Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्रजापति
प्राचीन चरित्रकोश
प्रजापति
प्रजापति ने सारे देवों को निमंत्रित किया। उस समय फूलने लगे। उन अंगारों से अंगिरस निर्माण हुए । जो प्रजापति ने सहस्र ऋचाओंवाला एक 'आश्विन स्तोत्र' अंगार जलकर कोयले के समान काले हो गये, उनसे. का निर्माण कर, उसे उन देवों के सम्मुख प्रस्तुत किया। कृष्णवर्णीय पशुओं की उत्पत्ति हुयी। उन अंगारों के उस स्तोत्र को सुन कर सभी देवताओं के मन में उसके | सहयोग से पृथ्वी का जो भाग तप्त होकर लाल हो गया, प्राप्ति की अभिलाषा उत्पन्न हुयी। ऐसी स्थिति में, देवों | उनसे रक्तवर्णीय पशुओं का निर्माण हुआ (ऐ. ब्रा. ३. के बीच उत्पन्न हुयी कलह को मिटाने के लिए प्रजापति | ३४)। ने एक प्रतियोगिता रक्खी, जिसके अनुसार, यह तय शतपथ ब्राह्मण में भी प्रजापति द्वारा प्रजोत्पत्ति की किया गया कि, जो देवता गाहपत्य तक दौड़ में प्रथम यही कथा इसी प्रकार दी गयी है। किन्तु इस ग्रन्थ में
आयेगा उसे ही यह स्तोत्र प्रदान किया जायेगा। इस | प्रजापति के हनन के लिए देवों द्वारा उत्पन्न किये दौड़ में अश्विनीकुमार प्रथम आये, और उन्हे स्तोत्र भयंकर पुरुष का नाम 'भूतवान' की जगह 'रुद्र' दिया की प्राप्त हुयी (ऐ. बा ४. ७)।
गया है, एवं इसके स्खलित वीर्य से उत्पन्न पुत्र का नाम दुहितृगमन-ऐतरेय ब्राह्मण एवं मैत्रायणी संहिता में, 'अग्नि मारुत उक्थ' दिया गया है (श. बा. १.७. प्रजापति के अपनी कन्या 'उपस्' पर ही आसक्त हो जाने ४)। की कथा प्राप्त है (ऐ. ब्रा. ३. ३३; मै. सं. ४. २)।
शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, प्रजापति का वध करने. एक बार, अपनी ही कन्या 'यौ' तथा 'उषस्' को
के पश्चात् , देवों का क्रोध पुनः शान्त हुआ, और उन्होंने '. देखकर, प्रजापति में काम-वासना उत्पन्न हुयी, एवं यह
फिर से इसका अभिषेक किया, एवं इसे 'यज्ञ प्रजापति' उनके पीछे दौड़ने लगा। इससे डरकर इसकी कन्याओं नाम प्रदान किया (श. ब्रा. १. ७.४)।
. ने रोहित नामक मृगी का रूप धारण कर लिया। तब
प्रजा निर्मित करने के उपरांत, प्रजापति को आपसी.. इसने ऋष्य नामक मृग का रूप धारण कर, उनसे मैथुन
| झगड़ों को निपटा कर के, वैधानिक दण्डादि भी देना . किया। सारे देवताओं ने 'दुहितागमन' का यह
पड़ता था। तत्त्वज्ञान के संबंध में जब कभी शंकायें उठती निन्दनीय कर्म देखकर, इस पापी पुरुष को नष्ट करने की
थीं, तो उनके निवारणार्थ देव, दैत्य अथवा मनुष्यलोग ठान ली। फिर, हर एक देव ने अपने रौद्र अंश को
प्रजापति के पास जाया करते थे (छां. उ. ८. ७. १.३; . एकत्र कर 'भूतवान' नामक एक भयंकर पुरुष का
ऐ.ब्रा. ५.३; श्वेत.४.२)। निर्माण किया, जिसने प्रजापति का पापी देह नष्ट किया।
२. ब्रह्मदेवों के मानस पुत्रों के लिये प्रयुक्त सामूहिक प्रजापति का मृगरूपी मृतदेह, मृगनक्षत्र के रूप में आज
नाम। भी आकाश में दिखाई पड़ता है । जिस बाण से प्रजापति
वायुपुराण के अनुसार, ब्रह्मा ने सृष्टि की उत्पत्ति की, का हनन किया गया था, उस बाण की नोंक, मध्य तथा
जिसको बढ़ाने के लिए, अपने शरीर के विभिन्न अवयवों फाल आज भी हमें आकाश में दिखाई पड़ती हैं । रोहिणी
से उसने अनेक मानसपुत्र निर्माण किये । मानसपुत्रों के नक्षत्र ही प्रजापति की कन्या है।
निर्माण के पीछे उनका हेतु सृष्टि विस्तार ही था । इस कारण
ब्रह्माने अपने मानसपुत्रों को प्रजा उत्पन्न करने की आज्ञा उस समय जो प्रजापति का वीर्य गिरा उससे निन्मलिखित प्राणी इस क्रम से उत्पन्न हुए:- अग्नि, वायु,
दी। इसी कारण, ब्रह्मा के मानस पुत्रों को प्रजापति
सामूहिक नाम प्राप्त हुआ। आदित्य, तीन वेद, भूः, भूवः, स्वः, अ उ म (ऐ. बा. ३. |
पुराणों में 'प्रजापति' शब्द की व्याख्या 'संतति ३३, ५.२)।
उत्पन्न करनेवाला' ऐसी की गयी है, जैसा कि वायुपुराण कामी प्रजापति ने अपनी ' द्यौ' एवं 'उघस्' नामक
में लिखा हैकन्याओं से भोग करते समय, जो वीर्य असावधानी में
लोकस्य संतानकरास्तैरिमा वर्धिताः प्रजाः । नीचे भूमि पर स्खलित किया था, कालान्तर में वही वीर्य चारों और बहने लगा । मरुतों ने उसे एकत्र कर उसका
प्रजापतय इत्येवं पठ्यन्ते ब्रह्मणः सुताः ॥ पिंड बनाया। उस पिंड से आदित्य एवं वारुणि भृगुओं
(वायु. ६५.४८). की उत्पत्ति हुयी। उन दोनों के निर्माण के पश्चात् , शेष | मत्स्य पुराण में भी यही विचार प्रकट किये गये हैं, जो बचे बचे हुए वीर्यकण दग्ध होकर अंगार के समान | निम्नलिखित श्लोक में द्रष्टव्य है