Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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परशुराम
प्राचीन चरित्रकोश
परशुराम
समुद्र किनारे रह कर, योरप, अफ्रीका आदि देशों से किया (ह. वं. २.४४) । सैहिकेय शाल्व का वध भी व्यापारविनिमय करते थे। इस व्यापार के कारण उन्होंने कृष्ण ने परशुराम के कहने पर ही किया (ह. बहुत संपत्ति इकट्ठा की थी। पश्चिम भारतवर्ष पर राज्य | वं. २. ४४ )। सैहिकेय शाल्व के वध के बाद, शंकर करनेवाले हैहय लोग, विदेशी व्यापारविनिमय आर्य | ने परशराम को 'शंकरगीता' का ज्ञान कराया (विष्णुलोगों के कब्जे में लाना चाहते थे। इस कारण, कार्तवीय धर्म. १.५२.६५)। जरासंघ के आक्रमण से डर कर, अर्जुन ने 'अत्रि' नामक नाविकव्यवसायी लोगों से दोस्ती | बलराम तथा कृष्ण राजधानी के लिये नये स्थान हूँढ रहे की, एवं उनसे एक सहस्र युद्धनौकाएँ, बना लीं। उसी एक | थे। उस समय उनकी भेंट परशुराम से हुयी थी। परशुराम हज़ार नौकाओं के कारण, कार्तवीय को सहस्र हाथोंवाला | ने उन्हें गोमंत पर्वत पर रह कर जरासंध से दुर्गयुद्ध करने ('सहस्रार्जुन' ) नामक उपाधि मिली । पश्चात् कार्तवीर्य की सलाह दी (ह. वं. २.३९)। ने, भागवों से उनकी संपूर्ण संपत्ति मांगी। इस कारण, महेंद्र पर्वत पर जब यह रहता था, तब अष्टमी तथा ऋद्ध हो कर परशराम ने हैहयों का नाश किया, एवं नर्मदा | चतुर्दशी के ही दिन केवल अभ्यागतों से मिलता था नदी के प्रदेश में से सारे हैहय राज्य का विध्वंस किया। (म. व. ११५.६) । पूर्व समुद्र की ओर भ्रमण करते यही विध्वंस पुराणों में 'निःक्षत्रिय पृथ्वी' के नाम से | हये युधिष्ठिर की भेंट एक दिन परशुराम से हुयी थी। वर्णित है।
बाद में युधिष्ठिर गोदावरी नदी के मुख की ओर चला गया इस तरह ध्वस्त हैहय प्रदेश में परशुराम ने नया | (म. व. ११७-११८)। राज्य स्थापित किया, एवं पश्चिम समुद्र किनारे के भृगुकच्छ |
शूर्पारक बसाने के पूर्व परशुराम महेंद्र पर्वत पर रहता से लेकर कन्याकुमारी तक सारा प्रदेश नया बसाया। यही था । उसके उपरांत शूर्पारक प्रदेश में रहने लगा (ब्रह्मांड. प्रदेश 'शूपारक' नाम से प्रसिद्ध हुआ, एवं पश्चिम के | न्यापारविनिमय का केंद्रस्थान बन गया । हैहयों के विनाश से, पश्चिमी विदेशों का व्यापार उत्तर हिंदुस्थान के आर्य
___ भीष्माचार्य को परशुराम ने अस्त्रविद्या सिखायी थी । लोगों के हाथों से निकल गया, एवं दाक्षिणात्य द्रविड़ों के
भीष्म अम्बा का वरण करे, इस हेतु से इन गुरुशिष्यओं • हाथों में वह चला गया (करंदीकर-'नवाकाळ' निबंध, | के
| का युद्ध भी हुआ था। एक महीने तक युद्ध चलता रहा,
अन्त में परशुरान ने भीष्म को पराजित किया (म. उ.
१८६.८)। परशुराम ने क्षत्रियों की हिंसा की। उसके फिर भी परशुराम हैहयों का संपूर्ण विनाश न
विषय में भीष्म ने इसे मुँहतोड़ जवाब दिया था । अपने कर सका। परशुराम के पश्चात, हैहय लोग 'तालजंघ'
| को ब्राहाण बताकर कर्ण ने परशुराम से शिक्षा प्राप्त की • सामूहिक नाम से पुनः एकत्र हुये। तालजंधों में पाँच
थी। बाद में परशुराम को यह भेद पता चला, और - उपजातियों का सामवेश था, जिनके नाम थे:
उन्होंने उसे शाप दिया। वीतहोत्र, शांत, भोज, अवन्ति, कुण्डरिक (मत्स्य. ४३.४८-४९; वायु. ९४.५१-५२)। उन लोगों ने परशुराम ने द्रोण को ब्रह्मास्त्र सिखाया था। दंभोद्भव कान्यकुब्ज, कोमल, काशी आदि देशों पर बार बार आक्रमण | राक्षस की कथा सुनाकर, परशुराम ने दुर्योधन को युद्ध से किये, एवं कान्यकुब्ज राज्य का संपूर्ण विनाश किया। | परावृत करने का प्रयत्न किया था ( म. उ.८४)। बम्बई
ऐतिहासिक दृष्टि से, परशराम जामदग्न्य, राम के वाल्केश्वर मंदिर के शिवलिंग की स्थापना परशुराम ने दाशरथि एवं पांडवों से बहुत ही पूर्वकालीन हैं। फिर | की थी (स्कंद. सह्याद्रि. २-१)। भी 'रामायण' एवं 'महाभारत' के अनेक कथाओं रामायण में--रामायण में भी परशुराम का निर्देश में परशुराम की उपस्थिति का वर्णन प्राप्त है। कई बार आया है। सीता स्वयंवर के समय राम ने शिव
महाभारत में- सौभपति शाल्व के हाथों से परशुराम के धनुष को तोड़ दिया । अपने गुरु शिव का, पराजित हुआ। फिर कृष्ण ने शाल्व का वध किया (म. अपमान सहन न कर, परशुराम राम से युद्ध करने स. परि. १. क्र. २१. पंक्ति, ४७४-४८५)। करवीर | के लिये तत्पर हुआ। किंतु उस युद्ध में राम ने परशुराम शृगाल के उन्मत्त कृत्यों की शिकायत परशराम ने बलराम को पराजित किया, एवं परशुराम के तपसामर्थ्य नष्ट एवं कृष्ण के पास की। फिर उसका वध भी कृष्ण ने होने का उसे शाप दिया (वा. रा. बा. ७४-७६)। प्रा. च.५०]
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