Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पृथु
प्राचीन चरित्रकोश
कृषि एव सस्य तप तथा वेद स्वधा अंतर्धान बल
सुगंध । माया । विष
तोड जाने पर भी पुन निर्माण होना महौषधि तथा रत्न
।
पात्र लोह रौप्य पृथ्वी छदस् चमस् कमल
kholt
तूंबा परल पलस
पत्थर
कुबेर
अथर्ववेद में प्राप्त तालिका इस प्रकार है (अ. वे. | ब्राहाण में इसका निर्देश 'पृथु' नाम से किया गया है, ८.२८):--
किन्तु सायणभाष्य में सर्वत्र इसे 'पृथिन् ' कहा गया हैं । अथर्ववेद में भी 'पृथिन् ' पाठ उपलब्ध है (अ. वे. ८. २८.११)।
राज्यभिषेक--शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, पृथ्वी में सर्वप्रथम पृथु का राज्याभिषेक हुआ। इसी कारण राज्याभिषेक का धार्मिक विधियों में किये जानेवाले 'पूर्वोत्तरांगभूत' होम को 'पार्थहोम' कहते हैं । इस राज्याभिषेक के कारण ग्राम्य एवं आरण्यक व्यक्तियों एवं पशुओं का पृथु राजा हुआ (श. ब्रा. ५. ३.५.४) । इसने 'पार्थ' नामक साम कहकर समस्त पृथ्वी का आधिपत्य प्राप्त किया (पं. बा. १३. ५.२०)। एक ऋषि एवं तत्त्वज्ञानी के नाते भी इसका निर्देश प्राप्त है (जै. उ. ब्रा. १.१०.९; ऋ १०.१४८.५)।
इसका राज्य भिषेक महारण्य अथवा दंडकारण्य में । संपन्न हुआ (म. शां. २९.१२९)। इसके राज्याभिषेक के समय, भिन्न भिन्न देवों ने इसे विभिन्न प्रकार के उपहार प्रदान किये । इन्द्र ने अक्षय्य धनु एवं स्वर्ण मुकुट, कुबेर ने स्वर्णासन, यम ने दण्ड, बृहस्पति ने कवच, विष्णु ने सुदर्शन चक्र, रुद्र ने चन्द्रबिम्बांकित तलवार, त्वष्ट्र ने रथ : एवं समुद्र ने शंख दिया। ___ पुराणों में इसे बैन्य अथका वेण्य कहा गया है। यह
चक्षुर्मनु के वंश के वेन राजा का पुत्र था (पद्म. स. २)। इस तालिका अनुसार, मानवों के जातियों में से असुर, | वेन राजा अत्यधिक दुष्ट था जिससे प्रजा बड़ी त्रस्त थी। पितर आदि 'वर्गो' ने पृथ्वी से माया, स्वधा आदि | | उस समय के महर्षियों ने पूजा के साथ सद्व्यवहार करने वस्तुओं का दोहन किया (प्राप्ति की), जिन पर उन के लिए बहु उपदेश दिये, पर उसका कोई प्रभाव न पड़ा। विशिष्ट वर्गो का गुजारा होता है। इस तालिका में, मनुष्य संतप्त होकर ऋषियों ने वेन को मार डाला । राजा के जाति का प्रतिनिधि पृथु वैन्य को मानकर उसने पृथ्वी | अभाव में अराजकता फैल गयी, जननां चोर, डाकुओं से से 'कृषि' एवं 'सस्य' को प्राप्त किया ऐसा कहा गया पीडित हो उठी । पश्चात, सब ऋषियों ने मिलकर वेन की
दाहिनी भुजा का, तथा विष्णु के अनुसार दाहिनी जंघा पृथु वैन्य चाक्षुष मन्वन्तर में पैदा हुआ माना जाता है। का मंथन किया। ध्रव उत्तानपाद राजा के पश्चात् एवं मरुतों के उत्पत्ति के इस मंथन से सर्व प्रथम विन्ध्य निवासी निषाद तथा अनंतर, पृथ वैन्य का युगारंभ होता है। पृथ वैन्य के धीवर उत्पन्न हुए । तत्पश्चात् वेन की दाहिनी भुजा से पश्चात् पृथ्वी पर वैवस्वत मनु एवं उसके वंश का राज्य पृथु नामक पुत्र एवं अर्चि नामक कन्या उत्पन्न हुयी शुरू होता है।
| (भा. ४.१५.१-२) पृथु विष्णु का अंशावतार था एवं एक उदारदाता, कृषि का आविष्कर्ता, एवं मनुष्य तथा | जन्म से ही धनुष एवं कवच धारण किये हुए उत्पन्न हुआ पशुओं के अधिपति के रूप में वैदिक साहित्य में, इसका था। इसके अवतीर्ण होते ही महर्षि आदि प्रसन्न हुए निर्देश प्राप्त है (ऋ. १०.९३.१४; अ. वे. ८. १०.२४ | तथा उन्होंने इसे सम्राट बनाया (पन. भृ. २८)। पं. बा. १३. ५.१९)। वेन का वंशज होने के कारण राज्याभिषेक होने के उपरांत पृथु ने प्राचीन सरस्वती इसे 'वैन्य' उपाधि प्राप्त थी (ऋ. ८.९.१०) शपतथ। नदी के किनारे ब्रह्मावर्त में सौ अश्वमेध करने का संकल्प
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| । विरोचन |
यम | वैवस्वतमनु| | सोम | चित्ररथ | हिमालय । |तक्षक | सुमाली
। दोहन करनेवाला । वत्स वृक्ष |शाल (जिसेस राल | पिंपरी
बनते हैं)
धृतराष्ट्र असुर | द्वमूर्धन् पितर । अंतक मनुष्य | पृथुवैन्य
| रवि ऋषि । बृहस्पति यक्ष | रजतनामि गंधर्व | वसुरुचि राक्षस | जातुनाभ पर्वत । मेरु वर्ग देव