Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
परशुराम
प्राचीन चरित्रकोश
परशुराम
महान् अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ के (६) शिबीराजा गोपालि-गायों ने इसकी रक्षा की । लिये, बत्तीस हाँथ ऊँची सुवर्णवेदी इसने बनायी, एवं (७) प्रतर्दनपुत्र वत्स-इसकी रक्षा गोवत्सों ने की। . निम्नलिखित ऋषिओं को यज्ञाधिकार दिये-काश्यप
(८) मरुत्त-इसे समुद्र ने बचाया। (अध्वर्यु), गौतम (उद्गातृ), विश्वामित्र (होतृ) तथा
इन राजाओं के वंश के लोग क्षत्रिय होते हुये भी, मार्कण्डेय (ब्रह्मा)। भरद्वाज, अग्निवेश्यादि ऋषियों ने भी शिल्पकार, स्वर्णकार आदि कनिष्ठ श्रेणी के व्यवसाय इस यज्ञ में भाग लिया। इस प्रकार यज्ञ समाप्त कर करने पर विवश हये। परशुराम ने महेन्द्र पर्वत को छोड़ कर, शेष पृथ्वी कश्यप इस प्रकार परशुराम के कारण, चारों ओर अराजकता को दान दे दी (म. शां. ४९; अनु. १३७.१२)। फैल गयी। उस अराजकता को नष्ट करने के लिये, कश्यप पश्चात 'दीपप्रतिष्ठाख्य' नामक व्रत किया (ब्रह्माड | ने चारों ओर के क्षत्रियों को ढूंढना पुनः प्रारंभ किया, एव ३.४७)।
उनके राज्याभिषेक कर सुराज्य स्थापित करने की कोशिश नया हत्याकांड-इस व्यवहार के कारण, परशुराम के | की (म. शां. ४९.५७-६०)। बारे में लोगों के हृदय में तिरस्कार की भावना भर गयी। 'शूर्पारक' की स्थापना-अवशिष्ट क्षत्रियों के बचाव कुछ दिनों के उपरांत विश्वमित्र-पौत्र तथा रैम्यपुत्र परावसु के लिये, कश्यप ने परशुराम को दक्षिण सागर के पश्चिमी. ने भरी सभा में के इसे चिढ़ाया तथा कहा 'पृथ्वी किनारे जाने के लिये कहा। 'शूरक' नामक प्रदेश : निःक्षत्रिय करने की प्रतिज्ञा तुमने की । परन्तु ययाति के समुद्र से प्राप्त कर, परशुराम वहाँ रहने लगा। भृगुकच्छ । यज्ञ के लिये एकत्रिप प्रतर्दन प्रभृति लोग क्या क्षत्रिय (भडोच ) से ले कर कन्याकुमारी तक का पश्चिम समुद्रनहीं हैं ? तुम मनचाही बकबास कहते हो । सच बात यह तट का प्रदेश 'परशुराम देश' या 'शूपरिक ' नाम से । है कि सब ओर फैले क्षत्रियों के डर से तुम वन में मुँह | प्रसिद्ध हुआ। छिया कर बैठे हो'। इससे संतप्त हो कर परशुराम शूर्पारक प्रांत की स्थापना के कई अन्य कारण भी ने पुनः शास्त्र हाथ में लिया, तथा पहले निरपराधी पुराणों में प्राप्त हैं । सगरपुत्रों द्वारा गंगा नदी खोदी जाने मानकर छोड़े गये क्षत्रियों का वध किया। छोटों का विचार पर, 'गोकर्ण' का प्रदेश समुद्र में डूंबने का भय उत्पन्नं न कर, इसने माँ के गर्भ में स्थित बच्चों का भी नाश
हुआ। वहाँ रहनेवाले 'शुष्क आदि ब्राह्मणों ने महेंद्र पर्वत किया। अन्त में सम्पूर्ण पृथ्वी का दान कर स्वयं महेन्द्र
| जा कर, परशुराम से प्रार्थना की। फिर गोकर्णवासियों के पर्वत पर रहने के लिये चला गया (म. द्रो. परि. क्र. |
लिये नयी बस्ती बसाने के लिये, इसने समुद्र पीछे हटा २६ पंक्ति ८६६)।
कर, दक्षिणोत्तर चार सौ योजन लम्बे शूर्पारक देश की अभिमन्यु की मृत्यु से शोकग्रस्त युधिष्ठिर को यह स्थापना की (ब्रह्मांड. ३. ५६.५१-५७)। कथा बताकर नारद ने शांत किया।
___परशुरामकथा का अन्वयार्थ- परशुराम द्वारा हत्याकांडसे बचे क्षत्रिय-परशुराम के हत्याकांड से पृथ्वी निःक्षत्रियकरण की प्राचीन कथा में कुछ अतिशयोक्ति बहुत ही थोड़े क्षत्रिय बच सके । उनके नाम इस प्रकार | जरूर प्रतीत होती है । अयोध्या एवं कान्यकुब्ज के राजा
अपनी माता रेणुका एवं मातामही सत्यवती के तरफ से (१) हैहय राजा वीतिहोत्र—यह अपने स्त्रियों के परशुराम के रिश्तेदार थे। उन राजाओं को साथ ले कर अंतःपुर में छिपने से बच गया।
| परशुराम ने हैहयों को एवं हैहयपक्षीय राजाओं को इक्कीस (२) पौरव राजा ऋक्षवान्-यह ऋक्षवान् पर्वतों बार युद्धभूमियों पर पराजित किया, इस 'परशुराम कथा' के के रीघों में जाकर छिपने से बच गया।
अन्वयार्थ लगा जा सकता है । हैहयविरोधी इस युद्ध में, (३) अयोध्या का राजा सर्वकर्मन्-पराशर ऋषि ने अयोध्या एवं कान्यकुब्ज के अतिरिक्त, वैशाली, विदेह, शूद्र के समान सेवा कर इसे बचाया।
काशी आदि देशों के राजा भी परशराम के पक्ष में शामिल (४) मगधराज बृहद्रथ-गृध्रकुट पर्वत पर रहने- थे। इसी कारण, परशुराम एवं हैहयों का युद्ध, प्राचीन वाले बंदरों ने इसकी रक्षा की।
भारतीय इतिहास का पहला महायुद्ध कहा जाता है। (५) अंगराज चित्ररथ -गंगातीर पर रहने वाले कई अभ्यासकों के अनुसार, भार्गव लोग एवं स्वयं गौतम ने इसकी रक्षा की।
| परशुराम 'नाविक' व्यवसाय के लोग थे, एवं पश्चिम ३९२