Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
पक्षगंत
२. एक राक्षस । यह पृथ्वी के प्राचीन शासकों में से २. भरिष्य एक राजवंश । नल नैषध राजा के वंश में एक था (म. शा. २२०.५१-५३)।
उत्पन्न नौ राजा इस वंश में शामिल थे। उन्हें 'मेघ' नामांतर ३. एक 'रात्रीराक्षस' गण। उस गण के अन्य राक्षस भी प्राप्त था। वे कोमला नामक नगरी में रहते थे । समूह-पौलस्य, आगस्त्य, कौशिक (पार्गि. २४२)। नैषिध-दक्षिण देश के नड़ राजा का पैतृक नाम
नैमिशि-शितिबाहु ऐष नामक वैदिक ऋषि की एवं उपाधि ( श. बा. २. ३. २.१-२)। इस नाम का उपाधि (जै. ब्रा. १.३६३)। शितिबाहु 'नैमिश' वन का बाद का रूप 'नैषध' है। रहनेवाला होने से, उसे यह उपाधि मिली होगी।
. नोधस-एक वैदिक कवि एवं सूक्तद्रष्टा (ऋ. १.६१.
र ति कति नैमिशीय-नैमिशवन में रहनेवाले लोगों का सामूहिक
१४, ६२. १३; एका देखिये )। यह पुरुकुत्स राजा का नाम ( पं: बा. २५. ६. ४; जै. बा. १.३६३)। ये लोग।
समकालीन था। बहुत ही पूज्य माने जाते थे (कौ: ब्रा. २६.५)।
। नोधस् गौतम--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ.५.१.५८इस कारण नैमिशारण्यवासी ऋषियों को महाभारत सुनाया गया था।
६४, ८. ८८, ९. ९३ )। यह कक्षीवत् ऋषि का वंशज नैल-एक ऋग्वेदी श्रुतर्षि । .
(पं. ब्रा. ७. १०.१०, २१. ९.१२, ऐ, ब्रा. ४. २७;
अ. वे. १५. २. ४; ४.४ ), एवं गोतम ऋषि का पुत्र था २. एक ज्ञातिसमूह (नीला १. देखिये)। नैषध--दुर्योधन पक्ष के 'पौरव' राजा का नामांतर ।
(ऋ. १.६०.५, ४. ३२. ९८.८८. ४)। यह निषध देश का राजा होने के कारण, उसे यह नाम
नौकर्णी--स्कंद की अनुचरी मातृका (म.श. ४५. प्राप्त हुआ था(पौरव देखिये)। धृष्टद्युम्न ने इसका वध
२८)। इसके नाम के लिये, सुकर्णी एवं नैककर्णी पाठभेद किया (म. द्रो. ३१.६३)। .
भी उपलब्ध हैं। २. दक्षिण देश के नड़ राजा की उपाधि (नैषिध न्यग्रोध--(सो. कुकुर ) भागवत के अनुसार मथुरा देखिये)
के उग्रसेन राजा का पुत्र, एवं कंस का भाई । धनुर्याग के नैषाद--निषाद् जाति का एक व्यक्ति (को. ब्रा. समय, कृष्ण ने कंस का वध किया । फिर अपने भाई के '२५. १५वा. सं. ३०.८)।
मृत्यु का बदला लेने के लिये, यह आगे दौड़ा । उस नैषादि-- द्रोण शिष्य एकलव्य का नामांतर (म. द्रो. समय, बलराम ने 'परिघ' फेंक कर इसका वध किया।
पक्थ--एक वैदिक ज्ञातिसमूह (ऋ. ७.१८.७)। ऋग्वेद में एक जगह, इसका नाम 'तूर्बायण' बताया है, इस जाति के लोगों ने दाशराज्ञयुद्ध में तृत्सु-भरतों का एवं इसे च्यवान ऋषिका शत्र कहा है (ऋ. १०.६१.१-२)। विरोध किया था। सिमर के मत में, आधुनिक पक्ष-देवयोनि के अंतर्गत 'गुह्यक' जाति में से
अफगानिस्तान में स्थित 'पख्तून' जाति के लोग यही एक पुरुष । यह मणिवर एवं देवजनी के तीस पुत्रों में से होगे (सिमर-अल्टिन्डिशे लेबेन पृ.४३०)। एक था (मणिवर देखिये)। २. पस्थ लोगों का एक राजा, एवं अश्विनों का आश्रित
२. (सो. अनु) एक राजा । वायु के अनुसार, अनु (ऋ. ८.२२.१०)। इसपर इंद्र की कृपा थी (ऋ.८. राजा का पुत्र चक्षु एवं यह, दोनों एक ही थे (चक्ष ४९.१०)। दाशराजयुद्ध में यह त्रसदस्यु के पक्ष में, एवं | दाखय)। सुदास के विरोधी पक्ष में शामिल था (ऋ, ७.१८.७।)। पक्षगंत-एक ऋग्वेदी श्रुतर्षिगण । प्रा. च. ४८]
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