Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पौ
अध्यात्म रामायण में, इसे पुलोम असुर की कन्या • कहा गया है ( अध्या. रा. अयो. १.१५ ) । भागवत के अनुसार, यह द्वादश आदित्यों में से शक नामक आदित्य की पत्नी थी, जिससे इसे जयंत, ऋषभ एवं मीढुष नामक पुत्र उत्पन्न हुए थे ( भा. ६.१८.७ ) ।
पौषाजिति — अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार एवं ऋषि । इसके नाम के लिये ‘पौषजिति' एवं 'पाष्याजिति' पाठभेद उपलब्ध हैं।
प्राचीन चरित्रकोश
पौष्करसादि—सांख्यायन आरण्यक में निर्दिष्ट एक गुरु एवं आचार्य (सां. आ. ७.१७; आप. ध. १.६.१९. ७; १०.२८.१)। संभवतः यह किसी 'पुष्करसादि ' का वंशज रहा होगा। उपनयन के बाद, उसी दिन गायत्री मंत्र का उपदेश ‘उपनीत ' बालक को करना चाहिये, ऐसा इसका मत था (सां. आ. ७.१७ )। तदनुसार गायत्रीमंत्र का उपदेश आज भी किया जाता है।
तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में, एक वैय्याकरण के नाते पौष्करादि का निर्देश प्राप्त है ( तै. प्रा. ५.३७-३८ पा. सू. वार्तिक. ८.४.४८ ) । संभवतः धर्मशास्त्रकार एवं वैय्याकरण पौष्करसादि दोनों एक ही होंगे।
पौष्टी - पूरु राजा की पत्नी, जिसे पूरुद्वारा प्रवीर, ईश्वर एवं रौद्राश्व नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे (म. आ. ८९.४) ।
पूर राजा की कौसल्या नामक और एक पत्नी भी थी । किंतु महाभारत में एक स्थान पर प्राप्त निर्देश के अनुसार, 1. पौष्टी का ही नामांतर कौसल्या था ( म. आ. ९०.११ ) ।
पौष्णायन - भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
पौपिण्डय - सामविधान ब्राह्मण में निर्दिष्ट एक गुरु एवं आचार्य, जो जैमिनि का शिष्य था ( वेबर, इन्डिशे स्टूडियेन, ४.२७७ ) । व्यास की सामशिष्यपरंपरा का सुविख्यात आचार्य 'पौप्यंजि' अथवा 'पौष्पिजि संभवतः यही होगा (पौष्यंजि देखिये) ।
प्रगाथ घौर
था। इसकी तीन स्त्रियाँ होते हुए भी इसे एक भी पुत्र न था। आगे चल कर शंकर की कृपा से इसे चंद्रशेखर नामक एक पुत्र हुआ ।
इसकी राजधानी दृषद्वती नदी के किनारे ब्रह्मावर्त के समीप स्थित करवीर नगरी में थी ( कालि. ४९ ) ।
पौष्यंजि - एक आचार्य, जो व्यास की सामशिष्य परंपरा के सुकर्मन् जैमिनि का शिष्य था । इसे 'पौपिजि ' एवं ' पौष्पिंड्य ' नामांतर भी प्राप्त हैं।
यह सामवेदी श्रुतर्षि था । सुकर्मन् जैमिनि नामक सुविख्यात आचार्य के ' पौष्यजि ' एवं ' हिरण्यनाभ कौसल्य' ये दो प्रमुख शिष्य थे । उनमें से पौष्यंजि ने सामवेद की पांचसो संहिताएँ बनायी, एवं वे अपने लागाक्षि ( लोकाक्षि ), कुथुमि, कुशुमिन्, एवं लांगलि नामक चार शिष्यों को सिखायीं। आगे चल कर उसी चार शिष्यों से सामवेद की परंपरा का निर्माण हुआ ( व्यास देखिये ) । इसके निर्माण किये, सामदेवपरंपरा को सामवेद की 'उदीच्या शाखा ' कहते है ।
ब्रह्मांड के अनुसार, इसने याज्ञवल्क्य को योगविद्या सिखाई थी।
पौप्यायन -- भृगुकुल का एक गोत्रकार ।
प्रकालन - - वासुकिलकुल का एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र में जलकर मारा गया ( म. आ. ५२.५)।
प्रकाश -- एक भृगुवंशी ब्राह्मण, जो गृत्समदवंशीय 'तम' नामक ऋषि का पुत्र था ( म. अनु. ३०.६३ ) । प्रकाशक -- रैवत मनु के पुत्रों में से एक । प्रकृति -- रैवत मन्वंतर का एक देवगण ।
प्रगाथ काण्व -- एक वैदिक मंत्रद्रष्टा, जो 'प्रगाथ नामक मंत्रो का प्रणेता था (ऋ. ८.१.१ - २; ऐ. आ. २. २.२)।
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ऋग्वेदांतर्गत एक मिश्र जाति के छंद का नाम 'प्रगाथ । उस छन्द में निबद्ध मंत्रों की रचना करने के कारण, इसे यह नाम प्राप्त हुआ । ऋग्वेदानुक्रमणिका के अनुसार, यह दुर्गह राजा का समकालीन था । आश्वलायन के ब्रह्मयज्ञांग तर्पण में इसका निर्देश प्राप्त है ।
प्रगाथ घौर - घोर आंगिरस ऋषि के दो पुत्रों में से एक । इसके भाई का नाम कण्व था । एक बार इस कण्व की पत्नी से छेड़छाड़ की। इस कारण, कण्व इस पर कुद्ध हुआ, एवं इसको शाप देने लगा । फिर इसने उससे एवं उसकी पत्नी की क्षमा माँगी ( कण्व १.
देखिये) ।
पौप्य – इक्ष्वाकुवंशीय राजा पुष्यपुत्र ध्रुवसंधि का नामांतर | आचार्य वेद इसका पुरोहित था । इसकी पत्नी ने अपने दिव्य कुंडल उत्तक ऋषि को प्रदान किये थे ( म. आ. ३.८५ ) ।
पश्चात् इसका एवं उत्तऋषि का झगड़ा हो गया, जिस कारण, इसने उसे 'अनपत्य' होने का शाप दिया । उत्तंक ने भी इसे अंधा होने का प्रतिशाप दिया (म. आ. ३.१२७ ) ।
२. एक राजा, जो करवीर नगरी के राजा पूषन् का पुत्र
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