Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पलित
प्राचीन चरित्रकोश
पांचाल
११)।
पलित--बिडालोपख्यान में वर्णित एक चूहे का पशु--सविता नामक पाँचवें आदित्य के पृश्नि नामक नाम (म. शां. १३६.२१)। इसका लोमश नामक | स्त्री से उत्पन्न आठ संतानों में से एक (भा. ६.१८.१)। बिलाब के साथ संवाद हुआ था (म. शां. १३६.३४- पशुदा--स्कन्द की एक अनुचरी मातृका (म. श. १९८)।
४५.२७)। पलिता--रकंद की अनुचरी मातृका । पाठभेद- | पशमत-दुष्पण्य देखिये। 'पालिता" 'पाणिता' 'प्राणिता' (म. श. ४५.३)। पशुसख-सप्तर्षियों का सेवक, एक शूद्र । यह
पल्लिगप्त लौहित्य- एक ऋषि । यह श्याम जयंत | पशुओं का मित्र था, इस कारण इसे यह नाम प्राप्त हुआ लौहित्य ऋषि का शिष्य था (जै. उ. बा. ३.४२.१)। (म. अनु. १४२.४३ )। इसकी स्त्री का नाम गंडा था प्राचीन वाङ्मय में पलि शब्द प्राप्त नहीं है। (म. अनु. १४१.५)। वसिष्ठ ऋषि के कमल की चोरी पवन--उत्तममनु के पुत्रों में से एक।
के समय, इसे भी शपथ खानी पड़ी थी (म. अनु. पवमान--अग्नि के स्वाहा से उत्पन्न तीन पुत्रों में | १४३.४०)। से एक। इसका पुत्र हव्यवाह । यह अरणी से उत्पन्न | पशुहन--वृषा का पुत्र । गार्हपत्य अग्नि का अंश था तथा गृहस्थों को पूज्य था | पष्टवाह--एक वैदिक सामदृष्टा (पं. बा. १२.५. (मत्स्य. ५१.३)।
२. (स्वा. उत्तान.) विजिताश्व राजा के तीन पुत्रों में | पह्वव--हरिश्चंद्र के कुल से गर राजा का राज्य छीनसे दूसरा पुत्र । यह पूर्वजन्म में अग्नि था। वसिष्ठ के | लेनेवाले राजाओं में से एक । इसे गर के पुत्र सगर ने शाप के कारण इसे मनुष्यजन्म प्राप्त हुआ था (भा. | जीत कर, दाढ़ी रखने की शर्त पर छोड़ दिया (पद्म. ४.२४.४)।
३.२०)। ३. ( स्वा. प्रिय.) मेधातिथि के सात पुत्रों में से | २. एक म्लेंछ जाति, जो 'नंदिनी' नामक गौ की पूँछ तीसरा पुत्र । इसका खंड इसी के नाम से प्रसिद्ध है | से उत्पन्न हुई थी (म. आ. १६५.३५)। नकुल ने (भा. ५.२०.२५)।
इस जाति के लोगों को जीता था (म. स. २९.१५)।. पवित्र--एक ब्राह्मण । इसकी स्त्री बहुला । अनपत्य- | ये लोग युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ में उपहार लाये थे (म. पति ब्राह्मण इसका मित्र था। इन दोनों के पूछने पर, | स. ४८.१४)। ये मान्धाता के राज्य में निवास करते थे लोमश ने इन्हें अतिथिधर्म बताया था।
(म. शां. ६५.१३-१४)। ' एक बार पवित्र ने तीक्ष्ण तथा नुकीले हथियार से एक | पाक-इंद्र के द्वारा मारा गया एक असुर । इसीके चूहे को मारा। उस चूहेको मरते हुए देख कर इसने उस | कारण इंद्र का नाम 'पाकशासन' हुआ (भा. ७.२.४; ८. पर तुलसी के पत्ते रखे, तथा नारायण का नामोच्चार | ११. २२; म. शां. ९९.४८)। करने लगा। तब उस चूहे का उद्धार हुआ (पद्म. क्रि. | पाकस्थामन् कौरयाण--एक ऋषि । मेधातिथि २५)।
काण्व ने इसके उदारतापूर्ण दान का गौरव गान किया था २. भौत्यमन्वन्तर का देवगण ।
(ऋ. ८.३.२१-२४)। ३. इंद्रसावर्णि मन्वन्तर का देव ।
पाचि--(सो. पुरु.) एक राजा । मस्त्य के अनुसार, पवित्र आंगिरस--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९. | यह नहुष राजा के सात पुत्रों में से एक था ( मल्य. ६७.२२ ३२,७३, ८३)।
२४.५०)। पवित्रपाणि-एक ब्रह्मर्षि (म. स. ४.१३; ७.८२)। पांचजनी--दक्षपत्नी असिनी का नामांतर (असिनी यह युधिष्ठिर की सभा एवं इंद्रसभा का सदस्य था (म. | देखिये)। स. ४.१५, ७.८२%)।
पांचजन्य--पाँच ऋषियों के अंश से उत्पन्न एक पवीरु-एक राजा श्रुष्टिगु ने उल्लेख किया है कि | अग्नि । इसे 'तपस्' नामांतर भी प्राप्त था (म. व. इंद्र की कृपा से इसे संपत्ति प्राप्त हुई (ऋ. ८.५१.९)।। २१०.५)। 'आयुधवान् ' इस अर्थ का इसे विशेषण भी माना है। पांचाल--प्राचीन उत्तर भारत का एक लोकसमूह । (वा. सं. ३३. ८२)।
| इन्हीं लोगों का निर्देश वेदों में 'क्रिवि' नाम से, एवं ४०४