Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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बर्हणाश्व
बभ्रुवाहन
प्राचीन चरित्रकोश
जीवित हो जायेगा' (म. आश्व. ८१.९-१०)। मणि के | इसे 'चंडिल' नामांतर भी प्राप्त हुआ। श्रीकृष्ण ने स्पर्श से अर्जुन पुनः जीवित हो उठा । पितापुत्र दोनों गले | स्नेहवंश इसे 'सुहृदय' नाम दिया था। मिले । पश्चात् , अर्जुन ने बड़े सम्मान के साथ बभ्रुवाहन | पूर्वजन्म-पूर्वजन्म में यह सूर्यवर्चस् नाम यक्ष था। को युधिष्ठिर के होनेवाले अश्वमेध के लिये निमंत्रित एक बार दानवों के अत्याचार से पीड़ित हो कर, समस्त किया, एवं यह अपनी दोनों माताओं के साथ यज्ञ में देव विष्णु के पास गये एवं दानवों का नाश कर पृथ्वी सम्मिलित हुआ (म. आश्व. ९०.१)।
के भूभार हरण की प्रार्थना उन्होंने विष्णु से की । उस समय . २. कृतयुग का एक राजा । एक बार यह मृगया के | इसने अहंकार के साथ कहा, 'विष्णु की क्या आवश्यकता हेतु वन को गया था, जहाँ सुदेव की प्रेतात्मा ने अपने | है, मैं अकेला सारे दैत्यों का नाश कर सकता हूँ। पूर्वजन्म की कथा इससे कही थी (गरुड़. २.९)। इसकी यह गर्वोक्ति सुन कर ब्रह्मा ने इसे शाप दिया,
बम्ब आजद्विष—एक आचार्य, जो अजद्विष का | 'अगले जन्म में कृष्ण के हाथों तेरा वध होगा। वंशज था (जै. उ. बा. २.७.२-६)। इसके नाम के
| देवी उपासना-ब्रह्मा के द्वारा मिले हुए शाप का लिए 'बिम्ब' पाठभेद उपलब्ध है।
शमन करने के हेतु, अगले जन्म में कृष्ण ने इससे देवी
उपासना करने के लिये उपदेश दिया। अंत में बम्बाविश्वावयंस्-एक ऋषिद्वय, जिन्होंने एक
विजय नामक ब्राह्मण की कृपा से देवी को प्रसन्न कर, विशिष्ट देवता को सोमरस अर्पित करने का एक नया
इसने महाजिह्वा नामक बलिष्ठ राक्षसी, तथा रेपलेंद्र संप्रदाय स्थापित किया था। इन्होंने किसी अन्य संस्कारों का भी प्रणयन किया था (तै. सं. ६. ६. ८.
राक्षस का वध किया । दुहद्रु नामक गर्दभी एवं एक जैन
श्रमण का भी मुष्टिप्रहार द्वारा वध किया । विजय ने इसे ४; क. सं. २९.७)। काठक संहिता में, इनके नाम के
शत्र के मर्मस्थान को वेधने के लिये विभूति प्रदान की, लिये 'बम्भार, एवं मैत्रायणी सेहिता में 'बम्ब' पाठभेद
एवं भारतीय युद्ध में कौरवों के विपक्ष में उसे प्रयोग करने दिया गया है (मै. सं. ४. ७. ३)।
के लिये कहा। बरु-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. ९६; ऐ. |
___ एक बार अपने पितामह भीम को न पहचान कर, इसने वा. ६. २५; सां. ब्रा. २५. ८)।
| उसके साथ मल्लयुद्ध कर पराजित किया। बाद में पता बर्क वार्ण--शतपथ ब्राह्मण में निर्दिष्ट एक तत्त्वज्ञ | चलने पर, आत्मग्लानि अनुभव कर यह आत्महत्त्या के आचार्य, जिसने 'अन्तिम तत्व नेत्र' का प्रतिपादन | लिए प्रस्तुत हआ। तत्काल, देवी ने प्रकट हो कर कहा, किया था (श. बा. १. १. १. १०; बृ. उ. ४. १. ४; 'तुम्हें कृष्ण के हाथों मर कर मुक्ति प्राप्त करनी है, ५.१.८)।
| अतएव यह कुकृत्य न करो। बर्बर-बर्बर देश के निवासी। इनकी गणना उन | भारतीय युद्ध में यह पांडवों के पक्ष में शामिल था, म्लेच्छ जातियों में की जाती है, जिनकी उत्पत्ति नन्दिनी के | तथा कौरवपक्ष को परास्त करने के लिए इसने अपनी विभूति पार्श्वभाग से हुयी थी (म. आ. १६५.३६) । अन्य म्लेच्छ | का प्रयोग किया था। वह विभूति पाण्डव, कृपाचार्य, एवं वंशियों के साथ, राजा सगर ने इन्हें भी पराजित किया | अश्वत्थामा को छोड कर बाकी सारे मित्रों तथा शत्रुओं था, किन्तु अपने गुरु विश्वामित्र के आग्रह पर, इन्हे | के मर्मस्थान पर लगी, जिससे रणभूमि में कोलाहल मच विकृतरूप बना कर छोड़ दिया (सगर देखिये)। गया । यह विभूति कृष्ण के पैर के तलवे पर भी लगी, । महाभारत के अनुसार, भीमसेन ने अपने पूर्व दिग्विजय जिससे क्रोधित हो कर कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से इसका सर के समय, तथा नकुल ने अपने पश्चिमदिग्विजय के समय काट दिया । पश्चात् देवी ने इसे पुनः जीवित किया ।भारइन्हें जीतकर भेट वसूल की थी (म. स. २९.१५)। ये तीय युद्ध के पश्चात् , श्रीकृष्ण के कहने पर यह 'गुप्तक्षेत्र' युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ में भी भेंट लेकर आये थे (म. | में जा कर निवास करने लगा (स्कंद. १.२.६०-६६)। आ. ४७.१९)।
बर्हकेतु-दक्ष सावर्णि मनु का एक पुत्र । बर्बरिक--भीमपुत्र घटोत्कच का पुत्र, जो प्रग्ज्योतिष- बहणाश्व--(सू. इ.) एक राजा, जो भागवत के पुर के गुरु दैत्य की कन्या मौर्वी से उत्पन्न हुआ था। अनुसार निकुंभ राजा का पुत्र था । विष्णु, वायु तथा 'चंडिका कृत्य' में अतिशय पराक्रम दिखाने के कारण, | मत्स्य में, इसे 'संहताश्व' कहा गया है।
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