Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पुरुमित्र
प्राचीन चरित्रकोश
पुरूरवस्
२. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के ग्यारह महारथि पुत्रों में | अनुष्ठान के कारण, इसे अपार राज्यवैभव प्राप्त हुआ से एक (३२८%)। पांडवों के ग्रतक्रीड़ा के समय यह | था (स्कंद २.७.१५-१६)। उपस्थित था (म. स. ५२.५३)।
पुरुवस-(सो. क्रोष्ट.) एक राजा। मत्स्य के ___ भारतीय युद्ध में यह अभिमन्यु द्वारा घायाल हुआ था
अनुसार यह मधु राजा का पुत्र था। इसे 'कुरुवंश' (म. भी. ६९.२३)।
तथा 'कुरुवत्स' नामांतर भी प्राप्त थे। ३. एक क्षत्रिय राजा, जो भारतीय युद्ध में दुर्योधन के
पुरुवसु-एक वैदिक स्तोता (ऋ५.३६.३)। पक्ष में शामिल था (म. भी. ५३.२५)।
पुरुष-चाक्षुष मनु के पुत्रों में से एक । पुरुमीहळ 'आंगिरस'- एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. २. मरुतों के छठवें गण में से एक । ८.७१)। पुरुमीहळ 'वैददश्वि' एक वैदिक ऋषि (ऋ.१. पुरुषन्ति-एक वैदिक राजा, जिसने किसी गायक को १५१.२; १८३.५, अ.वे. ४.२९.४; १८.३.१५)। उपहार प्रदान किये थे (ऋ. ९.५८.३)। ऋग्वेद में अन्य रनका आश्रित एवं तरन्त ऋषि ये दोनों विददश्व के पुत्र | एक स्थान पर, इसे अश्विनों का आश्रित कहा गया है (ऋ. थे। श्यावाश्व नामक एक गायक था (बृहद्दे. ५४९)। १.११२.२३)। इन दोनों स्थानों पर, इसका निर्देश ओल्डेन बर्ग के अनुसार, यह कथा असंभाव्य प्रतीत |
| ध्वसन्ति एवं ध्वस राजाओं के साथ प्राप्त है। होती है।
ऋग्वेद की एक दानस्तुति में, इसकी एवं ध्वस्त्र राजा ऋग्वेद में अन्य एक स्थान पर इसे एवं तरन्त को
की स्तुति अवत्सार काश्यप ऋषि द्वारा की गयी है (ऋ. ९. ध्वस्त्र तथा पुरुषन्ति नामक राजाओं से दान मिलने का
| ५९.३-४)। पंचविंश ब्राह्मण के अनुसार, 'ध्वस्त्रा' एवं निर्देश प्राप्त है (ऋ. ९.५८.३)। 'सीग' के अनुसार
'पुरुषन्ति' ये दोनों स्त्रीलिंगी प्रयोग हैं एवं संभवतः किन्हीं पुरुमिहळ तथा तरन्त ये दोनों राजा थे एवं जब तक ऋषि
स्त्रियों के नाम प्रतीत होते हैं (पं. ब्रा. १३.७.१२)। नहीं बन जाते तब तक अपने जाति के नियमों के
पुरुषासक-एक वैदिक शाखाप्रवर्तक (पाणिनि - अनुसार ये दान नहीं ग्रहण कर सकते थे।
देखिये)। ___ पुरुमिहळ सौहोत्र-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ४. |
पुरुषोत्तम-पौंडूक वासुदेव का नामान्तर ।
पुरुहन्मन्-एक वैदिक सूक्त द्रष्टा (ऋ. ८.७०)। ४३-४४)। पूरुवंश का सुविख्यात राजा पुरुमीढ यह
ऋग्वेद सर्वानुक्रमणिका में इसे आंगिरस कहा गया है। दोनों एक ही होंगे!
पंचविंश ब्राह्मण के अनुसार, यह 'वैखानस' वंशीय था पुरुमीढ-(सो. पूरु.) एक पूरुवंशीय राजा । मत्स्य (पं. बा. १४. ९ २९)। वायु तथा भागवत के अनुसार, यह हस्ती राजा का, एवं | पुरुहोत्र-(सो. क्रोष्ट्र) एक राजा। भागवत के विष्णु के अनुसार यह हस्तिनर राजा का पुत्र था। यह
अनुसार यह अनु राजा का, पन के अनुसार कुरुवंश, निःसंतान ही था कि मर गया।
विष्णु के अनुसार अनुरथ का, एवं भविष्य के अनुसार महाभारत के अनुसार, यह सुहोत्र राजा का तृतीय
कुरुवत्स का पुत्र था। इसे 'पुरुवस' नामांतर भी प्राप्त पुत्र था, एवं इसकी माता का नाम ऐश्वाकी था। इसके
था। इसके पुत्र का नाम अंशु था (पन. सृ. १३)। अजमीढ एवं सुमीद नामक दो भाई थे (म. आ.
पुरूरवस् 'ऐल'-प्रतिष्ठान (प्रयाग) देश का ८९.२६)। महाभारत में दिये गये इसके मातापिता के
सुविख्यात राजा । सुविख्यात सोमवंश की प्रतिष्ठापना नाम गलत मालूम होते हैं, क्योंकि, वहाँ दी हुयी
करनेवाले राजा के रूप में, यह पुरुरवस् प्राचीन भारतीय वंशावली में कई पीढ़ेयाँ छोड़ दी गयी हैं।
इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण राजा माना जाता है। यह पुरुमेध आंगिरस--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८. | एवं इसके ऐल वंश का राज्य यद्यपि प्रतिष्ठान में था. ८९-९०)।
फिर भी यह स्वयं हिमालय प्रदेश का रहनेवाला था। पुरुयशस्-एक पांचाल देश का राजा। स्कंद के पुरूरवस् राजा सूर्यवंश के इक्ष्वाकु राजा के समकालीन अनुसार, यह भूरियश राजा का पुत्र था। याज एवं था। यह स्वयं अत्यंत पराक्रमी था । इसने पृथ्वी के सात उपयाज नामक ब्रह्मण इसके गुरु थे, जिनके उपदेश से द्वीप जीतकर उन पर अपना राज्य स्थापित कर, सौ इसने 'वैशाख धर्म' का अनुष्ठान किया था। इस | अश्वमेध यज्ञ किये थे।
प्रा. च. ५५]
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