Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पुरुरवस्
प्राचीन चरित्रकोश
पुरूरवस्
'सालोक्य-' गंधर्वास्था प्रदान की (श. बा. ११.५.१. वर्गों की उत्पत्ति, तथा उनके अधिकार के बारे में इसका १३-१७; विष्णु. ४.६.१)
वायु से, तथा इन चारों वर्गों के परस्परव्यवहार के * शतपथ ब्राह्मण में दी गयी यह कथा ऐतिहासिक दृष्टि सम्बन्ध में कश्यप से संवाद हुआ था (म. शां. ७३.
से महत्त्वपूर्ण है । पुरूरवस् के पहले एक ही अग्नि की | ७४)। उपासना प्रचलित थी। उसे बदल कर इसने तीन अग्नि
पद्म एवं ब्रह्म पुराणों में प्राप्त 'एकादशीमाहात्म्य' की उपासना शुरू की (अग्नि. २७४.१४. विष्णु.४.६. की कथाओं में पुरूरवा का निर्देश प्राप्त है। एकादशी
को उपवास करने के पश्चात्, द्वादशी के दिन तेल खाने एक बार धर्म, अर्थ, काम नामक तीनों पुरुषार्थ मानव
का पाप पुरूरवा ने किया, जिस कारण इसका शरीर रूप धारण कर इसका सत्त्व देखने आये। इसने सबका |
कुरूप हो गया । इसने दुःखी हो कर तीन महीने तक सत्कार किया, परंतु धर्म को अत्यधिक आदर एवं सम्मान | उपवास कर, विष्णु की आराधना की। इसीसे संतुष्ट हो दिया। इससे कुपित होकर अर्थ तथा काम ने इन्हें शाप | कर, विष्णु ने इसे ऐसा सुन्दर स्वरूप प्रदान किया कि, दिया, 'लोभ के कारण तुम्हारा विनाश हो जायेगा। उर्वशी इस पर मोहित हो गयी (पद्म. उ. १२५)।
गंधर्वलोक में देवअनुचर तुंबरु का उपहास करने के | ऐसी ही और एक कथा मत्स्य में दी गयी है। पूर्व कारण, वह उर्वशी तथा पुरुरवा से क्रुद्ध हुआ एवं उसने | जन्म में यह द्विजग्राम का ब्राह्मण था। द्वादशी के दिन इन्हे शाप दिया, 'परस्पर वियोगावस्था को प्राप्त कर तुम
| उपवास कर, इसने राज्यप्राप्त की इच्छा से जनार्दन की दोनो दुःखी होगे'। पश्चात् , इन दोनों ने गंधमादन पर्वत
| पूजा की। इस पुण्यकर्म के कारण, उसी जन्म में इसे मद्रके 'साध्यामृत तीर्थ' में स्नान किया,.एवं इस पुण्यक्रम से
देश का राज्य प्राप्त हुआ। किंतु पश्चात् उपवास के दिन दोनों शापमुक्त हो गये (स्कन्द ३.१.२२.)। हर महीने की अभ्यंग स्नान करने के पाप के कारण, यह रूपहीन बन अमावास्या को यह पितरों को तृप्त करता था (वायु. ५६)| गया । फिर अपना विगत सौंदर्य पुनः प्राप्त करने के लिए,
नैमिषारण्य के द्वादश वार्षिक सत्र के समय यह | यह हिमालय पर तपश्चर्या करने गया (मत्स्य. ११५)। अयोध्या का राजा था। उर्वशी इस पर मोहित हो गयी
पुरूरवा का पुरोहित वसिष्ठ था (ब्रह्म. १५१. ८थी। समुद्र के अठारह द्वीप इसने जीते थे, तथापि इसे
१०, पद्म. भू. १०८)। इसका हिमालय से विशेष . संपत्ति का लोभ न छूटा । इसने संपत्ति के लोभ से द्वादश
सम्बन्ध दिखता है । ऐलवंश के राजाओं के मूलस्थान वर्षीय सत्र के स्वर्णमय वेदी पर हमला किया।
के सम्बन्ध में पुरूरवाचरित्र से काफी बोध होता है। अग्नि को गंगा से एक पुत्र उत्पन्न हुआ था। उस पुत्र की पुरूरवा का पिता 'इल' था, जिसके नाम से 'इलावृत' .. नाल को जैसे ही पर्वत पर डाला गया, नाल स्वर्णमय हो देश स्थापित हुआ था (मत्स्य. १२, १४, पद्म. सु.
गयी। उसी स्वर्ण को लेकर इस द्वादशवर्षीय सत्र की वेदी ८)। यह देश भारतमें हिमालय के उत्तर की ओर, मेरु • बनायी गयी। बृहस्पति स्वयं वहाँ उपाध्याय था। ऐल पर्वत के समीप बसा हुआ था।
पुरुरवा मृगया करते हुए वहाँ आया । सोने की वेदी देख | इसके अतिरिक्त, पुरूरवा की जन्मकथा भी कर उसे आश्चर्य हुआ। लोभ से पागल होकर यह स्वर्ण- | इसी प्रदेश से संलग्न प्रतीत होती है । ऐलों की सत्ता का वेदी के स्वर्ण का हरण करने लगा । तब सब ऋषि क्रोधित | उद्गम प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था। फिर भी उनका हो गये। उन्होंने दर्भरूपी वज्र से इसका वध किया, और मूलस्थान हिमालय के मध्यभाग से तथा उसपार के देशों उर्वशी से उत्पन्न आयु नामक पुत्र गद्दी पर बैठाया गया। में था। इसके कई उदाहरण प्राप्त हैं । पुरूरवा की कथा में कौटिल्य ने, इस प्रसंग का संकेत करते हुये लिखा है, निर्दिष्ट सारे स्थान, जैसे कि मंदाकिनी नदी, अलका, 'पुरुरवा राजा ने अत्याचार तथा अनाचारपूर्वक धन | चैत्ररथ और नंदनवन, गंधमादन तथा मेरु पर्वत एवं इकट्ठा किया (कौटिल्य पृ. २२)।
| कुरु देश नाम से प्रसिद्ध गंधर्वो का देश, ये सारे इसी प्रदेश पश्चात् पुरुरवस् पुत्र आयु ने सब को शान्त कर, सत्र के हैं। यह निश्चित है कि उत्तर कुरु प्रान्त से गंधर्वो का को पुनः आरम्भ किया (ब्रह्मांड. १.२.१४-२३; वायु. | संबन्ध प्राचीन काल से चला आरहा है (मत्स्य.११४ ' २)। महाभारत एवं वायु में कश्यप से पुरूरवा ने किये ८२, वायु ३५, ४१, ४७)। तत्त्वज्ञान पर संवादो का निर्देश प्राप्त है । ब्राह्मणादि चारों | पुरूरवा की पत्नी उर्वशी गंधर्वी थी। इसके वंशजो ने
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