Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्रियमेध आंगिरस
परिवार के लोगों का निर्देश ' प्रियमेधाः ' नाम से किया गया है (१.४५.४) प्रियगेच ब्राह्मण अजमीढ़ वंश मैं उत्पन्न माने जाते हैं (भा. ९.२१.२१ ) । इसके वंश में पैदा हुए ‘प्रियमेध ' नामक ऋषियों ने आत्रेय उद्मय राजा के लिए यज्ञ किया था (ए. मा. ८२२ प्रेयमेध देखिये) ।
इसके द्वारा रचित सूफ्तों में अतिथिन्यपुत्र इंद्रोत, आश्वमेध और ऋक्षपुत्र राजाओं का उल्लेख आश्रयदाता के रूप में किया गया है (ऋ. ८.६८.१५ - १९ ) । इसका संरक्षण अश्विनीयों ने भी किया था ( ८.५ २५) ।
ओल्डेनबर्ग के अनुसार, जिन सूक्तों के प्रणयन का श्रेय इसे ऋभ्येद में दिया गया है, ये इसके द्वारा रचित नहीं हो सकते (ओस्टेनसी गे ४२.२१७ ) 1 प्रियरथ एक राज जो पत्रों का आश्रयदाता था (ऋ. १.१२२.७ ) । सायणाचार्य के अनुसार, यह किसी व्यक्तिविशेष का नाम न होकर विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है।
प्रियवर्चा -- कुबेर की एक अप्सरा । यह शाप के कारण मगर बनी थी, जिसका अर्जुन ने बाद में उद्वार किया था (स्कंद. १.२.१ ) ।
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प्राचीन चरित्रकोश
प्रियव्रत - एक राजा, जो स्वायंभुव मनु के पुत्रों में से एक था। इसकी माता का नाम शतरूपा था । इसके पराक्रम के कारण, पृथ्वी पर सात द्वीप एवं सात समुद्रों का निर्माण हुआ (मा. ३.१२.५५ ४.७.८ . . २ भवि. ब्रह्म ११७ ) ।
प्रियमत
प्रकार प्रियवत के रथ के कारण, मेरु पर्वत के चारों ओर सात समुद्र तथा सप्तदीप बने ।
प्रिय कोकी मन्या मिती दी गयी थी। उससे इसे इध्मजिह्न, यज्ञबाहु, महावीर, अग्नी, सवन, वीतिहोत्र, मेधातिथि, वृतपृष्ठ कवि तथा हिरण्य रेतस् नामक दस पुत्र तथा ऊर्जश्वती नामक कन्या हुयी । उनमें से महावीर, कवि तथा सकन नामक तीन पुत्र बचपन में ही तपस्या के लिए वन में चले गये। बाकी बचे सात पुत्रों को इसने एक एक द्वीप बाँट दिये (भा. ५. १६ वराह. ७४) । इसके पुत्रों में बाँटे गये सप्तद्वीप इस प्रकार थे : - इमजि-- लक्षद्वीप, यज्ञवाहु- शाल्मलिद्वीप, अग्नीध्र - जंबुद्वीप, वीतिहोत्र - पुष्करद्वीप, मेधातिथिशाकद्वीप, पुतपृष्ठ-कचीप, हिरण्यरेतस्- कुशद्वीप इसकी ऊर्जस्वती नामक कन्या का विवाह कविपुत्र उशनस् ऋषि से हुआ था।
ब्रह्माण्ड में इसकी पत्नी का नाम काग्या बताया गया है, एवं उसे पुलहवंशीय कहा गया है। काम्या से उत्पन्न को स्वीकार किया, एवं वे सप्तद्वीपों के स्वामी बन गये हुए प्रियव्रत राजा के दस पुत्रों ने आगे चल कर क्षत्रियत्व (अण्ड २.१२.२०१५) | - ।
इसे बर्हिष्मती (काम्या ) के अतिरिक्त और भी एक पत्नी थी, जिससे इसे उत्तम, तापस एवं रैवत नामक तीन पुत्र हुए। वे पुत्र स्वायंभुव एवं स्वारोचिष मन्वन्तरों के पश्चात् संपन्न हुए उत्तम तामस तथा रेवत मन्दमा के स्वामी बन गये ।
इसके द्वारा सात द्वीपों एवं सात समुद्रों के निर्माण की चमत्कारपूर्ण कथा भागवत में निम्न रूप से वर्णित है।
प्रिय राजा अत्यंत पराक्रमी था। एकवार अपने एक पहियेवाले रथ में बैठ कर अत्यंत वेग से इसने मेरु के चारों ओर प्रदक्षिणा की। इसका वेग इतना अधिक था कि, सूर्य मेरु के जिस भाग पर प्रकाश डालता था, उसके विपरीत दिशा में हमेशा यह रथ घुमा लेता था । इसलिये मेरु पर्वत की जो दिशा सूर्य के अभाव में अंधकारमय रहनी चाहिये, वह भी इसके प्रकाश के योग से आलोकित रहती थी । इसलिये इसके राज्यकाल में पृथ्वी पर कभी भी अंधकार न रहा। इसके रथ के पहियों के कारण मेरु के चारों ओर जो सात गड़ढ़े हुए, वे ही सात गड़ढ़े हुए, वे ही बाद में सप्तसमुद्र के नाम से प्रसिद्ध हुए, तथा प्रत्येक दो गद्दों के बीच में को जगह बची, वे द्वीप बन गये। इस
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प्रिय अत्यंत धर्मशील था, एवं देवर्षि नारद इसका गुरु था। इसने ग्यारह अर्बुद ( दशकोटि) तक राज्य किया। बाद में राज्यमार पुत्रों को सौंप कर वह नारद द्वारा उपदेशित योगमार्ग का अनुसरण कर, अपनी पत्नी के साथ साथना में निमन्न हुआ।
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इसेका मेधातिथि नामक पुत्र शाकद्वीप का राजा था। वहाँ इसने सूर्य का एक देवालय बनवाया । किन्तु शाकद्वीप में एक भी ब्राह्मण न होने के कारण अब समस्या यह थी कि, मूर्ति की स्थापना किस प्रकार की जाय। तत्र इसने सूर्य का आवाहन कर उससे सहायता के लिए याचना की । सूर्य ने इसे दर्शन दे कर 'मग' नामक आठ ब्राह्मणों का निर्माण किया तथा उनके सन्मान की इसे रीति बतायी (भविष्य. ब्राह्म. ११७; मग देखिये) । २. आय देवों में से एक ।
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