Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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परशुराम
प्राचीन चरित्रकोश
परशुराम
जमदग्नि को धूंसे लगा कर, एवं उसका आश्रम जला कर | कार्तवीर्य के सहस्र बाहु काट दिये, एवं एक सामान्य श्वापद कार्तवीर्य कामधेनु के साथ अपने राज्य में वापस चला | जसा उसका वध किया (म. शां. ४९.४१)। कानवीर्य गया।
के शूर, वृषास्य, वृष, शूरसेन तथा जयध्वज नामक पुत्रों ने तपश्चर्या से लौटते ही, परशुराम को कार्तवीर्य की |
पलायन किया। उन्होंने हिमालय की तराई में स्थित दुष्टता ज्ञात हुई, एवं इसने तुरंत कार्तवीर्य के वध की प्रतिज्ञा | अरण्य में आश्रय लिया । परशुराम ने युद्ध समाप्त किया। की। कई पुराणों के अनुसार, कार्तवीर्यवध की इस प्रतिज्ञा पश्चात् यह नर्मदा में स्नान कर के शिवजी के पास से इसको परावृत्त करने का प्रयत्न जमदग्नि ऋषि ने किया। गया। वहाँ गणेशजी ने इसे कहा 'शिवजी के पास जाने उसने कहा-'ब्राह्मणों के लिये यह कार्य अत्याधिक अशो- | का यह समय नहीं हैं। फिर क्रुद्ध हो कर अपने फरसे से भनीय है। परंतु परशुराम ने कहा 'दुष्टों का दमन न | इसने गणेशजी का दाँत तोड़ दिया (ब्रह्मांड. ३.४२)। करने से परिणाम बुरा हो सकता है। फिर जमदग्नि ने पश्चात् जगदाग्नि के आश्रम में आ कर, इसने उसे इस कृत्य के लिये ब्रह्मा की, तथा ब्रह्मा ने शंकर की | कार्तवीर्यवध का सारा वृत्तांत सुनाया। संमति लेने के लिये कहा । संमति प्राप्त कर यह सरस्वती क्षत्रियहत्या के दोषहरण के लिये, जमदग्नि ने परशुके किनारे अगस्त्य ऋषि के पास आया, तथा उसकी राम को बारह वर्षों तक तप कर के, प्रायश्चित्त करने के आज्ञा से गंगा के उद्गम के पास जा कर, इसने तपश्चर्या | लिये कहा । फिर परशुराम प्रायश्चित करने के लिये महेंद्र . की । इस तरह देवों का आशीर्वाद प्राप्त कर, परशुराम | पर्वत चला गया। मत्स्य के अनुसार, यह कैलास पर्वते . . नर्मदा के किनारे आया । वहाँ से कार्तवीर्य के पास दूत पर गणेशजी की आराधना करने गया (मत्स्य. ३६)। भेज कर, इसने उसे युद्ध का आह्वान किया। जिघर जिधर यह जाता था, वहाँ क्षत्रिय डर के मारे छिए ।
हैहय एवं भार्गवों के शत्रुत्व का इतिहास जान लेने पर, | जाते थे, तथा अन्य सारे लोग इसकी जयजयकार करते. जमदग्नि ने परशुराम को कार्तवीर्यवध से परावृत्त करने की | थे (ब्रह्मांड. ३.४४)। कोशिश की थी, यह कथा अविश्वसनीय लगती है। जमदग्निवध-परशुराम तपश्चर्या में निमग्न ही था
युद्ध-परशुराम की प्रतिज्ञा सुन कर, कार्तवीर्य ने भी कि, इधर कार्तवीर्य के पुत्रों ने तपस्या के लिये समाधि युद्ध का आह्वान स्वीकार किया, एवं सेनापति को सेना लगाये हुवे जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया, तथा वे सजाने के लिये कहा। अनेक अक्षौहिणी सेनाओं के उसका सिर ले कर भाग गये। ब्रह्मांड के अनुसार, जमदग्नि सहित कार्तवीर्य युद्धभूमि पर आया । उसका का वध कार्तवीर्य के अमात्य चंद्रगुप्त ने किया (ब्रह्मांड. परशुराम ने नर्मदा के उत्तर किनारे पर मुकाबला ३.२९.१४)। किया । युद्ध के शुरु में कार्तवीर्य की ओर से बारह वर्षों के बाद, परशुराम जब तपश्चर्या से वापस मत्स्य राजा ने परशुराम पर जोरदार आक्रमण किया। आ रहा था, तब मार्ग में ही इसे जमदग्नि के वध की बड़ी सुलभता के साथ परशुराम ने उसका वध किया। घटना सुनायी गयी। जमदग्नि के आश्रम में आते ही, बृहद्बल, सोमदत्त एवं विदर्भ, मिथिला, निषध, तथा मगध | रेणुका ने इक्कीस बार छाती पीट कर जमदग्निवध को कथा देश के राजाओं का भी परशुराम ने वध किया। सात फिर दोहरायी। फिर क्रोधातुर हो कर, परशुराम ने अक्षौहिणी सैन्य तथा एक लाख क्षत्रियों के साथ आये केवल हैहयों का ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर से सारे क्षत्रियों हुये सुर्यवंशज सुचन्द्र को परशुराम ने भद्रकाली की कृपा के वध करने की, एवं पृथ्वी को निःक्षत्रिय बनाने की से परास्त दिया । सुचन्द्र के पुत्र पुष्कराक्ष को भी सिर से दृढ़ प्रतिज्ञा की। पैर तक काट कर, इसने मार डाला ।
मातृतीर्थ की स्थापना–परशुराम के प्रतिज्ञा की यह ___ कार्तवीर्यवध-बाद में प्रत्यक्ष कार्तवीर्य तथा उसके कथा 'रेणुकामहात्म्य' में कुछ अलग ढंग से दी गयी है। सौ पुत्रों के साथ परशुराम का युद्ध हुआ। शुरु में कार्तवीर्य जब जमदग्नि से मिलने उसके आश्रय में गया, कार्तवीर्य ने परशुराम को बेहोश कर दिया। किन्तु अन्त तब कामधेनु की प्राप्ति के लिये उसने जमदग्नि का वध में परशुराम ने कार्तवीर्य एवं उसके पुत्रों का सौ अक्षौहिणी किया । फिर अपने पिता का औचंदैहिक करने के लिये, सेनासहित नाश कर दिया (ब्रांड. ३.३९.११९; म. द्रो. परशुराम एक डोली में जमदग्नि का शव, एवं रेणुका को परि. १ क्र.८)। महाभारत के अनुसार, परशुराम ने बैठा कर, 'कान्याकुब्जाश्रम' से बाहर निकला । अनेक
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