Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पराशर
प्राचीन चरित्रकोश
पराशर
कहते है । इसने युधिष्ठर को 'रुद्रमाहात्म्य' कथन किया | उस समय धर्माधर्म की विशेष चिन्ता करने की जरूरत था (म. अनु. ४९)। इसने अपने शिष्यों को विविध | नहीं, ऐसा पराशर का कहना है (परा. ७)। पुत्रों के ज्ञानपूर्ण उपदेश दिये थे (म. अनु. ९६.२१)। पराशर | प्रकार बताते समय, 'औरस' पुत्रों के साथ, 'दत्तक, द्वारा किये गये 'सावित्रीमंत्र' का वर्णन भी महाभारत में | क्षेत्रज' एवं 'कृत्रिम' इन पुत्रों का निर्देश पराशर ने प्राप्त है (म. अनु. १५०)।।
किया है (रा. ४.१४)। पति के मृत्यु के बाद, पत्नी का परिक्षित राजा के प्रायोपवेशन के समय, पराशर | सती हो जाना आवश्यक है, ऐसा पराशर का कहना है गंगानदी के किनारे गया था (भा. १.१९.९)। शरशय्या (परा. ४) । क्षत्रिकों के आचार, कर्तव्य एवं प्रायश्चित के पर पड़े हुए भीष्म को देखने के लिये यह कुरुक्षेत्र गया | बारे में भी, पराशर ने महत्त्वपूर्ण विचार प्रगट किये हैं
था (म. शां. ४७.६६)। इंद्रसभा में उपस्थित ऋषियों | (परा. १.६-८)। में भी, पराशर एक था (म. स. ७.९.)।
'पराशरस्मृति' में आचार्य मनु के मतों के उद्धरण वेदव्यास-ब्रह्मा से ले, कर कृष्णद्वैपायन व्यास तक | अनेक बार लिये गये है ( परा. १.४, ८)। सभी शास्त्रों उत्पन्न हुए ३२ वेदव्यासों में से पराशर एक प्रमुख | के जाननेवाले एक आचार्य के रूप में इसने मनु का निर्देश वेदव्यास था। ओ ऋषिमुनि वैदिक संहिता का विभाजन किया है। मनु के साथ उशनस् (१२.४९), प्रजापति या पुराणों को संक्षिप्त कर ले, उसे 'वेदव्यास' कहते थे। (४.३; १३), तथा शंख (४.१५) आदि धर्मशास्त्रउन वेदव्यासों में ब्रह्मा, वसिष्ठ, शक्ति, पराशर एवं कृष्ण- | कारों का भी, इसने निर्देश किया है । वेद वेदांग, एवं द्वैपायन व्यास प्रमुख माने जाते है।
धर्मशास्त्र के अन्य ग्रंथो का निर्देश एवं उद्धरण 'पराधर्मशास्त्रकार--पराशर अठारह स्मृतिकारों में से एक | शरस्मृति' में प्राप्त है । अपने स्मृति के बारहवें अध्याय प्रमुख था। इसकी 'पराशरस्मृति' एवं उसके उपर में इसने कुछ वैदिक मंत्र दिये हैं। उनमें से कई ऋग्वेद आधारित 'बृहत्पराशर संहिला' धर्मशास्त्र के प्रमुख ग्रंथों | में एवं कई शुक्लयजुर्वेद में प्राप्त हैं । में गिने जाते हैं। पराशर के नाम पर निम्नलिखित
| पराशर के राजधर्मविषयक मतों का उद्धरण कौटिल्य ने धर्मशास्त्रविषयक ग्रंथ उपलब्ध है :
अपने 'अर्थशास्त्र' में अनेक बार कहा है । 'मिताक्षरा' (1) पराशरस्मृति--यह स्मृति जीवानंद संग्रह | 'अपरार्क', 'स्मृतिचंद्रिका', 'हेमाद्रि' आदि अनेक . (२.१-५२), एवं बॉम्बे संस्कृत सिरीज़ में उपलब्ध है।
ग्रंथों में पराशर के उद्धरण लिये गये हैं । विश्वरूप ने भी डॉ. काणे के अनुसार, इस स्मृति का रचनाकाल १ली शती
| इसका कई बार निर्देश किया है (याज्ञ. ३.१६; २५७ )। एवं ५ वी शती के बीच का होगा | याज्ञवल्क्यस्मृति
इससे स्पष्ट है की ९ वें शती के पूर्वार्ध में 'पराशर. एवं गरुड़ पुराण में इस स्मृति के काफी उद्धरण
स्मृति' एक 'प्रमाण ग्रंथ ' माना जाता था। एवं सारांश दिये गये हैं (याज्ञ. १. ४; गरुड़. १. |
(२) बृहत्पराशरसंहिता-यह स्मृति जीवानंद १०७)। ___ इस स्मृति में कुल बारह अध्याय, एवं ५९२ श्लोक
संग्रह में (२.५३-३०९) उपलब्ध है। 'पराशरस्मृति'
के पुनर्सस्करण एवं परिवृद्धिकरण कर के इस ग्रंथ की है। इस स्मृति की रचना कलियुग में धर्म के रक्षण
रचना की गयी है। इस ग्रंथ में बारह अध्याय एवं ३३०० करने के हेतु से की गयी है । कृतयुग के लिये 'मनुस्मृति', त्रेतायुग के लिये 'गौतमस्मृति', द्वापारयुग के
श्लोक हैं । पराशर परंपरा के सुव्रत नामक आचार्य ने इस लिये 'शंखलिखितस्मृति', वैसे ही कलियुग के लिये |
ग्रंथ की रचना की है । यह ग्रंथ काफ़ी उत्तरकालीन है। 'पराशरस्मृति' की रचना की गयी (परा, १.२४)। (३) वृद्धपराशर स्मृति–पराशर के इस स्वतंत्र मनुस्मृति गौतम स्मृति की अपेक्षा, पराशरस्मृति अधिक | स्मृतिग्रंथ का निर्देश अपरार्क ( याज्ञ. २.३१८), एवं 'प्रगतिशील' प्रतीत होती है। उसमें ब्राह्मण व्यक्ति | माधव (पराशर माधवीय. १.१.३२३०) ने किया है। को शूद्र के घर भोजन करने की एवं विवाहित स्त्रियों को | (४) ज्योति पराशर-इस स्मृतिग्रंथ का निर्देश पुनर्विवाह करने की अनुमति दी गयी है। परचक्र, | हेमाद्रि ने अपने 'चतुर्वर्गचिंतामणी (३.२.४८) में प्रवास, व्याधि एवं अन्य संकटों के समय, व्यक्ति ने | एवं भट्टोजी दिक्षित ने अपने 'चर्तुविशांतिमत' में किया सर्वप्रथम अपने शरीर का रक्षण करना आवश्यक है, | है।
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