Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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पतंजलि
प्राचीन चरित्रकोश
पतंजलि
कों एवं कोशा
गोणिकापुत्र पतंजलि
पाणिनीय व्याकरण की महत्ता बढ़ायी, एवं 'वैयाकरण | रचना की। आखिर 'विष्णुमाया' के योग से, यह पाणिनि' को 'भगवान् पाणिनि' के उँची स्तर तक पहुँचा | चिरंजीव बन गया ( भवि. प्रति. २.३५)। दिया।
___व्याकरणमहाभाष्य-पाणिनि का 'अष्टाध्यायी' का नामांतर-प्राचीन ग्रंथों एवं कोशों में. पतंजलि के | Jथ लोगों को समझने के लिये कठिन मालूम पड़ता था। निम्नलिखित नामांतर मिलते है :-- गोनीय, गोणिकापुत्र
इस लिये अपने 'व्याकरणमहाभाष्य' की रचना नागनाथ, अहिपति, फणिभृत् , फणिपति, चूर्णिकाकार,
| पतंजलि ने की। पदकार, शेष, वासुकि, भोगींद्र (विश्वप्रकाशकोश १.१६;
___पाणिनि के 'अष्टाध्यायी' में आठ अध्याय एवं १९; महाभाष्यप्रदीप. ४.२.९२; अभिधान. पृ. १०१)।
प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं । इस तरह कुल ३२ पादों
में 'अष्टाध्यायी' ग्रंथ का विभाजन कर दिया गया है। इन नामों में से, ‘गोनीय' संभवतः इसका देशनाम
पतंजलि के महाभाष्य की रचना 'आह्निकात्मक' है । था, एवं 'गोणिका पुत्र' इसका मातृकनाम था । उत्तर प्रदेश
इस ग्रंथ में कुल ८५ आह्निक है। 'आह्निक' का के गोंडा जिला को प्राचीन गोनद देश कहा गया है।
शब्दशः अर्थ 'एक दिन में दिया गया व्याख्यान' कल्हणकृत 'राजतरंगिणी' में, गोनद नाम से काश्मीर
है। हर एक आह्निक को स्वतंत्र नाम दिया है। उन में के तीन राजाओं का निर्देश किया गया है। 'गोनर्दीय'
से प्रमुख आह्निकों के नाम इस प्रकार है :- १. पस्पशा उपाधि के कारण, पतंजलि कश्मीर या उत्तर प्रदेश का रहनेवाला प्रतीत होता है। 'चूर्णिकाकार' एवं
(प्रस्ताव), २. प्रत्याहार (शिवसूत्र-अइउण् आदि), 'पदकार' इन नामों का निर्वचन नहीं मिलता।
३. गुणवृद्धि संज्ञा, ४. संयोगादि संज्ञा, ५. प्रगृह्यादि संज्ञा, पतंजलि के बाकी सारे नामांतर कि वह भगवान शेष
६. सर्वनामाव्ययादि संज्ञा, ७. आगमादेशादिव्यवस्था, का अवतार था, इसी एक ही कल्पना पर आधारित है।। ८. स्थानिवद्भाव, ९. परिभाषा। शेष, वासुकि, फणिपति आदि पतंजलि के बाकी सारे पाणिनि के 'अष्ठाध्यायी' पर सर्वप्रथम कात्यायन ने नाम इसी एक कल्पना को दोहराते है।
'वार्तिकों' की रचना की। उन 'वार्तिकों' को उपर
पतंजलि ने दिये व्याख्यान 'महाभाष्य' नाम से प्रसिद्ध ___ काल-पतंजलि की 'व्याकरण महाभाष्य' में पुष्य- |
| है। पाणिनि-सूत्र एवं वार्तिकों में जो व्याकरणविषयक मित्र एवं चंद्रगुप्त राजाओं की सभाओं का निर्देश प्राप्त है |
भाग है उसका स्पष्टीकरण महाभाष्य में तो है ही, किन्तु (महा. १.१.६८)। मिनन्डर नामक यवनों के द्वारा
उसके साथ, जिन व्याकरणविषयक सिद्धान्त उन में रह साकेत नगर घेरे जाने का निर्देश भी, 'अरुद्यवनः
गये है, उनको महाभाष्य में पूरा किया गया है। उसके साकेतम्' इस रूप में, किया गया है। पुष्यमित्र राजा |
साथ, पूर्वग्रंथों में जो भाग अनावश्यक एवं अप्रस्तुत है, का यज्ञ संप्रति चालू है ('पुष्यमित्रं याजयामः') इस
यह पतंजलि ने निकाल दिया है । उसी कारण, पतंजलि वर्तमानकालीन क्रियारूप के निर्देश से पतंजलि उस
के ग्रंथ को महाभाष्य कहा गया है। अन्य भाष्यग्रंथों में राजा का समकालीन प्रमाणित होता है। इसी के कारण,
", | मूलग्रंथ का स्पष्टीकरण मात्र मिलता है, किन्तु पतंजलि के डॉ. रा. गो. भांडारकर, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल,
महाभाष्य में मूलग्रंथ की अपूर्णता पूरित की गयी है। डॉ. प्रभातचंद्र चक्रवर्ति प्रभृति विद्वानों का अभिमत
इसी कारण पाणि नि, कात्यायन एवं पतंजलि के है कि, पतंजलि का काल १५० खि. पू. के लगभग था।
व्याकरणविषयक ग्रंथों में पतंजलि का महाभाष्य ग्रंथ जीवनचरित्र-पतंजलि का जीवनचरित्र कई पुराणों | सर्वाधिक प्रमाण माना जाता है। अन्य शास्त्रों में सर्वाधिक में प्राप्त है । भविष्य के अनुसार, यह बुद्धिमान् ब्राह्मण | पूर्वकालीन ('पूर्व पूर्व' ) आचार्य का मत प्रमाण माना एवं उपाध्याय था। यह सारे शास्त्रों में पारंगत था, फिर | जाता है। किन्तु व्याकरण शास्त्र में पतंजलि ने की हुई भी इसे कात्यायन ने काशी में पराजित किया। प्रथम यह | महत्त्वपूर्ण ग्रंथ की रचना के कारण, सर्वाधिक उत्तरविष्णुभक्त था। किंतु बाद में इसने देवी की उपासना की, | कालीन आचार्य (पतंजलि) का मत प्रमाण माना जाता जिसके फलस्वरूप, आगे चल कर, इसने कात्यायन को | हैं। 'यथोत्तरं मुनीनां प्रामाण्यम्' इस आधेनियम वादचर्चा में पराजित किया। इसने 'कृष्णमंत्र' का काफी | व्याकरण-शास्त्र में प्रस्थापित करने का सारा श्रेय पतंजलि प्रचार किया। इसने 'व्याकरणभाष्य' नामक ग्रंथ की | को ही है।
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