Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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बाण
प्राचीन चरित्रकोश
बाण
शंकर ने कहा 'जिस दिन कार्तिकेय द्वारा दिया गया ध्वज | पुत्र कार्तिकेय की रक्षा के लिये आई थी, तथा उन्हें अब ध्वस्त होगा, उसी के बाद तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण होगी। | दुबारा इसकी रक्षा के लिए आना पड़ा, क्योंकि वह . तुम्हे युद्ध का अवसर प्राप्त होगा। पश्चात इसके ध्वज | वचनबद्ध थीं। कृष्ण ने पार्वती से अलग रहने के लिए पर इन्द्र का वज्र गिरा, तथा वह ध्वस्त हो गया। कहा, किन्तु वह न मानी तथा कृष्ण से निवेदन किया,
उषा-अनिरुद्ध-प्रणय-इसके उषा नामक एक कन्या । याद तुम चाहते हो कि में पुत्रवती रहू, मेरा पुत्र जीवित थी, जो अत्यधिक नियंत्रण में रख्खी जाती थी। एक बार
रहे, तो बाण को जीवनदान दो। मैं इसकी रक्षा के ही एक पहरेदार द्वारा इसे यह सूचना प्राप्त हुई कि, उषा
| लिये तुम्हारे सम्मुख हूँ' । कृष्ण ने प्रत्युत्तर देते हुए कहा किसी पर पुरुष से अपने सम्पर्क बढ़ा रही हैं । इससे
'मैं तुम्हारी उपेक्षा नहीं कर सकता, किन्तु यह अहंकारी संतप्त होकर, सत्यता जानने की इच्छा से यह उसके
| हैं, इसे अपने हज़ार बाहुओं पर गर्व है; अतएव इसके महल गया। वहाँ इसने देखा कि. उषा एक पुरुष के साथ | दो हाथों को छोड़कर समस्त हाथों को नष्ट कर दंगा'। द्यूत खेल रही है। दोनों को इस प्रकार निमग्न देखकर | इतना कह कर कृष्ण ने इसको दो हाथों को छोड़कर शेष यह क्रोध से लाल हो उठा, तथा अपने शस्त्रास्त्र तथा | हाथ काट दिये (पभ. ३. २.५०)। भागवत तथा गणों के साथ उस पर आक्रमण बोल दिया । पर उस | शिवपुराण के अनुसार विष्णु ने इसके चार हाथ रहने पुरुष का बाल बाँका न हुआ। उसने बाण के हर वार का | दिये, तथा शेष काट डाले (भा. १०.६३.४९)। कस कर मुकाबला किया। वह पुरुष कोई साधारण नहीं, शिवपुराण में कृष्ण द्वारा इसका वध न होने कारण .' वरन् कृष्ण का पौत्र अनिरुद्ध ही था। अन्त में बाण ने दिया गया है । जब कृष्ण ने इसका वध करना चाहा, तब अपने को गुप्त रखकर अनिरुद्ध पर नागपाश छोड़े। उन शिव ने उनसे कहा 'दधीचि, रावण एवं तारकासुर नागों ने उषा तथा अनिरुद्ध को चारों ओर से जकड़ ।
जैसे लोगों का वध करने के पूर्व तुमने मेरो संमति ली । लिया, तथा दोनों कारागार में बन्दी बनाकर डाल दिये | थी। बाण मेरे लिये पुत्रवत् है, उसको मैने अमरत्व : गये।
प्रदान किया है; अतः मेरी यही इच्छा है कि, तुम इसका कृष्ण से युद्ध-अनिरूद्ध के कारावास हो जाने की | वध न करा। सूचना जैसे ही कृष्ण को प्राप्त हुयी, वह अपनी यादव
| वरप्राप्ति--भागवत के अनुसार कृष्ण ने इसे इस. सेना के साथ शोणितपुर पहुँचा, तथा समस्त नगरी को |
लिये जीवित छोडा, क्यों कि, उसने इसके प्रपितामह सैनिकों से घेर लिया। दोनों पक्षों में घनघोर युद्ध हुआ।
' प्रह्लाद को वर प्रदान किया था कि, वह उसके किसी वंशज वाण की रक्षा के लिए उसकी ओर से शंकर भगवान् ,
का वध न करेगा। इसी कारण इसका वध नहीं किया, कार्तिकेय एवं गणेश भी थे । इस युद्ध में गणेश का एक
केवल गर्व को चूर करने के लिये हाथ तोड़ दिये । इसके दाँत भी टूटा, जिससे उसे 'एकदंत' नाम प्राप्त हुआ।
साथ ही कृष्ण ने वर दिया, 'तुम्हारे ये, बचे हुए हाथ इस युद्ध में, पन के अनुसार, बाण का युद्ध सबसे
जरामरण रहित होंगे, एवं तुम स्वयं भगवान् शिव के प्रमुख पहले बलराम से हुआ, तथा भागवत एवं शिवपुराण के |
सेवक बनोंगे (भा. १०.६३)। अनुसार, इसका सर्वप्रथम युद्ध सात्यकि से हुआ। कृष्ण के साथ इसका युद्ध बाद में हुआ, जिसमें कृष्ण के अपार | युद्ध समाप्त होने पर भगवान शिव ने भी इसे अन्य बलपौरुष के समक्ष इसके सभी प्रयत्न असफल हो | वर भी दिये, जिनके कारण इसे अक्षय गाणपत्य, बाहुगये । इन समस्त युद्धों में, पहले बाण की ही जीत | युद्ध में अग्रणित्व, निर्विकार शंभुभक्ति, शंमुभक्तों के नज़र आती थी; किन्तु अन्त में इसको हर एक युद्ध में प्रति प्रेम, देवों से तथा विष्णु से निर्वैरत्व, देवसाम्यत्व पराजय का ही मुँह देखना पड़ा।
| (अजरत्व एवं अमरत्व) इसे प्राप्त हुए (शिरुद्र. अन्त में जैसे ही कृष्ण ने सुदर्शन चक्र के द्वारा इसका यु. ५९)। हरिवंश तथा विष्णु पुराण के अनुसार शिव वध करना चाहा, वैसे ही अष्टावतार लम्बा के रूप में | ने इसे निम्न वर और प्रदान किये:--बाहुओं टूटने के पार्वती इसके संरक्षण के लिए नग्नावस्था में ही दौड़ी | वेदना का शमन होना, बाहुओं के टूटने के कारण मिली आई । भागवत में पार्वती के इस रूप को 'कोटरा' कहा विद्रुपता का नष्ट होना, शिव की भक्ति करने पर पुत्र की गया है। इसके पूर्व भी, इसी युद्ध में पार्वतीजी अपने । प्राप्ति होना आदि (ह. व. २.१२६; विष्णु. ५.३०)। ,
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