Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्रहस्त
प्राचीन चरित्रकोश
प्रह्लाद
यह अत्यधिक वीर एवं पराक्रमी था। इसने कैलास | कई विद्वानों के अनुसार, ईरान का पुण्यात्मा शासक पर्वत पर मणिभद्र को पराजित किया था (वा. रा. यु.| 'परधात' अथवा 'पेशदात' और ये दोनों एक ही थे। १९.११) । राम-रावण युद्ध में यह रावण की सुरक्षा | ईरानी राजा 'परधात' का पूरा नाम 'हाओश्यांग तथा उसकी मदद के लिए सदैव उसके साथ रहता था। परधात' था। हाओश्यांग का अर्थ होता है, 'पुण्यात्माओं युद्धभूमि में इसने अपना अभूतपूर्व कौशल भी दिखाया। का राजा' । परधात ने पूजा-पाठ से ईश्वर को प्रसन्न कर युद्ध के पाँचवे दिन रावणपक्षीय नरांतक आदि अधिकांश लिया था (मैथोलोजी ऑफ ऑल रेसेस-ईरान, पृ. योद्धाओं को युद्ध में परास्त होता देख कर, इसने नील | २९९-३००)। नामक वानर पर धावा बोल दिया। किन्तु, नील के द्वारा जन्म--पद्मपुराण के अनुसार, कयाधू के गोद में इसका वध हुआ (वा. रा. यु. ५८. ५४)।
प्रह्लाद ने दो बार जन्म लिया था । इसका पहला जन्म महाभारत के अनुसार, इसका विभीषण के साथ हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष दानवों का देवों से जब युद्ध हुआ और यह विभीषण द्वारा ही रणभूमि में मारा युद्ध शुरू था, उस समय हुआ था। उस जन्म में इसे गया (म. व. २७०.५)
विश्वरुपदर्शन भी हुआ था। पश्चात् , श्रीविष्णुद्वारा इसका २. विश्रवस् तथा पुष्पोत्कटा का पुत्र ।
वध हुआ। प्रहास--धृतराष्ट्र कुल में उत्पन्न एक नाग, जो इसके वध का समाचार सुन कर, इसकी माता रोने जनमेजय के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म.आ. ५२. १४)।। लगी। फिर नारद वहाँ आया एवं उसने कहा, 'तुम शोक इसके नाम के लिए 'प्रहस' पाठभेद भी प्राप्त है।। मत करो। यही प्रह्लाद पुनः तुम्हारे गर्भ में जन्म लेगा,
२. वरुण का मंत्री (वा. रा. उ. २३. ४९) | एवं उस जन्म में वह श्रीविष्णु का परमभक्त बनेगा। ३. स्कंद का एक सैनिक (म. श.४५.२६४%)। | अपने पराक्रम एवं पुण्यकर्म के कारण, उसे इंद्रत्व प्राप्त
प्रहासक--एक राक्षस, जो कश्यप और खशा का होगा । यह मेरी भविष्यवाणी है, जिसे तुम गुप्त रखना। पुत्र था।
पद्मपुराण के इस कथा में प्रह्लाद की माता का नाम कयाधू • प्रहेति-राक्षसों का आदि पुरुष। इसका कनिष्ठ के बदले कमला दिया गया है। (पन. भू. ५.१६.३०।। . भ्राता हेति था (वा. रा. उ. ४.१३)। इसकी पत्नी नारद द्वारा कयाधू को दिया हुआ सारा उपदेश - का नाम भया था, जिससे इसे विद्युत्केश नामक पुत्र था। कयाधू के गर्भ में स्थित प्रह्लाद ने सुना । इसी कारण यह
२. एक राक्षस, जो वृत्रासुर का अनुयायी था (भा. जन्मसे ही ज्ञानी पैदा हुआ। ६.१०.२०)।
विष्णुभक्ति-जन्म से यह परमविष्णुभक्त था । इसकी ____३. एक राक्षस, जो वैशाख में अर्यमा नामक सूर्य के विष्णुभक्ति इसके असुर पिता हिरण्यकाशिपु को अच्छी नहीं साथ घूमता है। इसे वैश्रवण के सेवक ब्रह्मधाता का लगती थी। इसे विष्णुभक्ति छोड़ने पर विवश करने के लिये, पुत्र कहा गया है (भा. १२.११.३४)
| उसने इसे डराया, धमकाया तथा मरवाने का भी प्रयत्न ४. ब्रह्मांड के अनुसार युयुधान का पुत्र, जिसे किया। विष्णुपुराण के अनुसार, हिरण्यकशिपु ने इसका माल्यवत् , सुमालिन् और पुलोमत् नामक पुत्र थे वध करने के लिये, इसे हाथी द्वारा कुचलने का प्रयत्न (ब्रह्मांड, ३.७.९१)।
| किया। यही नहीं, इसे सर्पद्वारा डसाने का, पर्वत से प्रह्लाद--एक हरिभक्त असुर, इन्द्र, एवं धर्मज्ञ, जो गिराने का, गड्ढे में गाड़ने का, विष पिलाने का, वारुणीहिरण्यकशिपु नामक असुर राजा का पुत्र था। पालिग्रंथों पाश से बाँधने का, शस्त्रद्वारा मारने का, जलाने का, में इसका निर्देश 'पहाराद' नाम से किया गया है, एवं कृत्या छोड़ने का, माया छोड़ने का, संशोषक वायु छोड़ने इसे 'असुरेंद्र' कहा गया है ( अंगुत्तर ४.१९७)। इसकी का, तथा समुद्रतल में गाडने का आदि बहुत सारे प्रयत्न माता का नाम कयाधू था (म. आ. ५९.१८; भा. ७.४; किये, किन्तु श्रीविष्णु की कृपा से, प्रह्लाद अपने पिता द्वार विष्णु. १.१६)।
रचे गये इन सारे षड़यंत्रों से बच गया (विष्णु.१.१७;भा. इसका, इसकी माता कयाधू एवं पुत्र विरोचन का | ७.५)। अन्य पुराणों में हिरण्यकशिपु द्वारा प्रह्लाद को निर्देश तैत्तिरीय ब्राह्मण में प्राप्त है (ते. बा. १.५.९)। दिये गये इन कष्टों का निर्देश अप्राप्य है (नृसिंह यह निर्देश देवासुर संग्राम के उपलक्ष्य में किया गया है। देखिये) ।
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