Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
पुलह
इसे संध्या नामक एक पत्नी थी। इसके अतिरिक्त क्रोधा की बारह कन्यायें इसकी पत्नियाँ थीं, जिनके नाम इस प्रकार थे -- मृगी, मृगमंदा, हरिभद्रा, इरावती, भूता, कपिशा दंद्रा, रिषा, तिर्या, श्वेता सरमा तथा सुरसा ( ब्रह्मांड. ३.७.१७१ ) ।
पुलवंश -- महाभारत के अनुसार, पुलह की संतति मनुष्य न हो कर, मृग, सिंह, रीछ, व्याघ्र, किंपुरुष आदि योनि की थीं ( म. आ. ६०.७ ) । वायु के अनुसार, इसके पुत्रों में दानव, रक्ष, गंधर्व, किन्नर, भूत, सर्प, पिशाच आदि प्रमुख थे ( वायु. ७०. ६४-६५ ७३.२४.२५) ।
मार्कण्डेय के अनुसार, पुलह के कर्दम, अर्ववीर एवं सहिष्णु नामक तीन पुत्र थे ( मार्क. ५२.२३ - २४ ) । ये पुत्र दुष्टचरित्र थे, अतएव पुलह ने अगस्त्य के दृढ़ा (दृढ़च्युत) को गोद लिया । पद्म में इसी अगस्त्यपुत्र का नाम दंभोलि दिया गया है।
पुत्र
इसी कारण पुलह के वंश की दो शाखायें हो गयीं। इनमें से पुलह के निजी पुत्र 'पौलह' अमानुषी योनि के थे, एवं अगस्त्यशाखा के पुत्र ब्रह्मराक्षस योनि के थे ( मत्स्य. २०२.९-१० ) ।
३. महाभारतकालीन एक ऋषि । यह अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित था (म. आ. ११४.४२ ) । शरशय्या पर पड़े हुये भीष्म के पास आये हुये ऋषियों यह कथा (म. अनु. २६.४ ) । अलकनंदा नदी के तट पर यह जप-तप करता था (म. व. परि. १.१६.१२)
४. एक ऋषि, जो ब्रह्माजी के द्वारा पुष्करक्षेत्र में किये यज्ञ में " प्रत्युद्गाता था ( पद्म. स. ३४ ) ।
५. वैशाख माह में अर्यमा नामक सूर्य के साथ घूमनेवाला एक ऋषि (भा. १२.११.३४ )
पुलिन - अमृतरक्षक देवों में से एक (म. आ. २८. १९) ।
पुलिन्द - ( शुंग. भविष्य . ) एक शुंगवंशीय राजा । भागवत के अनुसार यह भद्रक का, ब्रह्मांड के अनुसार भद्र का, वायु के अनुसार ध्रुक का, एवं मत्स्य के अनुसार अन्तकका पुत्र था । विष्णु में इसे 'आर्द्रकपुत्र पुलिंदक कहा गया है।
पुलोमजा
शूद्र बन गये ( म. अनु. ३३.२२ - २३) । ये म्लेच्छ जातियों में थे, जो कलियुग में पृथ्वी के शासक बने (म.व. १८६.३० ) ।
वसिष्ठ ऋषि की गौं नन्दिनी के कुपित होने पर, उसके भुख से निकले फेन से ये उत्पन्न हुये थे (म. आ. १६५.३६) । भीम ने इन लोगों पर हमला किया, एवं इनके महानगर को ध्वस्त कर, इनके राजा सुकुमार एवं सुमित्र को जीत लिया ( म. स. २६.१० ) । सहदेव ने भी इन्हीं दोनों राजाओं पर विजय प्राप्त की थी (म. स. २८.४ ) ।
भारतीय युद्ध में, ये लोग दुर्योधन की सेना में सम्मिलित थे ( म. उ. १५८.२० ) । पांड्य- नरेश के साथ इनका युद्ध हुआ था एवं उसके बाणों द्वारा ये आहत हुये थे ( म. क. १५.१० ) ।
पुलिमत्- (आंध्र. भविष्य . ) एक आन्ध्रवंशीय राजा । विष्णु के अनुसार, यह गोमतीपुत्र राजा का पुत्र था । इसे ' पुरीमत् ' नामांतर भी प्राप्त था (पुरीमत् देखिये) ।
पुलुष प्राचीनयोग्य - एक वैदिक ऋषि, जो प्राचीनयोग' का वंशज था । यह दृति ऐन्द्रोत शौनक नामक ऋषि का शिष्य था (जै. उ. ब्रा. ३.४०.२) ।
पुलोमत्-- एक राक्षस, जिसने भृगुपत्नी पुलोमा का हरण किया था ( म. आ. ५.१५) । हरण के समय पुलोमा के गर्भ में च्यवन ऋषि था, जिसके तेज से यह राक्षस जल कर भस्म हो गया ( पुलोमा देखिये) ।
२. एक राक्षस, जो हिरण्यकशिपु एवं वृत्रासुर का अनुयायी था ( भा. ६.६.३१; १०.२०; ७.२.५ ) ।
३. एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से
एक था।
४. प्रहेति नामक राक्षस का पुत्र । इसके मधु, पर, महोग्र तथा लवण नामक चार पुत्र थे ।
५. (आंध्र. भविष्य . ) एक आंध्रवंशीय राजा । मत्स्य के अनुसार, यह गौतमीपुत्र राजा का पुत्र था। इसने अठ्ठाइस वर्षों तक राज्य किया ।
६. (आंध्र. भविष्य. ) एक आंध्रवंशीय राजा । मस्त्य के अनुसार, यह चण्डी का पुत्र था। इसने सात वर्षों तक राज्य किया । इसके पुलोवा, पुलोमारि, पुलोमाचि,
२. किरातों का एक राजा, जो युधिष्ठिर की सभा में सलोमार्चि नामक चार पुत्र थे । उपस्थित था (म. स. ४.४७ ) ।
पुलोमजा - पुलोमत् दैत्य की कन्या ।' शिव
३. पुलिंद देश के निवासियों के लिए प्रयुक्त सामूहिक करने के कारण यह इन्द्रपत्नी शची बनी (स्कंद. नाम | ये पहले क्षत्रिय थे, किंतु ब्राह्मणों के शाप के कारण । ४.२.८० ) ।
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