Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्रद्युम्न
प्राचीन चरित्रकोश
प्रभंजन
९०.१६), जिसने स्वयंवर में इसका वरण किया था। वर्षों तक राज्य किया (भा. १२.१; विष्णु. ४.२२.२४; (ह. वं. २.६१.४)। रुक्मवती (शुभांगी) से इसे | वायु. ९९.३११-३१४)। अनिरुद्ध नामक पुत्र था (म. भी. ६५.७१)।
इस वंश का राज्यकाल संभवतः ७४५ ई. पू. से. वज्रनाभ दैत्य की कन्या प्रभावती इसकी तीसरी पत्नी ६९० ई. पू. के बीच माना जाता है। उक्त राजाओं के थी, जिसका इसने हरण किया था (ह. वं. २. ९०. नाम सभी पुराणों में एक से मिलते हैं । जनक तथा नंद४)। इस कारण वज्रनाभ का भाई निकुंभ से इसका युद्ध | वर्धन राजाओं के नामांतर केवल वायु में प्राप्त है। हुआ था।
| प्रद्वेषी-अंगिराकुलोत्पन्न दीर्घतमस् ऋषि की पत्नी, प्रद्युम्न से बदला लेने के लिए, निकुंभ ने भानु यादव | जिससे इसे गौतमादि पुत्र उप्तन्न हुए थे। की कन्या भानुमती का हरण किया। इससे क्रुद्ध हो कर दीर्घतमस् ऋषि बूढ़ा एवं अंधा होने के कारण, यह कृष्णार्जुनों ने निकुंभ पर हमला किया, जिसमें यह भी उससे तलाक लेना चाहती थी। किंतु एक धर्मशास्त्रकार . निकुंभ के विपक्ष में था । इस युद्ध में इसने अपने | के नाते से दीर्घतमस् ने इसे धर्मनीति का उपदेश देते मायावी युद्धकौशल का अच्छा परिचय दिया। अन्त हुए कहा, 'पत्नी का कर्तव्य है कि एक व्यक्ति को ही में निकुंभ श्रीकृष्ण द्वारा मारा गया (ह. वं. २. ९०- अपना पति मान कर अपने संपूर्ण जीवन को उसे ९१)।
| समर्पित कर दे। दीर्घतमस् के द्वारा इतना समझाये. प्रद्योत--कुबेरसभा का एक यक्ष (म. स. १०.
जाने पर भी यह न मानी, तथा अपने गौतमादि पुत्रों १५)।
की सहायता से इसने दीर्घतमस् को उठा कर नदी में ' २. (प्रद्योत. भविष्य.) प्रद्योत वंश का प्रथम राजा,
| झोंक दिया (दीर्घतमस् देखिये; म. आ. ९८.१०३७*3 जो शुनक का पुत्र था। वायु में इसे सुनीक का पुत्र कहा |
परि. १.५६)। गया है।
प्रधान--एक प्राचीन राजर्षि, जिसे सुलभा नामक . इसका पिता शुनक सूर्यवंश का अंतिम राजा रिपुंजय | सुविख्यात ब्रह्मनिष्ठ कन्या थी । सुलभा के साथ जिंदेहराज . अथवा अरिंजय राजा का महामात्य था। उसने रिपुंजय
जनक का तत्वज्ञान के विषय पर संवाद हुआ, जो सुविराजा का वध कर, राजगद्दी पर अपने पुत्र प्रद्योत को
ख्यात है (म. शां. ३०८.१८२, सुलभा देखिये) बिठाया, जिससे आगे चल कर प्रद्योत राजवंश की स्थापना प्रधिमि--एक ऋषि, जो जटीमालिन् नामक शिवाहुयी।
वतार का शिष्य था।
. भविष्य में इसे क्षेमक का पुत्र कहा गया है, एवं इसे | प्रपोहय--पराशरकुल का एक गोत्रकार ऋषिगण । 'म्लेच्छहंता' उपाधि दी गयी है (भवि. प्रति. १. ४)। प्रबल-कृष्ण का लक्ष्मणा से उत्पन्न पुत्र (भा. १०. इसके पिता क्षेमक अथवा शुनक का म्लेच्छों ने वध | ६१.१५)। किया। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए, २. विष्णु का एक पार्षद (भा. ८.२१.१६)। नारद के सलाह से इसने ' म्लेच्छयज्ञ' आरभ्म किया। प्रबाहु-कौरवपक्ष का योद्धा । इसने अमिमन्यु पर उस यज्ञ के लिए इसने सोलह मील लम्बा एक यज्ञ-कुण्ड | बाणों की वर्षा की थी (म. द्रो..३६.२५.२६)। तैयार किया। पश्चात् , इसने वेदमंत्रों के साथ निम्न- प्रबुद्ध--(स्वा. प्रिय.) एक भगवद्भक्त राजर्षि, जो लिखित म्लेच्छ जातियों को जला कर भस्म कर दियाः- | ऋषभदेव के नौ सिद्धपुत्रों में से एक था। इसने निमि हारहूण, बर्बर, गुरुंड, शक, खस, यवन, पल्लव, रोमज, | को उपदेश दिया था (भा. ५.४.११, ११.३.१८)। खरसंभव द्वीप के कामस, तथा सागर के मध्यभाग में | प्रभ-रामसेना का एक वानर (वा. रा. उ. ३६.)। स्थित चीन के म्लेच्छ लोग। इसी यज्ञ के कारण इसे | प्रभंकर--जयद्रथ राजा का भाई (म.व. २४९.११)। 'म्लेच्छहंता' उपाधि प्राप्त हुयी।
प्रभंजन--एक राजा, जो मणिपुरनरेश चित्रवाहन का प्रद्योतवंश-प्रद्योत के राजवंश में कुल पाँच राजा हुए, पूर्वज था। पाठभेद (भांडारकर संहिता)--'प्रभंकर'। जिनके नाम क्रम से इस प्रकार थे:-प्रद्योत, पालक, विशाख- प्रभंजन राजा ने निःसंतान होने कारण, शिव की उग्र यूप, जनक (अजक), तथा नंदवर्धन (नंदिवर्धन अथवा | तपस्या कर के उनसे वंशवृद्धि के लिए संतान प्राप्ति की . वर्तिवर्धन)। इन सभी राजाओं ने कुल एक सौ अड़तीस | प्रार्थना की। तपस्या से संतुष्ट, होकर शिव ने वरदान
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