Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पितरः
(७) नर्मदा इसका विवाह अयोध्या के राजा पुरूकुल्स से हो कर उससे इसे सदस्य नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। कई उत्तरकालीन, ग्रंथों में, नर्मदा को 'नदी' कहा गया है, एवं उसका सुविख्यात नर्मदा नदी से एकात्म स्थापित किया गया है ( मत्स्य. १५. २८ ) ।
इनके सिवा निम्नलिखित पितृकन्याओं का निर्देश पुराणों में प्राप्त है। :
प्राचीन चरित्रकोश
१. कृषी (कीर्तिमती) अणु है. पानी (ह.नं. १२२. ६) २. एक २. एकाव्य, ४. अपर्णा (उमा)। 'पितृकन्या' कथा का अन्ययार्थ - पाटिर के अनुसार, पितृकन्याओं के बारे में पुराणों में दी गयी सारी जानकारी, इतिहास एवं काल्पनिक रम्यता के संमिश्रण से बनी है। पुराणों में निर्दिष्ट पितृकन्याओं में, विरमा ( वायु. ९३. १२ ), यशोदा ( वायु ८८. १८१यशो ( बाबु ८८. १८१ १८२), कृत्पी, (कीर्तिमती) ये तीन प्रमुख है। इनके पतियों के नाम क्रमशः नहुष विश्वमहत् एवं अनुह हैं। ये तीनों कन्याएँ एवं उनके पतियों का आपस में बहन भाई का रिश्ता था | अपने बहनों (पिता की कन्याओ ) से हुए विश्वमहत् एवं अनु ने विवाह किया। इस कारण इन कन्याओं को 'पितृकन्या' (पिता की कन्या) नाम प्राप्त हुये पिया के इस ऐतिहासिक अर्थ को त्याग कर, 'पितरों की कन्या' यह नया अर्थ पुराणों ने प्रदान किया है। भाई एवं बहन का विवाह निषिद्ध मानने के कारण, यह अर्थान्तर पुराणों द्वारा स्थापित किया गया होगा ।
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पुरुकुत्स ( नर्मदा ), शुक्र (गो), शुक (पीवरी ) इन राजाओं ने भी शायद अपने बहनों के साथ शादी की होगी । पितृकन्याओं में से मेना काल्पनिक प्रतीत होती है मेना की कन्याओं में से एकताला, एकपणा, । एवं अपनी ये तीनों नाम वस्तुतः उमा ( देवी पार्वती) केही पर्यायवाची शब्द हैं ( पार्गि ६९-७०)।
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पितृवंश -- ब्रह्मांड पुराण में, अग्निष्वात्त एवं बर्हिषद इन दो पितरों के (ब्रह्मांड. २. १३. २९-४३ ) वंश | की विस्तृत जानकारी दी गयी है। पुराणों के अनुसार, 'मैथुनज' मानवी संतति का निर्माण बाप दक्ष से हुआ था। स्वायंभुव दक्ष के पूर्वकालीन मानव वंश की जानकारी अग्निध्यात एवं बर्हिपद स्तिरों के वंशावलि में प्राप्त है, जिस कारण, 'ब्रह्मांडपुराण' में प्राप्त पितृवंश की जानकारी नितांत महत्त्वपूर्ण प्रतीत होती है।
पितामह
ब्रह्मांड के पुराण के अनुसार, अभि एवं पर इन दो पितरों को स्वधा से क्रमशः 'मेना' एवं 'धारणा' नामक दो कन्याएँ उत्पन्न हुयीं। इनमें से मेना का विवाह हिमवत् से हो कर उसे मैनाक नामक पुत्र हुआ धारणी का विवाह मेरु से हो कर उससे उसे मंदर नामक पुत्र एवं वेला, नियति, तथा आयति नामक तीन कन्याएँ उत्पन्न हुयीं।
इनमें से वेला का विवाह समुद्र से हुआ, एवं उससे उसे सवर्णा नामक कन्या उत्पन्न हुयी। सवर्ण का विवाह प्राचीनवर्हि से हो कर, उससे उसे प्रचेतस् नामक द पुत्र हुये । प्रचेतस् को स्वायंभुव दक्ष नामक पुत्र था, जिसके पुत्र का नाम चाक्षुष दक्ष था उसी स्वायंभुव एवं चाक्षुप दक्ष से आगे चलकर 'मैथुनव' अर्थात् मानवी सृष्टि का निर्माण हुआ।
पितामह - एक स्मृतिकार | एक प्राचीन धर्मशास्त्रकार के नाते से इसका निर्देश वृद्धवाक्यस्मृति' में किया गया है ।
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इसके शौच विषयक अभिमतों का निर्देश विश्वरूप ने किया है (या
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१.१७)। मिताक्षरा '
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अपरार्क में, पितामह के व्यवहारशास्त्र, आहिक संबंधी मतों का उद्धरण प्राप्त है 'स्मृतिचंद्रिका'
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भी, इसके व्यवहार एवं श्राद्धविषयक दस लोकों का उद्धरण लिया गया है।
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( पितामहस्मृति में विशेषतः व्यवहारशास्त्र ? का विचार किया गया है। पितामह के अनुसार, वेद, वेदांग, मीमांसा, स्मृति, पुराण, एवं न्याय ये सारे ग्रंथ मिला कर 'धर्मशास्त्र' का रूप निर्धारित करते हैं (पिता. पृ. ६०१ ) । इसकी स्मृति में, ' क्रयपत्र, "" स्थितिपत्र समाधिपत्र विशुद्ध आदि दस्तखतों की विशुद्धिपत्र ' व्याख्या प्राप्त है । राजा के न्यायसभा में आवश्यक सेवकों एवं वस्तुओं की नामावलि पितामह ने दी है, जो इस प्रकार है: - लेखक, गणक, शास्त्रपाल, साध्यवाल, सभासद, हिरण्य, अग्नि, एवं उदक |
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किन्हीं दो व्यक्तियों में विवाद होने पर, सर्वप्रथम ग्रामपंचायत के सामने उसका निर्णय होना चाहिये, ऐसा पितामह का मत है। उसके बाद, 'नगरसभा ' एवं अन्त में राजा के सामने इस क्रम से विवाद का निर्णय होना आवश्यक है, एसा इसने लिखा है ।
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बृहस्पतिस्मृति का निर्देश कारण, पितामह का का
पितामह की स्मृति में प्राप्त है । इस निर्देश के
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