Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पितरः
प्राचीन चरित्रकोश
पितरः
के सभा में रहकर, उनकी उपासना करते थे (म. स. इस जानकारी के अनुसार, सात मुख्य पितरों ने अपने १३३४) इनकी मानसकन्या मेना थी । दैत्य, यक्ष, राक्षस, अपने मन से एक एक कन्या ('मानसी कन्या') उत्पन्न किन्नर, गंधर्व, अप्सरा, भूत, पिशाच, सर्प, एवं नाग | की। उन कन्याओं के नाम इस प्रकार थे:-मेना, इनकी उपासना करते थे।
अच्छोदा ( सत्यवती), पीवरी, गो, यशोदा, विरजा, (२) अग्निष्वात्त-यह पितृगण वैभ्राज (विरजस् )। नर्मदा। इस कन्याओं की विस्तृत जानकारी पुराणों में नामक स्थान में रहता था। दैत्य, यक्ष, राक्षसादि इसकी | उपासना करते थे।
(१) मेना-इसका विवाह हिमवंत पर्वत से हुआ ' (३) बर्हिषद--यह पितृगण दक्षिण दिशा में सोमप| था। इसको मैनाक नामक एक पुत्र, एवं अपर्णा, एकपर्णा, (सोमपदा) नामक स्थान में रहता था। इनकी मानस- |
एवं एकपाताला नामक तीन कन्याएँ उत्पन्न हुयी थीं। कन्या पीवरी थी।
मेना की तीन कन्याओं में से, अपर्णा 'देवी उमा' बन महाभारत में तृतीय दैवी पितर का नाम एकशंग दे कर, |
गयीं। एकपर्णा ने असित ऋषि से विवाह किया, जिससे बर्हिषद को मानुष पितर कहा गया है (म. स. ११.३०; |
उसे देवल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। एकपाताला का
विवाह शतशिलाक के पुत्र जैगीषव्य ऋषि से हुआ, १३३*) .
जिससे उसे शंख एवं लिखित नामक दो पुत्र हुए। मूर्त अथवा मानुष पितर-इन्हें 'मूर्त, ''संतानक.' (२) अच्छोदा-सविख्यात अच्छोदा नदी यही है। (सांतनिक ), सूक्ष्ममूर्ति ऐसे नामांतर भी प्राप्त थे। इन इसने पितरों की आज्ञा अमान्य कर, चेदि देश का राजा पितृगणों में, निम्नलिखित पितृगणों का समावेश होता वसु एवं अद्रिका' नामक अप्सरा के कन्या के रूप में
पुनः जन्म लिया, एवं यह नीच जाति की कन्या १. हविष्मत् (काव्य)--यह पितृगण मरीचिगर्भ प्रदेश ('दासेयी' ) बन गयी इसे काली एवं सत्यवती नामांतर में रहता था। इनकी मानस कन्या गो थी। ब्राह्मण इनकी | भी प्राप्त थे। उपासना करते थे।
इसे पराशर ऋषि से व्यास नामक एक पुत्र, एवं .२. सुस्वाधा (उपहूत) यह पितृगण कामग (कामधुक्) शंतनु राजा से विचित्रवीर्य, एवं चित्रांगद नामक दो पुत्र प्रदेश में रहता था। इनकी मानसकन्या यशोदा थी। | हुये। क्षत्रिय इनकी उपासना करते थे।
(३) पीवरी-इसका विवाह व्यास ऋषि के पुत्र ३. आज्यप--यह पितृगण पश्चिम दिशा में मानस | शुक्राचार्य से हुआ था। उससे इसे कृष्ण, गौर, प्रभु, (सुमनस् ) प्रदेश में रहता था। इनकी उपासना वैश्य | शंभु एवं भूरिश्रुत ऐसे पाँच पुत्र, एवं कीर्तिमती (कृत्वी) करते. थे।
नामक एक कन्या उत्पन्न हुयी (ब्रह्मांड. ३.१०.८०-८१)। . ४. सोमप--यह पितृगण उत्तर दिशा के सनातन (स्वर्ग) पीवरी की कन्या कीर्तिमती का विवाह अनुह राजा प्रदेश में रहता था। इनकी मानसकन्या नर्मदा थी। शूद्र इन से हो कर, उससे कीर्तिमती को ब्रह्मदत्त नामक पुत्र उत्पन्न की उपासना करते थे। महाभारत में, 'मानुषि पितर' हुआ। नाम से सोमप, बर्हिषद, गार्हपत्य, चतुर्वेद, तथा इन, चार (४) गो-इसे 'एकशंगा' नामांतर भी प्राप्त था। पितृगणो का निर्देश किया गया है। वहाँ हविष्मत . सस्वधा. | इसका विवाह शुक्राचार्य से हो कर, उससे इसे सुविख्यात आज्यप इन पितृगणों का निर्देश अप्राप्य है। । 'भृगु वंश की स्थापना करनेवाले पुत्र उत्पन्न हुये।
पितकन्या-पराणों में अनेक जगह पितरों के वंश (५) यशोदा-इसका विवाह अयोध्या के राजा (पितृवंश ) की विस्तृत जानकारी दी गयी है (वायु. ७२.
वृद्धशर्मन् (विश्वशर्मन् ) के पुत्र विश्वमहत् (विश्वसह) १-१९; ७३. ७७.३२.७४-७६; ब्रह्मांड. ३.१०.१-२१: | राजा से हुआ , जिससे इसे दिलीप द्वितीय (खटांग) ५२-९८, ३.१३.३२, ७६-७९; ह. वं. १.१८; ब्रह्म. | नामक पुत्र हुआ। ३४.४१-४२, ८१.९३,मत्य. १३.२-९, १४.१- (६) विरजा-इसका विवाह सुविख्यात सोमवंशीय १५ पन. सृ. ९.२-५६; लिंग. १.६.५-९; ७०.३३१; | राजा नहुष से हो कर, उससे इसे ययाति नामक पुत्र ८२.१४-१५, २.४५.८८)
उत्पन्न हुआ। ४२१