Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पुरूरवस्
प्राचीन चरित्रकोश
पुरूरवस्
इसके राज्य के उत्तर में अयोध्या जैसा बलिष्ठ राज्य पुरूरवा ने उर्वशी को केशी से मुक्त कराया। पश्चा था, एवं दक्षिण में युद्धशास्त्र में विख्यात करुष लोग | इसने उर्वशी के रूप पर मोहित हो कर, उससे विवाह थे। इस कारण इसका राज्य पूर्व एवं उत्तरपूर्व दिशाओं | करने की इच्छा प्रदर्शित की। उर्वशी ने इसकी बात तो में स्थित गंगाके दोआब, मालवा एवं पूर्व राजपूताना प्रदेशों मान ली, किंतु उसके साथ तीन विचित्र शर्ते रक्खी:--- तक फैला था। पुरूवरस् के मृत्यु के समय, यह सारा (१) मेरे द्वारा पुत्रवत् पाली गयी तीन भेड़े हैं, जिनकी प्रदेश ऐल साम्राज्य में समाविष्ट हो गया। | रक्षा सतर्कता से होनी चाहिये । (२) मैथुन को छोड़कर
पुरूरवस् को 'ऐल' (इडा नामक यज्ञीय देवी का तुम कभी भी मुझे नग्न स्थिति में न दिखायी दो (३) वंशज) उपाधि प्राप्त थी। यद्यपि. पुरूरवस् का निर्देश | मेरा आहार केवल घी होगा । हरिवंश में उर्वशी की वैदिक ग्रंथों में बार बार प्राप्त है, फिर भी इसकी ऐल तीसरी शर्त कुछ भिन्नता से दी गयी है। उसमें लिखा उपाधि इसे पुराणकालीन राजा के रूप में स्थापित है की उर्वशी ने इसे कहा, 'तुम्हें केवल घी खाकर ही करती है।
| जीवित रहना होगा' (ह. वं १.३६.१४-१५)। उर्वशी एवं पुरूरवस् का सुप्रसिद्ध 'प्रणयसंवाद' उवशा का सारा शत मानकर राजा न उसस विवाह वैदिक ग्रंथों में प्राप्त है (ऋ. १०.९५ श. ब्रा. ११.५. कर
कर लिया। उर्वशी गन्धवों की प्रिय थी, अतएव उन्होंने १)। ऋग्वेद में इसे 'ऐल' कहा गया है। यह स्वयं |
उसे स्वग वापस लाने की योजना बनायी। एक दिन क्षत्रिय हो कर भी वैदिक सूत्रकार एवं मंत्रकार था,
पलंग के पाये से बंधी भेड़ों को गन्धर्वगण. खोल कर जिसका निर्देश ऋग्वेद एवं पुराणों में प्राप्त हैं (ऋ.
जाने लगे । यह देख कर उर्वशी चिल्लाई, तथा पुरूरवा १०.९५, मत्स्य. १४५.११५-११६. ब्रह्मांड. २.३२.
नग्नावस्था में ही पलंग से शीघ्र दौड़ कर भेड़ो को पकड़ने १२०-१२१)। अनि के द्वारा पुरूरवस् पर अनुग्रह
के लिए आगे बढ़ा । इतने में बिजली के कौंध से, नग्न किये जाने का निर्देश भी ऋग्वेद में प्राप्त है (ऋ. १. |
पुरूरवा उर्वशी को दिख गया। फिर अपने नियम के .
अनुसार, उर्वशी इसे छोड़कर गंधर्वलोक चली गयी। ३४)।
उर्वशी के वियोग में पुरुरवा पागल सा इधर उधर पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पुरूरवस् बुध राजा को इला |
भटकने लगा। ऐसी ही अवस्था में उर्वशी ने इसे देखा। से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ७०.१६; मत्स्य. १२.
| फिर इसके प्रति दयालु होकर, उसने इसे कहा, १५, पन. स. ८; १२; ब्रह्म. १०; दे. भा. १.१३; भा.
| 'गंधर्व तुम्हें वरप्रदान करने वाले हैं। उस समय तुम ९.१५, ह. वं. १.११.१७)। यह सोमवंश का मूल पुरुष
मेरे नित्य साहचर्य का वर माँग लो । है। इसको ऐल कहा है (वायु. ९१.४९-५०)।
पश्चात् , गंधवा द्वारा वर माँगने के लिये कहे जाने पर, पुरूरवा की राजधानी प्रतिष्ठानपुरी थी (ब्रह्म. ७.२२; इसने उनसे गंधर्वत्व एवं उर्वशी के साहचर्य का वर ह. वं. १.१०.२२-२३)।
माँग लिया। गंधयों ने इसे अग्नि के सहित एक स्थाली __ यह काशी का राजा था। इसके द्वारा प्रयाग प्रांत पर प्रदान की। उर्वशी न देकर, गंधर्वो ने केवल स्थाली ही
भी राज्य करने का उल्लेख मिलता है (वा. रा. उ. २५, दी. इससे नाराज़ होकर, इसने वह स्थाली अरण्य में ह. वं. २.२६.४९)। यह सप्तद्वीप का राजा था, तथा ही फेंक दी, एवं यह घर वापस लौट आया । इसने सौ अश्वमेध किये थे (मत्स्य. २४.१०-१३)। कालोपरांत, इसे अपने कृतकर्म का पश्चात्ताप हुआ। महाभारत में, इसे त्रयोदश समुद्रद्वीपों का अधिपति कहा। फिर अरण्य में फेंक दी 'स्थाली' वापस लाने, यह अरण्य गया है (म. आ. ७०.१७)।
| गया। वहाँ इसने देखा की 'स्थाली' लुप्त हो गयी है, एक बार देवसभा में नारद ने पुरुरवा के गुणों का एवं उस स्थान पर एक अश्वत्य वृक्ष उत्पन्न खड़ा है। उस गान किया था। यह सुनकर उर्वशी पुरूरवा पर मोहित हो | अश्वत्थ वृक्ष को अग्निरूप मानकर इसने उससे एक गयी । उसी समय भूतल पर जाने का शाप मित्रावरुणों ने | 'अरणि' तथा 'मंथा' बनाई, तथा उससे अग्नि उत्पन्न उसे दिया । उर्वशी भूतल पर आई । पृथ्वी पर आते ही किया। बाद में उस अग्नि के दक्षिणाग्नि, आहवनीय तथा 'केशी नामक दैत्य ने उसे देख लिया, तथा उसका हरण | गार्हपत्य नामक तीन विभाग कर, इसने उनसे उत्कृष्ट हवन किया।
| किया। इस हवन से प्रसन्न होकर, गुन्धों ने इसे ४३४
प्रदान की। उर्वशी न
ता है (वा. रा. उ.
ह.व. २.२६.४९