Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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परशुराम
प्राचीन चरित्रकोश
परशुराम
तीर्थस्थानों एवं जंगलों को पार करता हुआ, यह दक्षिण इस प्रकार इक्कीस बारा इसने पृथ्वी भर के क्षत्रियों का मार्ग से पश्चिम घाट के मल्लकी नामक दत्तात्रेयक्षेत्र में वध कर, उसे निःक्षत्रिय बना दिया (ब्रह्मांड. ३.४६ )। आया । वहाँ कुछ काल तक विश्राम करने के उपरांत यह निःक्षत्रिय पृथ्वी--इस तरह परशुराम ने चौसठ कोटि चलनेवाला ही था, कि इतने में आकाशवाणी हुयी क्षत्रियों का वध किया। उनमें से चौदह कोटि क्षत्रिय 'अपने पिता का अग्निसंस्कार तुम इसी जगह करों'। सरासर ब्राह्मणों का द्वेष करनेवाले थे। बचे हुए क्षत्रियों आकाशवाणी के कथनानुसार, परशुराम ने दत्तात्रेय की को इसने नाना प्रकार की सजाएँ दी। दंतक्रूर का इसने अनुमति से, जमदग्नि का अंतिम संस्कार किया। रेणुका वध किया। एक हजार वीरों को इसने मूसल से मार भी अपने पति के शव के साथ आग्नि में सती हो डाला। हजारों की तलवार से काट डाला । हजारों को पेड़ गयी।
पर टाँग कर मार डाला, तथा उतने ही लोगों को पानी बाद में परशुराम ने मातृ-पितृप्रेम से विह्वल हो कर में डुबो दिया। हजारों के दाँत तोड़ कर नाक तथा कान इन्हें पुकारा। फिर दोनों उस स्थान पर प्रत्यक्ष उपस्थित काट लिये। सात हजार क्षत्रियों को मिर्च की धुनी दी। हो गये। इसी कारण उस स्थान को 'मातृतीर्थ' (महाराष्ट्र बचे हुये लोगों को बाँधकर, मार कर, तथा मस्तक तोड़कर में स्थित आधुनिक माहूर ) नाम दिया गया। इस नष्ट कर दिया । गुणावती के उत्तर में तथा खांडवारण्य मातृतीर्थ में परशुराम की माता रेणुका स्वयं वास करती के दक्षिण में जो पहाड़ियाँ हैं, उनकी तराई में क्षत्रियों हैं। इस स्थान पर रेणुका ने परशुराम को आज्ञा दी, से इसका युद्ध हुआ। वहाँ इसने दस हजार वीरों का 'तुम कार्तवीर्य का वध करो, एवं पृथ्वी को निःक्षत्रिय बना नाश किया। उसके बाद काश्मीर, दरद, कुंति, क्षुद्रक, दो।
मालव, अंग, वंग कलिंग, विदेह, ताम्रलिप्त, रक्षोवाह, नर्मदा के किनारे मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम था। वहाँ वीतिहोत्र, त्रिगर्त, मार्तिकावत, शिबि इत्यादि अनेक मार्कण्डेय ऋषि का आशीर्वाद लेकर, परशुराम ने कार्तवीर्य | देश के राजाओं को कीड़ेमकोड़े के समान इसने वध कर का वध किया एवं पृथ्वी निःक्षत्रिय करने की अपनी दिया। इसी निर्दयता से जंगली लोगों का भी वध किया। प्रतिज्ञा निभाने के लिये, यह आगे बढ़ा ( रेणु. ३७- इस प्रकार परशुराम ने बारह हजार मूर्धामिषिक्त राजाओं • ४०)।
के सिर काट डाले । बाद में हजारों राजाओं को पकड़ कर, हैहयविनाश-अपनी प्रतिज्ञा निभाने के लिये, यह कुरुक्षेत्र ले आया। वहाँ पाँच बड़े कुण्ड खोद कर परशुराम ने सर्वप्रथम अपने गुरु अगस्त्य का स्मरण | इसने उसे कैदी राजाओं के रक्त से भर दिया। पश्चात्
किया। फिर अगस्त्य ने इसे उत्तम रथ एवं आयुध दिये। उन कुंडों में परशुराम ने 'रुधिरस्नान' किया एवं अपने . सहसाह इसका सारथि बना (ब्रह्मांड. ३.४६.१४)। रुद्र- पितरों को तर्पण दिया। वे कुंड 'समंतपंचक तीर्थ' द्वारा दिया गया 'अमित्रजित् ' शंख इसने फूंका। था 'परशुरामहृद' नाम से आज भी प्रसिद्ध है ।
कार्तवीर्य के शूरसेनादि पाँच पुत्रों ने अन्य राजाओं बाद में गया जाकर चन्द्रपाद नामक स्थान पर इसने को साथ ले कर, परशराम का सामना करने का प्रयत्न | श्राद्ध किया (पन, स्व. २६)। इस प्रकारे अदभुत किया। उनको वध कर, अन्य क्षत्रियों का वध करने का | कर्म कर के परशुराम प्रतिज्ञा से मुक्त हुआ। पितरों को सत्र इसने शुरू किया । हैहय राजाओं की राजधानी यह क्षत्रियहत्या पसन्द न आई। उन्हों ने इस कार्य से माहिष्मती नगरी को इसने जला कर भस्म कर दिया। छुटकारा पाने तथा पाप से मुक्ति प्राप्त करने के लिये, हैहयों में से वीतिहोत्र केवल बच गया, शेष हैहय मारे प्रायश्चित करने के लिये कहा (म. आ. २.४.१२)। गये।
पितरों की आज्ञा का पालन कर, यह अकृतव्रण के साथ __ हैहयविनाश का यह रौद्र कृत्य पूरा कर, परशुराम
सिद्धवन की ओर गया। रथ, सारथि, धनुष आदिको महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने के लिये चला गया। नये | त्याग कर इसने पुनः ब्राह्मणधर्म स्वीकार किया। सब क्षत्रिय पैदा होते ही, उनका वध वरने की इसकी प्रतिज्ञा तीर्थो पर स्नान कर इसने तीन बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा थी। उस कारण यह दस वर्षों तक लगातार तपस्या की, और महेन्द्र पर्वत पर स्थायी निवास बनाया। करता था, एवं दो वर्षों तक महेंद्र पर्वत से उतर कर, नये अश्वमेधयज्ञ-पश्चात् , जीती हुयी सारी पृथ्वी पैदा हुए क्षत्रियों को अत्यंत निष्ठरता से मार देता था। कश्यप ऋषि को दान देने के लिये, परशुराम ने एक
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