Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्रजापति
प्राचीन चरित्रकोश
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प्रतर्दन
प्रजापति के अनुसार, श्राद्धविधि के अवसर पर अपनी | प्रज्योति--अमिताभ देवों में से एक । माता को पिण्डदान देते समय अपने मामा के गोत्र का प्रणित-मरीचिगर्भ देवों में से एक । निर्देश करना चाहिये । इसके इस मत का उल्लेख लौगाक्षि प्राणधि-बृहद्रथ वासिष्ठ के अंश से उत्पन्न षांचएवं अपरार्क ने किया है (अपरार्क. ५४२)। जन्य नामक अग्नि का पुत्र (म. व. २१०.४)।
प्रजापति के लोकव्यवहार सम्बन्धी विचारधारा का २. एक धनिक वैश्य, जिसकी पत्नी का नाम पद्मावती उल्लेख अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका, पराशर माधवीय तथा | था (पद्मावति २. देखिये)। अन्य ग्रन्थों में किया गया है। इसके अनुसार, गवाहों प्रतंस-(सो.) एक राजा, जो भविष्य के अनुसार, के 'कृत' अथवा 'अकृत' ऐसे दो प्रमुख प्रकार होते | अवतंस राजा का पुत्र था । हैं। इसका यह मत नारदस्मृति से लिया हुआ प्रतीत | प्रतपन-एक रावणपक्षीय राक्षस, जिसका नल द्वारा होता है (ऋणादान इलो. १४९; अपरार्क. ६६६; स्मृतिचं. | वध हुआ था (वा. रा. यु. ४३.२३)। व्य. ८०)। इसने प्रतिवादी के ग्राह्य उत्तरों का विवेचन प्रतर्दन-(सो. काश्य.) काशी जनपद का सुविख्यात कर, उनके चार प्रकार बताये हैं (स्मृतिचं. व्य. ९८; परा. | राजा, एवं एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९.९६; १०.१७ मा. ३. ६९-७३)। 'दिव्य' के सम्बन्ध में लिखे गये | २)। यह ययाति राजा की कन्या माधवी का पुत्र इसके दलोक ' पराशरमाधवीय' में दिये गये हैं। था।
प्रजापति के अनुसार, निःसंतान विधवा का अपने पति | वैदिक साहित्य में इसे काशिराज दैवोदासि कहा. गया की सम्पूर्ण संपत्ति पर अधिकार है, एवं उसके मासिक | है । इसके पुत्र का नाम भरद्वाज था (क. सं २१.१०')। तथा वार्षिक श्राद्ध करने का अधिकार भी उसे ही प्राप्त | भरद्वाज ऋषि ने क्षत्रश्री प्रातर्दनि राजा की दानस्तुति की है । उक्त श्राद्ध के समय विधवा को अपने पति के सगे | थी, जिससे पता चलता है कि प्रतर्दन राजा को क्षत्रश्री. संबंधियों का सन्मान करना चाहिये ऐसा इसका अभिमत | नामक एक और पुत्र था (ऋ. ६.२६.८)। था (परा. मा. ३.५३६)।
कौषीतकि ब्राह्मण के अनुसार, नैमिषारण्य में ऋषियों ४. महर्षि कश्यप का नामांतर। इसने वालखिल्यों से | द्वारा किये यज्ञ में यह उपस्थित हुआ, और ऋषियों इसने देवराज इन्द्र पर अनुग्रह करने के लिए प्रार्थना की थी | से प्रश्न किया, 'यज्ञ की, त्रुटियों का परिमार्जन किस प्रकार . (म. आ. २७.१६-२१)।
किया जा सकता है। उस यज्ञ में उपस्थित अलीकयु नामक' ५. रथंतर कल्प का एक राजा । इसकी पत्नी का नाम | ऋषि इसके इस प्रश्न का उत्तर न दे. सका था (श. ब्रा. चन्द्ररूपा था, जिसने 'त्रिरात्र तुलसीव्रत' नामक उपासना की थी (पद्म. उ. २५)।
। कौषीतकि उपनिषद् के अनुसार, युद्ध में मृत्यु हो . प्रजापति परमेष्ठिन्–एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ.
जाने पर यह इन्द्रलोक चला गया था (कौ. उ. ३.१ )। १०.१२९)।.
वहाँ इसने बड़ी चतुरता के साथ इन्द्र को अपनी बातों में
फँसा कर, उससे ब्रह्मविद्या का ज्ञान एवं इन्द्रलोक प्राप्त प्रजापति वाच्य-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ३.
किया (कौ. उ. ३.३.१)। ३८,५४-५६, ९.८४)।
वैदिक वाङ्मय में, इसे दैवोदासि उपाधि दी गयी है, प्रजापति वैश्वामित्र-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ३.
जो इसका वैदिक राजा सुदास के बीच सम्बन्ध स्थापित ३८; ५४-५६)।
कराती है । इसका भरद्वाज नामक एक पुरोहित भी था, प्रजावत् प्राजापत्य--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. | जो इसके और सुदास राजा के बीच का सम्बन्ध पुष्ट १०.१८३; ऐ. ब्रा. १.२१)। इसकी माता का नाम करता है। सुपर्णा था, जिससे इसे सौपर्णेय नाम प्राप्त हुआ था | भाषा-विज्ञान की दृष्टि से, इसका प्रतर्दन नाम 'तृत्सु' (तै. आ. १०.६३)। ऐसा माना जाता है कि, प्रवर्दी । एवं 'प्रतृद' लोगों के नामों से सम्बन्ध रखता है, क्योंकि नामक अनुष्ठान में यदि कोई व्यक्ति इसके द्वारा रचित | उक्त तीनों शब्दों में 'तर्द' धातु है। सूक्त का पठन करे, तो उसे अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति | पौराणिक साहित्य में इसे सर्वत्र काशीनरेश कहा होती है।
गया है। किन्तु वैदिक ग्रन्थों में इस प्रकार का निर्देश प्रज्ञ-अमिताभ देवों में हो एक ।
आप्रप्य है।