Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्रह्लाद
प्राचीन चरित्रकोश
इतने कष्ट सहकर भी प्रह्लाद ने विष्णुभक्ति का त्याग | जिनसे इसके ज्ञान, विवेकशीलता एवं तार्किकता पर काफी न किया। अंत में पिता के बुरे वर्ताव से तंग आ कर, इसने | प्रकाश डाला जाता है। दीनभाव से श्रीविष्णु की प्रार्थना की। फिर, श्रीविष्णु | हंस (सुधन्वन् ) नामक ऋषि से इसका 'सत्यासत्य नृसिंह का रूप धारण कर प्रकट हुए। नृसिंह ने इसके | भाषण' विषय पर संवाद हुआ था। हंस ऋषि का पिता का वध किया, एवं इसे वर माँगने के लिये कहा। प्रह्लादपुत्र विरोचन से झगड़ा हुआ था, एवं उस कलह का किन्तु अत्यन्त विरक्त होने के कारण, इसने विष्णुभक्ति निर्णय देने का काम प्रह्लाद को करना था। इसने अपना को छोड़ कर बाकी कुछ न माँगा (भा. ७.६.१०)। पुत्र असत्य भाषण कर रहा है, यह जानकर उसके
इसके भगवद्भक्ति के कारण, नृसिंह इसपर अत्यंत | विरुद्ध निर्णय दिया, एवं सुधन्वन् का पक्ष सत्य ठहराया। प्रसन्न हुआ। हिरण्यकशिपु के वध के कारण, नृसिंह के | इस निर्णय के कारण सुधन्वन् प्रसन्न हुआ एवं उसने मन में उत्पन्न हुआ क्रोध भी इसकी सत्वगुणसंपन्न मूर्ति विरोचन को जीवनदान दिया (म. उ. ३५.३०-३१; देखने के उपरांत शमित हो गया।
विरोचन देखिये)। यह अत्यन्त पितृभक्त था। पिता द्वारा अत्यधिक कष्ट इसका तथा इसके नाती बलि का लोकव्यवहार के होने पर भी, इसकी पितृभक्ति.अटल रही, एवं इसने हर | संबंध में संवाद हुआ था। बलि ने इसे पुछा 'हम समय अपने पिता को विष्णुभक्ति का उपदेश दिया। क्षमाशील कब रहे, तथा कठोर कब बने ?' बलि के इस . पिता की मृत्यु के उपरांत भी, इसने नृसिंह से अपने प्रश्न पर प्रह्लाद ने अत्यंत मार्मिक विवेचन किया। . पिता का उद्धार करने की प्रार्थना की । नृसिंह ने कहा, बलि ने वामन की अवहेलना की। उस समय क्रुद्ध हो 'तुम्हारी इक्कीस पीढ़ियों का उद्धार हो चुका है। यह कर इसने बलि को शाप दिया, 'तुम्हारा संपूर्ण राज्य सुन कर इसे शान्ति मिली । पश्चात हिरण्यकशिपु के वध नष्ट हो जायेगा।' पश्चात् वामन ने बलि को पाताललोक ... के कारण दुःखित हुये सारे असुरों को इसने सांत्वना दी। में जाकर रहने के लिये कहा । बलि ने अपने पितामह
पश्चात् यह नृसिंहोपासक एवं महाभागवत बन गया । प्रह्लाद को भी अपने साथ वहाँ रखा (वामन. ३१)। . (भा. ६.३.२०)। यह 'हरिवर्ष' में रह कर नृसिंह एकबार प्रह्लाद के ज्ञान की परीक्षा लेने के लिये, इंद्र की उपासना करने लगा (भा. ५.१८.७)।
इसके पास ब्राह्मणवेश में शिष्यरूप में आया। उस विष्णुभक्ति के कारण प्रह्लाद के मन में विवेका दि समय प्रह्लाद ने उसे शील का महत्व समझाया। उन गुणोंका प्रादुर्भाव हुआ। विष्णु ने स्वयं इसे ज्ञानोपदेश बातों से इंद्र अत्यधिक प्रभावित हुआ, एवं उसने इसे दिया, जिस कारण यह सद्विचारसंपन्न हो कर समाधि- | ब्रह्मज्ञान प्रदान किया (म. शां. २१५)। मुख में निमग्न हुआ। फिर श्रीविष्णु ने पांचजन्य शंख के अजगर रूप से रहनेवाले एक मुनि से ज्ञानप्राप्ति की निनाद से इसे जागृत किया, एवं इसे राज्याभिषेक किया। इच्छा से इसने कुछ प्रश्न पूछे। उस मुनि ने इसके प्रश्नों राज्याभिषेक के उपरान्त श्रीविष्णु ने इसे आशीर्वाद का शंकासमाधान किया, एवं इसे . भी अजगरवृत्ति से दिया, 'परिपुओं की पीड़ा से तुम सदा ही मुक्त रहोगे रहने के लिये आग्रह किया (म. शां. १७२)। (यो. वा. ५.३०-४२)। यह आशीर्वचन कह कर उशनस् ने भी इसे तत्वज्ञान के संबंध में दो गाथाएँ श्रीविष्णु स्वयं क्षीरसागर को चले गये।
सुनाई थी (म. शां. १३७.६६-६८)। इंद्रपदप्राप्ति--इंद्रपदप्राप्ति करनेवाला यह सर्वप्रथम पूर्वजन्मवृत्त--पन के अनुसार, पूर्वजन्म में प्रह्लाद दानव था। इसके पश्चात् आयुपुत्र रजि इंद्र हुआ, जिसने सोनशर्मा नामक ब्राह्मण था, एवं इसके पिता का नाम दानवों को पराजित कर के इंद्रपद प्राप्त किया। शिवशर्मा था (पद्म. भ. ५.१६ )। पद्म में अन्यत्र उस
परिवार--इसके पत्नी का नाम देवी था। उससे ब्राह्मण का नाम वसुदेव दिया गया है, एवं उसने किये इसे विरोचन नामक पुत्र एवं रचना नामक कन्या हुई नृसिंह के व्रत के कारण, उसे अगले जन्म में राजकुमार (भा. ६.६; ६.१८.१६; म. आ. ५९.१९; विष्णु. १. प्रह्लाद का जन्म प्राप्त हुआ. ऐसा कहा गया है (पन. २१.१)।
उ. १७०) ___ संवाद--विभिन्न व्यक्तिओं से प्रह्लाद ने किये तत्वज्ञान २. कद्र पुत्र एक सर्प, जिसने कश्यपऋषि को उच्चैःपर संवादों के निर्देश महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त हैं, श्रवस् नामक घोडा प्रदान किया था (म. शां. २४.१५)।
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