Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
बाण
प्राचीन चरित्रकोश
बाण
इसे 'भूतों' का राजा कहा गया है ( पद्म. २५.११)। शोणितपुर नगरी बचा दी, तथा अन्य दो को जलने दिया । यह सहस्रबाहु होने के कारण, अत्यधिक पराक्रमी एवं | वे दोनों जलकर क्रमशः 'शैल' तथा 'अमरकंटक' पर्वत पर युद्ध में अजेय था।
| गिरी। इसी कारण उन दो स्थानों पर दो तीर्थ बन गये __बलिपत्नी अशना से उत्पन्न हुए शतपुत्रों में यह ज्येष्ठ | (मत्स्य १८७-१८८; पद्म. स्व. १४-१५)। था। मत्स्य में इसकी माता का नाम विंध्यावलि दिया। एक बार खेल में निमग्न शिवपुत्र कार्तिकेय को देख कर गया है (मत्स्य. १८७.४०)। इसकी राजधानी दैत्यों के | यह प्रसन्नता से विभोर हो उठा। तथा इसके मन में यह सुविख्यात त्रिपुरो में से शोणितपुर में थी। कई ग्रंथों में, उस | इच्छा जागृत हुयी कि मैं शंकर-पुत्र बनूं। यह सोच कर नगरी का निर्देश 'लोहितपुर' नाम से भी किया गया है। इसने कड़ी तपस्या की, जिससे प्रसन्न हो कर शंकर ने इसे हरिवंश में बाण की जीवनकथा विस्तृत रूप में दी गयी है | वर माँगने के लिए कहा। इसने शंकर से प्रार्थना की, 'मेरी (ह. वं. २.११६-१२८)। .
उत्कट अभिलाषा है कि, कार्तिकेय की भाँति माता पार्वती दैत्यों की ये त्रिपुर नगरियों आकाश में सदैव संचरण | मुझे पुत्र के रूप में ग्रहण करे। शंकर ने वरप्रदान किया करती थीं। ये निर्भेद्य थी, जिन्हें कोई जीत न सकता करते हुए, कार्तिकेय के जन्मस्थान का नित्य के लिए था। इसके रहस्य का कारण थीं दैत्य स्त्रियाँ, जिनके पति
इसे अधिपति बनाया (ह. बं. २.११६.२२)। कार्तिकेय सेवा के प्रभाव से ये नगरियाँ पृथ्वी पर न आती थी तथा ने प्रसन्न हो कर इसे अपना तेजस्वी ध्वज एवं मयूर वाहन आकाश में ही तैरती थी। दैत्य लोग इन नगरियों में प्रदान किया। शिवपुत्र द्वारा दिये गये ध्वज में मयूर की रहते तथा देवों एवं ऋषियों के आश्रमों में जाकर उत्पात | छाप थी, जिसका सर मयूर का न हो कर मनुष्य का था मचाते। इससे अब कर देव ऋषि आदि भगवान् शंकर के | (ह. वं. १.११६.२२; शिव. रुद्र. यु. ५३)। पास गये, तथा अपने कष्टों का निवेदन कर उबारने के शंकर द्वारा प्राप्त वरों का निर्देश शिव पुराण में भी लिए प्रार्थना की।
प्राप्त है, लेकिन उसमें कुछ भिन्नता हैं। शिवपुराण में शंकर भगवान ने भक्तों की मर्मान्तक वाणी को सुनकर लिखा है कि, इसने भगवान शंकर के साथ ताण्डव में नारद को स्मरण किया। याद करते ही, स्मरणगामी | भाग लेकर अत्यधिक सुन्दर नृत्य किया था, जिससे प्रसन्न नारदं तत्काल प्रकट हुए। शंकर ने देवर्षि नारद से हो कर इसे ये वर प्राप्त हुए थे। इसके सिवाय इसने निवेदन किया कि, वह राक्षसों की नगरियों में जाकर वहाँ शंकर से यह भी वर माँगा कि, वह भविष्य में उसके की पत्नियों का ध्यान पतिसेवा से हटाकर दूसरी ओर परिवार का रक्षण करता हुआ इसे चिरन्तन आनंद लगा दें, जिससे ये नगर पृथ्ची पर आ सकें, तथा इन प्रदान करता रहेगा। शंकर ने इसे यह वरदान दे कर, वह अजेय राक्षसों का नाश हो सके।
स्वयं अपने पुत्र कार्तिकेय एवं गणेश के साथ इसकी रक्षार्थ ___शंकर के वचनों को स्वीकार कर, नारद वहाँ गया,
इसके नगर में रहने लगा (शिव. रुद्र. यु. ५१)। तथा वहाँ की स्त्रियों को विभिन्न प्रकार के अन्य धार्मिक | भागवत के अनुसार, तांडवनृत्य के समय इसने शिव पूजा-पाठों की ओर उनका ध्यान आकर्षित कर पति- के साथ वाद्यवादन किया था, जिससे प्रसन्न हो कर उसने सेवा व्रत से हटा दिया। जिसके कारण, नगरों की शक्ति | इसे उक्त वरप्रदान किये थे (भा. १०.६२)। कम होने लगी। ऐसी स्थिति देखकर, शंकर ने तीन | बाण ने शंकर द्वारा प्राप्त किये हुए इन वरों के बल नोकों वाले बाण से तीनों नगरों को वेध दिया। शंकर ने | पर, अनेकानेक बार इन्द्रादि देवों को जीत कर, जब जैसा भग्नि को भी आज्ञा दी कि, ये त्रिपुर नगरियों जला दी | चाहा किया। किसी में इतनी शक्ति न थी, जो इसके तेज जाय । अग्नि ने आज्ञा पाते ही उन्हें भस्मीभूत करना | के सामने ठहर सके। एक बार महाबली बाण ने शंकर शुरू किया।
से कहा, 'मेरी अनंत शक्ति मेरे अंदर लड़ने के लिए शिति -नगरों को जलता देख कर, बाण अपनी | मुझे मजबूर कर रही है; पर कोई भी मेरी टवकर का नजर नगरी से अपने उपात्यदेव का शिवलिंग साथ ले कर नहीं आ रहा। हज़ार बाहुओं को तृप्ति करने के लिए मैं बाहर निकला । यह शिवभक्त था, अतएव अपने को कष्ट | दिग्गजों से भी लड़ने गया, पर वे भी मेरी शक्ति के में पाकर इसने 'तोटक छन्द' के द्वारा, शंकर की पूजा कर सामने ठहर न सके । अब मै युद्ध करना चाहता हूँ। मुझे के उसे प्रसन्न किया। प्रसन्न हो कर शंकर ने इसकी । उसमें ही शान्ति है। यह युद्ध कब होगा ?' उत्तर देते हुए
५०३