Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पयस्य
पयस्य ' वारुण' - एक महर्षि । अंगिरस् के वारुण संशक आठ पुत्रों में से एक (म. अनु. ८५,२०) | पयोदः - विश्वामित्र कुलोत्पन्न गोत्रकार ऋषिगण । पयोदा – स्कंद की अनुचरी मातृका ( म. श. ४४.
५२) ।
पर विश्वामित्र का पुत्र ।
प्राचीन चरित्रकोश
२. (सो. पूरु. ) वायु के अनुसार समर राजा का पुत्र ।
पर आदणार (सो. आयु ) एक वैदिक महाराजा यह 'अणार' का वंशज था, इसलिये इसे ' पर आदार नाम प्राप्त हुआ था। कई ग्रंथों में इसे 'हिरण्यनाभ कौसल्य' कहा गया है (सां. ओ. १३ . श. मा. १३.५.४.४; हिरण्यनाभ कौसल्य देखिये) । संभवतः यह कोसल देश के हिरण्यनाम राजा का वंशज था ।
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एक विशेष यश करने के बाद इसे पुत्र की प्राप्ति हुयी थी . . ५.६.५.२.२२.३ पं. बा. २५ १६.३; जै. उ. ब्रा. २.६.११ ) । सांख्यायन श्रौतसूत्र में इसे ' पर आहार वैदेह' कहा गया हैं, जिससे कोसल एवं विदेह देश के घनिष्ट संबंध प्रतीत होते है ( सो श्री. १३.९.११) ।
परंजय - (सू. इ. ) विष्णु मत में विकुक्षित पुत्र का नामांतर है। भागवत मत में पुरंजय इसका नामांतर है ।
परण्यस्त - अंगिराकुल के गोत्रकार ऋषिगण । परंप- सामस मनु के दस पुत्रों में से एक। परपक्ष -- (सो. अनु. ) एक राजा । वायु के अनुसार यह अनु का पुत्र था। इस के परमेक्ष, परमेषु परोक्षप तथा पराक्ष नामांतर थे।
परम - वसिष्ठ कुल का गोत्रकार ।
परमक्रोधिन्– एक विश्वेदेव (म. अनु. २१.३२ ) परमेक्ष - (सो. अनु. ) विष्णु के अनुसार अनुपुत्र परपक्ष राजा का नामांतर ( परपक्ष देखिये )
परमेषु – (सो. अनु. ) मस्त्य के अनुसार अनुपुत्र परपक्ष राजा का नामांतर ( परपक्ष देखिये) ।
परमेष्ठिन – एक वैदिक सूक्तद्रष्टा ( प्रजापति देखिये )। यह ब्रह्मा का शिष्य था । इसका शिष्य सनग (बृ. उ. २. ६.२; ४.६.३ ) । ‘जैमिनि ब्राह्मण के अनुसार यह प्रजापति का शिष्य था (जै. उ. बा. ३.४०.२; नारद देखिये) ।
परशुराम
२. (स्वा. प्रिय. ) एक राजा । भागवत के अनुसार देवचुम्न का तथा विष्णु के अनुसार इंद्रन राजा का धेनुमती से उत्पन्न पुत्र । इसे सुवर्चला नामक स्त्री से प्रतीह नामक पुत्र हुआ ( भा. ५.१५.३ ) ।
३. (सो.) एक राजा । भविष्य के अनुसार यह आत्मपूजक राजा का पुत्र था। इसने २७०० वर्षों तक राज्य किया।
४. (सो. अज.) पांचाल देश का एक राजा । यह अजमीढ राजा को नीली से उत्पन्न हुआ था। यह एवं उसका भाई दुष्यंत के सारे पुत्रों को ‘पांचाल ' कहते थे (म. आ. ८९.२८)।
परवीराक्ष -- खर राक्षस के १२ अमात्यों में से एक । परशु उत्तम मनु का पुत्र ।
२. एक राक्षस । यह शाकल्य को खाने आया था, तब विष्णु की कृपा से मुक्त हुआ (ब्रह्म. १६२ ) । परशुचि- उत्तम मनु का पुत्र । । परशुबाहु - वियत्र पुत्र प्रसादन] राजा का नामांतर काशी क्षेत्र में धुंडीराजा ने अपने हाथ का परशु इसे दिया तथा यह नाम रखा (गणेश. २.४९५६ देखिये) ।
परशुराम जामदम्य महर्षि जमदनिका महान पराक्रमी पुत्र, जिसने इक्कीस बार क्षत्रियों का संहार किया था ।
भृगुवंश में पैदा होने के कारण, जमदग्नि एवं परशुराम 'भार्गव' पैतृक नाम से ख्यातनाम थे । भार्गव वंश के ब्राह्मण पश्चिम भारत पर राज्य करने वाले हैहय राजाओं के कुलगुरु थे । भार्गववंश के ब्राह्मण आनर्त (गुजरात) देश के रहनेवाले थे । पश्चात् हैहय राजाओं से भार्गवों का झगड़ा हो गया एवं वे उत्तरभारत के कान्यकुब्ज देश में रहने गये । फिर भी, बारह पीढ़ियों तक हैहय एवं भार्गव का वैर चलता रहा। इसीलिये प्राचीन इतिहास में २५५० ई. पू. २३५० ई.पू. तक वह काल 'भार्गव - हैहय' नाम से पहचाना जाता है । हैहय एवं भार्गवों के पैर की चरम सीमा पराराम अमय के काल में पहुँच गयी, एवं परशुराम ने हैहयों का और संबंधित क्षत्रियों का इक्कीस बार संहार किया । इसी कारण ब्राह्मतेज की मूर्तिमंत एवं ज्वलंत प्रतिमा बन कर परशुराम इस विशिष्ट काल के इतिहास में अमर हो गया है ।