Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पतंजलि
प्राचीन चरित्रकोश
पतंजलि
व्याकरण जैसे क्लिष्ट एवं शुष्क विषय को पतंजलि ने | | व्याख्याएँ पतंजलि के पहले लिखी जा चुकी थी। इसी अपने महाभाष्य में अत्यंत सरल, सरस, एवं हृदयंगम ढंग | प्रकार भारद्वाज, सौनाग आदि के वार्तिकपाठों पर भी से प्रस्तुत किया है। भाषा की सरलता, प्रांजलता, स्वाभा- अनेक भाष्य लिखे गये थे (महा. १.३.३ ३.४.६७; विकता एवं विषयप्रतिपादन शैली की दृष्टि से इसका | ६.३.६१ )। महाभाष्य, समस्त संस्कृत वाङ्मय म आदशभूत है । इस पतंजलि के महाभाष्य में निम्नलिखित वैयाकरणों के ग्रंथ में तत्कालीन राजकीय, सामाजिक, आर्थिक एवं | एवं पूर्वाचार्यों के मत उधृत किये गये है-- भौगोलिक परिस्थिति की यथातथ्य जानकारी मिलती है।
१. गोनीय (महा. १. २. २१, २९, ३.१.९२)-- भगवान पाणिनि के जीवन पर भी महाभाष्य में काफी
कैयट, राजशेखर, एवं वैजयन्ती कोश के अनुसार, यह महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
स्वयं पतंजलि का ही नाम है । शुद्ध उच्चारण का महत्व--कृष्ण यजुर्वेद के अनुयायी, |
। २. गोणिकापुत्र (महा. १.४.५१)-वात्स्यायन के कठ लोगों का पाठ, पतंजलि के काल में परम शुद्ध माना
कामसूत्रों में भी, इस आचार्य का निर्देश है ( काम. जाता था। उनके बारे में पतंजलि ने कहा है, 'प्रत्येक नगर में कठ लोगों के द्वारा निर्धारित पाठ का प्रचलन
३. सौर्यभगवत् (महा. ८. २. १०६)-कैयट के है। उनका 'काठकधर्मसूत्र' नामक धर्मशास्त्रग्रंथ बहुत
अनुसार, यह सौर्य नगर का रहिवासी था (महाभाष्य प्रसिद्ध है, एवं 'विष्णुस्मृति' उसी के आधार पर बनी
प्रदीप. ८.२.१०६; काशिका. २.४.७)। है। आर्य साहित्य में जब तक उपनिषदों का महत्त्व रहेगा तब तक कठ लोगों का नाम भी बराबर बना रहेगा (महा.
४. कुणरवाडव (महा. ३.२.१४, ७.३.१)।
| टीकाकार--पतंजलि के महाभाष्य पर निम्नलिखित ४.३.१०१)।
टीकाकारों की टीकाएँ लिखी जा चुकी थी। उनमें से कुछ. _ 'पाणिनि-शिक्षा की तरह, पतंजलि ने भी वेदपाठ के |
टीकाएँ नष्ट हो चुकी हैं-- शुद्धोच्चारण, शुद्ध स्वरक्रिया एवं विधिपूर्वक संपन्न किये
१. भर्तृहरि--महाभाष्य की उपलब्ध टीकाओं में 'याग' पर बड़ा जोर दिया है। इसका कहना है, अच्छा जाना हुआ, एवं अच्छी विधि से प्रयोग किया हुआ एक
सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रामाणिक टीका भर्तृहरि की है। ही शब्द, स्वर्ग तथा मृत्यु दोनों लोकों की कामना पूर्ण करता
इसने लिखे हुए टीकाग्रंथ का नाम 'महाभाष्यदीपिका'
था। मीमांसकजी के अनुसार, भर्तृहरि का काल ४५० है (एकः शब्दः सम्यग् ज्ञातः सुष्ठ प्रयुक्तः स्वर्ग लोके च कामधुग् भवति)।
वि. पू. था। पतंजलि के महाभाष्य में 'काठक', 'कालापक',
२. कैयट-महाभाष्य पर कैयट ने लिखे हुए 'मौदक', 'पैप्पलाद' एवं 'आथर्वण' नामक प्राचीन
टीकाग्रंथ का नाम 'महाभाष्य प्रदीप' था। कैयट स्वयं धर्मसूत्रों का निर्देश किया है। ये सभी धर्मसूत्र संप्रति
कश्मीरी था, एवं उसका काल ११०० माना जाता है । अनुपलब्ध है। किन्तु इन विलुप्त धर्मसूत्रों का काल
। ३. मैत्रेयरक्षित (१२ वीं शती)-टीका का नाम७०० खिस्त. पू. माना जाता है। भारतीय युद्ध का | 'धातुप्रदीप' । निर्देश पतंजलि ने अपने 'महाभाष्य' में दिया है।
४. पुरुषोत्तमदेव (१२ वीं शती वि.)- टीका का 'कंसवध' एवं 'बलिबंध' नामक दो नाटक कृतियों का | नाम-'प्राणपणित'। निर्देश भी 'महाभाष्य' में दिया गया है। 'वासवदत्ता', ५. शेषनारायण (१६ वीं शती)-टींका का नाम'सुमनोत्तरा', 'भैमरथी', आदि आख्यायिकाएँ | 'मुक्तिरत्नाकर'। पतंजलि को ज्ञात थी एवं उनमें अपने हाथ से यह काफी । ६. विष्णुमित्र (१६ वीं शती )-टीका का नामउलट-पुलट चुका था (महा. ४.३.८७) । पाटलिपुत्रादि | 'महाभाष्य टिप्पण'। नगरों का निर्देश भी महाभाष्य में अनेक बार आया है।। ७. नीलकंठ (१७ वी शती )-टीका का नाम
पूर्वीचार्य---पाणिनि के अष्टाध्यायी पर लिखे गये | 'भाषातत्त्वविवेक'। अनेक वार्तिक भाष्यों का निर्देश, पतंजलि ने 'महाभाष्य' ८. शिवरामेंद्र सरस्वती ( १७ वीं शती वि.)-टीका में किया है। अकेले कात्यायन के पाट पर तीन | का नाम-'महाभाष्यरत्नाकर'। ..