Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पांडु
प्राचीन चरित्रकोश
पांड्य
युधिष्ठिर, भीम एवं अर्जुन नामक पुत्र उत्पन्न हुये (म. | २. एक पांड्यवंशीय राजा । श्रीकृष्ण ने इसका वध आ. ११४)।
किया (म. द्रो. २२.१६७*) ___ इसके उपरांत पुत्रोत्पत्ति करना व्यभिचार होगा, यह ३. पांड्य राजा मलयध्वज का नामांतर । इसके पिता कहकर कुन्ती ने पुत्रोत्पन्न करना अमान्य कर दिया। | का वध श्रीकृष्ण ने किया (पांड्य २. देखिये) । फिर बाद में पांडु की आज्ञा से, कुन्ती ने माद्री को दुर्वासा | अपने पिता के वध का बदला लेने के लिये, पांड्यराज का मंत्र प्रदान किया, तथा अश्विनीकुमारों के प्रभाव से, | मलयध्वज ने भीष्म, द्रोण एवं कृप से. अस्त्रविद्या प्राप्त उसे नकुल सहदेव नामक जुड़वा पुत्र हुये (म. आ. | की एवं यह कर्ण, अर्जुन, रुक्मि के समान शूर बना। १११ - ११३)।
यह श्रीकृष्ण की द्वारकानगरी पर आक्रमण करना मृत्यु-एक बार वसंत ऋतु में, पांडु राजा अपने | चाहता था। किंतु इसके सुहृदों ने इसे इस साहस से भार्याओं के साथ अरण्य में घूम रहा था । अरण्य की उद्दीप्त | परावृत्त किया एवं यह पांडवों का मित्र बना। सुषमा से प्रभावित हो कर यह कामातुर हुआ। माद्री यह द्रोपदास्वयवर म (म. आ. १७७.१८१६*) अकेली इसके पीछे पीछे आ रही थी। झीने वस्त्रों से | तथा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में (म. स. ४८.४७७*) सुसज्जित माद्री के यौवनाकर्षण पर मुग्ध हो कर उसके | उपस्थित था। न कहने पर भी हठात् इसने उसके साथ समागम किया। भारतीय युद्ध में, यह पांडवों के पक्ष में शामिल था किंदम ऋषि द्वारा दिये गये शाप के अनुसार, माद्री से (म. उ. १९.९) । इसके रथ पर सागर के चिह्न से संभोग करते ही इसकी मृत्यु हो गयी।
युक्त ध्वजा फहराती थी एवं इसके रथ, के अश्व चन्द्रइसके परलोकवासी होने पर, माद्री इसके शव के | किरण के समान श्वेत थे। इसके अश्वों के उपर 'वैदूर्यसाथ सती हो गयी। पांडवों ने इसका एवं माद्री की मणियों' की जाली बिछायी थी। (म. द्रो. २४.१८३७) अंत्येष्टि क्रिया कश्यप ऋषि के द्वारा सम्पन्न करायी | अंत में अश्वत्थामा ने इसका वध किया (म. क. १५. (म. आ. ११६; ११८)।
३-४३)। २. धाता का पुत्र (वायु. १.२८)
____ महाभारत में इसके लिये निम्नलिखित नामांतर प्राप्त ३. ( सो. कुरु.) एक कुरुवंशीय राजा । यह जनमे- | जय पारिक्षित (प्रथम) का पुत्र था। इसे धृतराष्टादि (१) चित्रवाहन--यह मणलूर का नृप, एवं अर्जुन सात भाई थे (म. आ. ९९.४९)।
की पत्नी चित्रांगदा का पिता था (म. आ. २०७.१३४. अंगिराकुल में उत्पन्न एक गोत्रकार ।
१४)। पांडुर--स्कन्द का एक सैनिक ।
(२) मलयध्वज पांड्य-सहदेव ने अपने दक्षिण'
| दिग्विज्य में इसे जीता था (म. स. परि. १.१५. पांडुरोचि--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
पांड्य--(सो. तुर्वसु.) दक्षिण भारत का एक राजवंश (३). प्रवीर पांडय-यह पांड्य देश का राजा था एवं लोकसमूह । इस वंश के राजा तुर्वसुवंश के जनापीड़
। (म.क. १५.१-२)। राजा के वंशज कहलाते थे।
४. विदर्भ देश का राजा । यह महान् शिवभक्त था। तुर्वसुवंश का मरुत्त राजा पुत्रहीन था । उसने पूरु- एक दिन प्रदोष के समय यह शिवपूजा कर रहा था। वंशीय दुष्यंत राजा को गोद लिया, एवं इस तरह नगर के बाहर कुछ आवाज सुनाई देने पर, शिवपूजा तुर्वसुवंश का स्वतंत्र अस्तित्त्व नष्ट करके, उसे पूरुवंश में वैसी ही अधूरी छोड़कर यह बाहर आया । पश्चात् इसके शामिल कर लिया गया। किंतु पद्म के अनुसार, तुर्वसुवंश राज्य पर हमला करने के लिये आये शत्रु के प्रधान का में आगे चल कर, दुष्कृत, शरूथ, जनापीड़ ये राजा इसने वध किया। उत्पन्न हुये । उनमे से जनापीड राजा को पांडथ, केरल, शत्रुवध का कार्य समाप्त कर यह घर वापस आया एवं चोल्य एवं कुल्य नामक चार पुत्र थे । इन चारों पुत्रों ने | शिव की पूजा वैसी ही अधूरी छोड़कर इसने अन्नग्रहण (दक्षिण भारत में क्रमशः पांडथ, केरल, चोल एवं कुल्य किया। इस पाप के कारण, अगले जनम में इसे सत्यरथ कोल) राज्यों की स्थापना की (वायु. ९९.६)। | नामक राजा का जन्म प्राप्त हुआ एवं शत्रु के हाथों इसकी
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