए झगड़े में, बलराम ने सत्राजित् का पक्ष | ३५-३६)। किन्तु महाभारत एवं भागवत में यह स्वीकार लिया, एवं लोगों के सामने कृष्ण को दोषी ठहराते | वधस्थान नैमिषारण्य ही बताया गया है । यह वध बलराम हुए आरोप लगाया, 'तुम मणि के इच्छुक थे, तुमने ही के यात्रा के मध्य में हुआ, ऐसा भागवत का कथन है; स्यमंतक चुराया है। इस घटना के कारण बलराम कृष्ण से | किन्तु मार्कडेय के अनुसार, यह वध बलराम के यात्रारंभ इतना नाराज हुआ कि, बिना कुछ कहे मिथिला चला गया, | में ही हुआ था।
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