Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पुंडरीकाक्ष
प्राचीन चरित्रकोश
पुनर्भव
पुत्र।
पुंडरीकाक्ष-इक्ष्वाकु वंश के पुंडरीक राजा का होकर, रैवत के सौ भाई राज्य से भाग कर इधर उधर नामांतर (पुंडरीक १. देखिये)।
चले गये। आगे चलकर शर्यातवंश हैहयवंश में विलीन २. भगवान् श्रीकृष्ण का नामांतर (म. उ. ६८.६)। हो गया (विष्णु. ४.२.१-२)।
पुंडरीयक-- एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु. | पुण्यजनी-मणिभद्र नामक शिवगण की पत्नी। इसके ९१.३४)।
पिता का नाम ऋतुस्थ था। मणिभद्र से इसे तेइप्स पुत्र पुंडलिक-- कुरुक्षेत्र के कौशिक ब्राह्मण के सात पुत्रों | हुये (ब्रह्माड ३.७.१२२-१२५, मणिभद्र देखिये)। में से एक ( पितृवर्तिन् देखिये )।
पुण्यनामन्--स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४. पुंड्र--(सो. अनु.) अनुवंश का एक राजा । यह । ५५)। बलि राजा के छः पुत्रों में से एक था ( अंग एवं बलि
| पुण्यनिधि-मथुरा का चन्द्रवंशी राजा। इसने देखिये)।
रामेश्वर में रहकर विष्णु की आराधना की। तब इसकी . २. पुंड देश के लोगों के लिये प्रयुक्त एक सामूहिक
तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु 'सेतुमाधव' नाम नाम । इन लोगों को पाण्डु राजा ने जीता था (म. आ.
से रामेश्वर में निवास करने लगे (स्कंद. ३.५१)। १०५.१२)। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय ये लोग पुण्यवत्-(सो. ऋक्ष.) एक राजा । मस्त्य के भेंट लेकर आये थे (म. स. ४८.१७)
अनुसार यह वृषभ राजा का पुत्र था। इसे 'पुष्यवत्' कर्ण ने अपने दिग्विजय के समय इन लोगों को, एवं
नामांतर भी प्राप्त था। इनके पौंड्रक वासुदेव नामक राजा को जीता था (म. क.
पुण्यशील-गोदावरी के तट पर निवास करनेवाला ५.१९)। पाण्डवों के अश्वमेध यज्ञ के समय अर्जन ने एक ब्राह्मण । एक बार इसने एक वंध्या स्त्री के ब्राह्मण पति इन्हें जीता था (म. आश्व. ८४.२९)।
को श्राद्धकर्म के लिए बैठाया । इस पापकर्म के कारण इसका ३. वसुदेव के सुतनु से उत्पन्न दो पुत्रों में से ज्येष्ठ मुख गर्दभ के समान हो गया। अन्त में, वेंकटाचल के
स्वामितीर्थ में तथा आकाशगंगातीर्थ में स्नान करने के ४. ब्रह्माण्ड के अनुसार, व्यास के यजःशिष्य परंपरा | उपरांत, इसे इस शाप से छुटकारा मिला, एवं इसका में से याज्ञवल्क्य का वाजसनेय शिष्य ।
मुख पहले की तरह हो गया (स्कंद. २.१.२२)। पुंडक-एक प्राचीन क्षत्रिय नरेश, जो युधिष्ठिर की
पुण्यश्रवस--एक ऋषि । विष्णुभक्त होने के कारण, सभा में उपस्थित था (म. स. ४.२६)। युधिष्ठिर के
कृष्णावतार के समय इसने नंद के भाई के घर, मे लवंगा राजसूय यज्ञ में यह 'दुकूलादि ' भेंट लाया था ( म. स.
| नामक गोपी के रूप में जन्म लिया (पद्म. पा.७२.१५२)। ४८.४७)।
पुत्र--स्वारोचिष मनु के पुत्रों में से एक । पुण्य--महेन्द्रपर्वत पर रहनेवाले दीर्घतपस नामक पुत्रक-(सो. ऋक्ष.) एक राजा । वायु के अनुसार तपस्वी के दो पुत्रों में से एक । इसका भाई पावन था. यह कुरु राजा का पुत्र था। इसका 'प्रजन' नामांतर जो अत्यधिक गँवार था। अपने माता-पिता की मृत्यु के अनामिका
में
भी प्राप्त है। उपरांत इसने अपने शोकग्रस्त भाई पवन को उपदेश | पुत्रव--अंगिराकुल का एक गोत्रकार। देकर उसे शोक से मुक्त किया (यो. वा. ५.१९- पुत्रसेन--मैत्रायणी संहिता में निर्दिष्ट किसी एक २१)।
व्यक्ति का नाम (मै. सं. ४.६.६)। २. (सो. ऋक्ष.) एक राजा । मत्य के अनुसार, यह पुत्रिकर्षण--(आंध्र. भविष्य.) एक आंध्रवंशीय पुण्यवान नामक राजा का पुत्र था।
राजा । वायु के अनुसार, हाल तथा पंचसप्तक राजाओं पुण्यकृत्-एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु. ९१. | के पश्चात् यह राजगद्दी पर बैठा (वायु. ९९.३५३)। ३०)।
इसके पुरीन्द्रसेन, पुरीषभीरु तथा प्रविल्लसेन नामांतर पुण्यजन-एक राक्षस । कुशस्थली (द्वारिका) का | भी प्राप्त है । इसने इक्कीस वर्षों तक राज्य किया। शर्यातवंशीय राजा ककुमिन् रैवत जब ब्रह्माजी से मिलने | पुनर्दत्त--सांख्यायन आरण्यक में निर्दिष्ट एक गया था, तब उसकी अनुपस्थिति में इसने उसके | आचार्य (सां. आ. ८.८)। राज्य पर अधिकार जमा लिया। इसके भय से त्रस्त पुनर्भव समाभाग वा भागवत --(शुंग. भविष्य.)
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